सोमवार, 15 दिसंबर 2008

तेरी हर बात मिलें

वो मुझको मिला दे तुझसे ऐसे
कि जब तुम साँस लो
तो मुझको जान मिले
तुम नींद लो
तो मुझको ख्वाब मिले
गुज़रे हवा जब तुमको छूकर
तो मुझको एक एहसास मिले
उतरे चाँद जब तुम्हारे आँगन में
मुझको हर वो रात मिले
हर पल लौटकर गुज़रे जो मेरे मांजी से
तेरी हर वो याद मिले
कुछ ऐसे मिला दे मुझको तुझसे
मुझको तेरी हर बात मिले

-तरुण

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

अपने घर की दीवारों को आईना तेरा बनाया है

एक तेरे भरोसे पर अपनी सांसो को टिकाया है
तेरी उम्मीदों की तपिश में हर पल को जलाया है

तेरी यादो में आजकल मैं खोया हूँ कुछ ऐसे
अपने घर की दीवारों को आईना तेरा बनाया है

मैं तुझसे अपना हाल-ऐ-दिल कैसे कह दूँ
तुमने मेरी बातो पे कब कोई आंसू बहाया है

तुमने तोडा है हर रिश्ता मैं फिर न कुछ बोला
कुछ ऐसे मैंने तुझसे अपना हर वादा निभाया है

क्या लेकर मैं आया था जो रोऊँ मैं तबाह होकर
जो लिया था यहीं से वो यहीं पे तो लुटाया है

-तरुण

सोमवार, 1 दिसंबर 2008

तेरा नाम लेकर

गिरती हुई शाम को कितनी बार संभाला है
रात में डूब डूब कर
न जाने कितनी बार सुबह को निकाला है
अंधेरे से डरते हुए चाँद को
कितनी बार
फलक पे टिकाकर सुलगाया है
थके हुए सूरज को
बादलो की चादर उडाकर
न जाने कितनी बार सुलाया है

जब जब भी कांपी है ये कायनात
जब जब भी घबराए है दिन रात
मैंने तेरा नाम लेकर इनके वजूद को बचाया है

-तरुण

शुक्रवार, 21 नवंबर 2008

जवाब

तुम अपनी आँखों से
पूछ लो एक बार
एक बार आईने के सामने
अपनी आँखों से आंखे मिला कर देखो
मिल जायेगा जवाब
उन सब सवालों का
जो दिन रात तुम्हारी आँखे
पूछती है मुझसे

-तरुण

चाँद ज़मीन पे उतरेगा

वो चाँद ज़मीन पे उतरेगा
आएगा मेरे आँगन में
सपनो की बगियाँ महकेगी
हलचल सी होगी तन मन में

तुम हाथ मेरा थामोगी जब
हर राह में मेरे साथ चलोगी
हर मंजिल मिल जायेगी
जब होगी तुम मेरे जीवन में

ये साँसे कुछ ऐसे महकेगी
तेरे आँगन में जैसे फूल खिले
नस नस में होगी खुशबू तेरी
तू होगी मेरी हर धड़कन में

मेरी साँसों पे जो सवाल उठे
तेरे नाम से उनको जवाब मिले
मेरे हाथो की लकीरे तुझसे है
तू है मेरे हर कण कण में


-तरुण

तुम आ जाओ एक बार

न जाने कब से
साँसे होठो पे अटकी है
न जाने कब से
दम घुट रहा है मेरा
न जाने कब से
आवाजे भी मेरी चुप है
तुम्हे बुलाना चाहता हूँ
मगर जुबां कुछ कहती नही
न जाने कब से
देखो कैसे पड़ा हूँ
इंतज़ार कर रहा हूँ तुम्हारा
दिन रात ऐसे ही बुझा रहता हूँ
लगता है कभी ज़िन्दगी जा रही है
मगर न जाने क्यूँ ये जाती भी नही
तुम बस आ जाओ एक बार
देखना कैसे फिर
साँसों को मेरी साँस मिलेगी
कैसे आवाजे मेरी बोलेगी
और मैं कैसे एक बच्चे सा फिर चह्कूंगा
तुम आ जाओ एक बार
और मेरे इस जिस्म को एक रूह दे दो

-तरुण

गुरुवार, 20 नवंबर 2008

इस रात को सुलाएं हम

ये रात अकेली है तनहा
इस रात को सुलाएं हम
वो ख्वाब जो कब से आँखों में सोये है
उनको एक एक करके जगाये हम
इस रात को सुलाएं हम

वो सुबह जो न जाने कबसे
दरवाज़े पे है थक गयी है
उसे घर में बुलाये, बिठाये हम

वो चाँद हमारा तनहा बेचारा
सुबह को वो भी तरस गया है
उस चाँद को ज़मीन पे लायें हम
फूलों की सैर कराएँ हम

इंसानों में फैली नफ़रत को
एक कच्चे ख्वाब सा भुला दे हम
कुछ प्यार के रिश्तो को
आज की रात सजाये हम
एक नयी दुनिया बसायें हम

उन भूखे तरसते बच्चो को
कुछ नए ख्वाबो का गुलदस्ता दे
उनकी हर उम्मीद को
एक नयी सुबह दिखाए हम
आज की रात
कुछ अलग कर दिखाए हम
चलो न इस रात को सुलाए हम


-तरुण

सोमवार, 17 नवंबर 2008

मेरी ज़िन्दगी की भी वही एक कहानी है

ये शाम देखा कितनी सुहानी है
हर तरफ़ जैसे बस तेरी कहानी है

ये जो आँखों से टपकते है आंसू
तेरे प्यार की एक ये भी निशानी है

आज कान्हा ने एक चेहरा है बदला
आज एक और मीरा दीवानी है

अब तेरे बिन घुटती है साँसे मेरी
और ये ज़िन्दगी बस एक परेशानी है

तुम चाँद से पूछ लो दास्ताँ उसकी
मेरी ज़िन्दगी की भी वही एक कहानी है

-तरुण

रविवार, 16 नवंबर 2008

दिन की हर शोख़ को ढलना होगा

दिन की हर शोख़ को ढलना होगा
फिर रात के साये में जलना होगा

फूलों की सेज पे जीने वालो
एक दिन कांटो पे भी चलना होगा

मैं तेरे करीब तो जाऊं लेकिन
फिर तेरी जुदाई में मुझे जलना होगा

तुम मेरी कसम खा के इतना बता दो
तुझे पाने के लिए क्या ख़ुद को बदलना होगा

आज कोई मुझे आवाज़ दे तो क्या
मेरी मजार से एक दिन सबको गुज़रना होगा

-तरुण


गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

डिवोर्स

वो जब से अपने पति का घर छोड़कर अपने मायेके आयी थी उसे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था। लेकिन उसके माँ बाप अच्छा महसूस कर रहे थे। वैसे वो अपने घर आती रहती थी लेकिन इस बार कुछ अलग ही हुआ था । वो रोहित से झगड़कर वापिस आयी थी। यूँ तो उनके बीच में कुछ न कुछ होता ही रहता था लेकिन इस बार कुछ ज्यादा ही हो गया । रोहित आजकल अपने ऑफिस में ज्यादा मसरूफ रहने लगा था और उस दिन तो उनकी शादी की दूसरी साल गिरह थी और वो रात को नौ बजे आया और वो भी बिना किस तोहफे के। वैसे तो रोहित ने बहुत कोशिश की थी लेकिन उस दिन क्नोट प्लेस में बोम्ब ब्लास्ट की वजह से साउथ एक्स की मार्केट भी जल्दी बंद हो गयी थी। बेचारे न सब जगह कोशिश की लेकिन कुछ न ले पाया। और आज तो कोई फूल वाला भी नही दिख रहा था। थककर वो घर चला गया और घर जाते ही जैसे हंगामा हो गया। उसने बहुत कोशिश की प्रीती समझ जाए लेकिन आज तो कुछ हद हो गयी। वो मान ही नही रही थी और लगातार कह रही थी की रोहित तुम बदल गए हो । तुम अब मुझसे प्यार नही करते । शादी से पहले तो छोटी छोटी बातो पे तोहफे देते थे अब तो फूल भी नही लाये । उधर रोहित ने बहुत कोशिश की लेकिन प्रीती कुछ सुनने को तैयार ही नही थी । वो समझाने की कोशिश करता रहा लेकिन कोई भी फायदा नही हुआ । जब बात बहुत बढ गयी तब रोहित ने कहा, अब बहुत हो गया अगर मेरे साथ रहना है तो चुप हो जाओ। इतना कहना था की प्रीती रोने लगी , कहने लगी तुम आज के दिन ये कह रहे हो। मैं तुम्हारे साथ बिल्कुल नही रहूंगी । रोहित कुछ और नही कह सका। आजकल रोहित ऑफिस की तरफ़ से बहुत परेशान चल रहा था और इसी वजह से प्रीती को पुरा वक्त नही दे पा रहा था। और थोडी देर में प्रीती अपना समान पैक करके अपने घर की तरफ़ जाने लगी । रोहित ने एक बार कहा प्रीती , न जाओ प्लीज़, लेकिन प्रीती नही रुकी और वो अपना घर छोड़ आयी । रोहित की आँखों में आंसू आ गए , वो बिस्तर पे जाकर चुपचाप लेट गया। आज सब कुछ खाली खाली लग रहा था। ऐसा लग रहा था की कुछ नही है। घर में ऐसा लग रहा था की तन्हाई ही बोल रही है और वो चुपचाप लेटा है ।
एक दिन गया दो दिन गए और धीरे धीरे एक महीना निकल गया । रोहित सोच रहा था की प्रीती उसके बिना नही रह सकती और लौट आएगी। लेकिन ऐसा तो कुछ नही हुआ । प्रीती लौटकर नही आयी न ही उसका कोई फ़ोन आया। वो अब दिन भर बैठकर अपने फ़ोन को देखता रहता था और घर पहुँचते ही सबसे पहले देखता था की कही प्रीती घर तो नही आ गयी है । पिछले २ सालो में शायद ये पहली बार हुआ था की वो एक महीना अलग रहे थे । लेकिन कुछ बातें शायद पहली बार ही होती है । प्रीती के जाने की ख़बर सुनकर रोहित की माँ उसके पास आ गयी थी और आजकल रोहित को समझा रही थी ।
इधर प्रीती तो बहुत चुप चुप रहने लगी थी उसे तो यकीन था कि रोहित उसे लेने दुसरे दिन ही आ जाएगा और अक्सर जब भी दरवाज़े पे कोई दस्तक होती वो भागकर दरवाज़ा खोलती थी लेकिन आज तक एक बार भी आने वाला नही आया था । आज अचानक बैठे बैठे वो सोचने लगी थी कि कैसे वो रोहित को मिली थी। कितनी खुश रहती थी वो उन दिनों । वो उस दिन जब पहली बार दिल्ली आयी थी तो कैसे रेलवे स्टेशन पे रोहित से अपनी मौसी के घर का पता पूछने लग गयी थी । उसे तो कुछ भी नही पता था और उसे लगता था कि शायद यहाँ सब कोई सब कुछ जानता था । रोहित को तो रोहिणी का कुछ पता भी नही था लेकिन जब उसने अपने सामने एक लड़की को इतने प्यार से पूछते देखा तो वो रुक गया । वैसे वो वहां आया नही था, जा रहा था । उसकी ट्रेन १५ मिनट में जाने वाली थी । अब प्रीती को कुछ भी नही पता था, तो वो थोड़ा समझाने लगा , लेकिन उसे ऐसा लगा कि ये तो नही पहुच पायेगी। उसने सोचा बाहर जाकर ज़रा एक ऑटो ले देता हूँ और जब बाहर आकर उसने ऑटो वाले से बात कि तो पता चला कि मैडम के पास पुरा पता ही नही है । लेकिन फ़ोन नम्बर है । उसने फ़ोन बूथ से जाकर फ़ोन करने को और पुरा पता लेने को कहा । रोहित वही उसके सामान के पास खड़ा होकर इंतज़ार करता रहा । दस मिनट हो गए और प्रीती नही आयी । रोहित की ट्रेन जाने को थी और वो वह खडा उसके सामान की रखवाली कर रहा था । एक बार उसे लगा की उसे जाना चाहिए लेकिन फिर न जाने क्यूँ वो रुक गया। फिर ३० मिनट के बाद जाकर मिस प्रीती आयी और वो भी गुस्से में । उसकी मौसी के घर किसी ने फ़ोन नही उठाया । रोहित को समझ नही आ रहा था क्या करे । बस कुछ सोचकर उसने कहा मेरी ट्रेन अब चली गयी है और मेरा एक दोस्त रोहिणी में ही रहता ही रहता है उसके पास चलकर देखते है वही से फ़ोन करके पता ले लेंगे। प्रीती को कुछ अजीब सा लग रहा था और अब तो वो थोड़ा डरने भी लगी थी उसकी माँ ने उसे ज़रा सावधान रहने को कहा था । अभी तो उसके घर पे भी कोई नही था वो सब लोग एक शादी में गए हुए थे इसीलिए उनसे भी बात नही कर पा रही थी । उसने भी कोई और रास्ता न देखकर जाने को कह दिया । फिर वो एक ऑटो में बैठकर रोहिणी पहुँच गए । वहाँ पहुंचकर रोहित ने अपने दोस्त का घर देखा तो वह भी ताला लगा था । फिर उन्होंने वही पास में एक फ़ोन बूथ से उसकी मौसी के घर फ़ोन किया और उन्हें पता चला कि वो लग पास में ही रहते है फिर वो प्रीती के साथ उसके मौसी के घर गया और कुछ देर वह बैठकर वो वापिस जाने लगा । जाते जाते प्रीती ने उसका धन्यवाद किया और बोला, "प्रीती" मेरा नाम है । और अपना फ़ोन नम्बर भी दिया । रोहित ने भी उसे अपना फ़ोन नम्बर दे दिया । जाते जाते रोहित ने कहा देखो अब कौन से स्टेशन पे मिलते है ।
अगले दिन जब रोहित घर से स्टेशन कि तरफ़ निकलने को था कि तभी उसका फ़ोन बजा । ये प्रीती का फ़ोन था वो बहुत परेशान लग रही थी उसका पर्स में से किसी ने पैसे निकाल लिए थे और वो साउथ एक्स में थी । रोहित का घर वहाँ से ज्यादा दूर नही था इसीलिए प्रीती ने उसे फ़ोन कर दिया था । अब रोहित फिर से सोचने लगा कि क्या करूँ? कुछ सोचकर फिर से वो हंसकर अपना सामान रखकर साउथ एक्स कि तरफ़ चल दिया । प्रीती वह कुछ २ महीने के लिए थे और कारण अकारण वो लोग किसी न किस तरह मिल ही जाते थे । और अब तो शायद वो अच्छे दोस्त बन गए थे । अब प्रीती वापिस जाने के लिए थी उसको चंडीगढ़ जाकर अपना कॉलेज अटेंड करना था । प्रीती चल गयी लेकिन उनका मिलना नही गया । किसी न किसी बहाने वो लोग मिलते ही रहते थे । ये सिलसिला २ साल तक चलता रहा और फिर प्रीती भी नौकरी के चक्कर में दिल्ली आ गयी। अब तो वो अक्सर मिलने लगे और उन्हें पता ही नही चला कि कब वो एक दुसरे कि ज़रूरत बन गए । प्रीती को कोई भी काम के लिए रोहित को ही फ़ोन करना होता था और रोहित को भी कोई न बहाना मिल जाता है प्रीती को मिलने का। एक दिन आख़िर रोहित ने प्रीती को शादी के लिए कह ही दिया । उसके माता पिता बहुत दिनों से उसके लिए लड़की देख रहे थे और अब रोहित को लगा कि प्रीती से अच्छी लड़की उसके लिए कोई नही हो सकती। लेकिन जब ये बात प्रीती ने सुनी तो उसे बहुत अजीब सा लगा, शायद उसने शादी के लिए सोचा भी नही था । अब तो सामने रोहित था जो उसे ऐसा कह रहा था । उसने रोहित को कहा वो कुछ सोचकर जवाब देगी।
आज रोहित बहुत परेशान था , प्रीती का सुबह से कोई भी फ़ोन नही आया था, और अचानक रात को ९ बजे प्रीती का फ़ोन आया, उसने कहा तुम्हे चंडीगढ़ चलना है , मेरे पापा तुम्हे मिलना चाहते है । रोहित को तो जैसे आसमान मिल गया , वो कुछ और कह ही नही पाया। और उसी सन्डे को वो चंडीगढ़ चला गया । प्रीती के पापा एक बिज़नसमैन थे और उनका अच्छा खासा बड़ा घर था । रोहित जब उनके घर गया तो प्रीती के मम्मी पापा के साथ उनके कुछ रिश्तेदार भी थे । सबने बैठकर रोहित से बात की । रोहित के परिवार के बारे में पूछा , रोहित के पापा सरकारी नौकरी में थे और वो लोग जयपुर रहते थे । बहुत देर तक बात चलती रही , रोहित बहुत सारी बातें सुनता रहा और कभी कभी कुछ कहता भी रहा । लेकिन जब वो प्रीती के घर से चला तो उसे कुछ अच्छा सा नही लग रहा था उसे लग रहा था वो एक अजीब सी दुनिया में आ गया है । यहाँ इंसान की कोई कीमत नही है उसके पैसे उसकी दौलत देखी जाती है । यूँ तो रोहित इंजिनियर है लेकिन उसके १ छोटा भाई और एक छोटी बहिन है जो अभी पढ रहे है इसीलिए उनका सब कुछ इतना अच्छा नही है । जाते जाते प्रीती उसे पीछे तक छोड़ने आयी। वो तो बहुत खुश लग रही थी । जाते जाते उसने रोहित को कहा कि कल आकर फ़ोन करती हूँ। और कल तो फ़ोन आया ही नही । फिर एक दिन और इंतज़ार करके रोहित ने प्रीती को फ़ोन किया । प्रीती अब कुछ खुश नही लग रही थी । और उसके पास बहुत सारे सवाल थे। शादी के बाद क्या होगा, कैसे रहेंगे , ये कैसे होगा वो कैसे होगा। रोहित ने बहुत देर तक उसे सब कुछ समझाया । और शायद प्रीती को कुछ कुछ समझ आने लगा था लेकिन उसके घरवाले इस शादी से खुश नही थे । रोहित ने भी अपने घर बात की । उसके घर वाले भी इससे कुछ खुश नही लगे लेकिन शायद वो कुछ ज्यादा कह नही पाये। और २ महीने के बाद रोहित और प्रीती ने शादी कर ली। शादी एक मन्दिर में हुई क्योंकि रोहित को दिखावा बिल्कुल पसंद नही था ।
शादी के सब वैसे ही हुआ जैसे होना चाहिए था । रोहित और प्रीती बहुत खुश थे । वो दोनों अपने आप में बहुत खुश रहते थे। कभी कभी प्रीती को रोहित की कुछ बातें अच्छी नही लगती थी लेकिन ऐसा कुछ नही होता था जो कही और न होता हो। बस प्रीती के घरवाले प्रीती से थोडी कम बात करने लगे थे, और रोहित के घरवाले प्रीती से कुछ ज्यादा ही एक्स्पेक्ट कर रहे थे । प्रीती इन सबके लिए बिल्कुल तैयार नही थी । तो कभी कभी वो रोहित को शिकायत करती थी । रोहित समझता था की ये सब तो करना ही पड़ता है ।
इन सबके बावजूद वो दोनों बहुत खुश रहते थे रोहित प्रीती को खुश रखने की बहुत कोशिश करता था और प्रीती भी रोहित पे जान देती थी । शायद किसी ने सही कहा है खुशी में वक्त का पता ही नही चलता और देखते देखते डेढ़ साल बीत गया । और अब रोहित के ऑफिस में काम का बोझ कुछ बाद गया था। इसीलिए रोहित ज़रा देर से घर आने लगा था । इसी के चलते शायद घर में नोंक झोंक होने लगी थी । रोहित बहुत कोशिश करता लेकिन वक्त नही निकाल पा रहा था । और उधर कुछ पैसे को लेकर भी हाथ ज़रा तंग होने लगा था। रोहित के पापा जयपुर में घर बना रहे थे तो इसलिए उन्होंने रोहित से कुछ पैसो को कहा था । अब हाथ तंग होने से प्रीती परेशान होने लगी थी । उसे ये बिल्कुल भी पसंद नही था । रोहित ने कितनी बार कोशिश की की प्रीती किसी बात पे खुश हो जाए लेकिन शायद वक्त खराब था वो जो भी करता उसका कुछ और ही हो जाता था । एक बार वो ऑफिस से छुट्टी लेकर घर गया लेकिन उसे पता चला की प्रीती की मम्मी आज दिल्ली आयी हुई है तो वो वह गयी है । उसका पूरा प्लान खराब हो गया । और इन्ही नोंक झोंक में उनकी शादी की सालगिरह आ गयी ।
तभी फिर से दरवाज़े पे दस्तक हुई । प्रीती भागकर दरवाज़े की तरफ़ गयी लेकिन इस बार भी वो नही था । प्रीती को कुछ समझ नही आ रहा था की वो क्या करे। उसके मम्मी पापा उसे रोहित के पास न जाने को कहते थे और उधर रोहित भी तो पता नही क्या सोच रहा था ।
रोहित पहले पहले तो बहुत परेशान रहता था लेकिन शायद अब उसे परेशान रहने की आदत हो गयी थी । आज प्रीती को गए १ महीना हो गया था और उसे लग रहा की कैसे वो एक महीने तक जी लिया । उसने ये कभी नही सोचा था । हर रोज़ न जाने कितनी बार उसने सोचा की उसे कॉल कर लूँ लेकिन हर बार रुक गया । और आज तो बैठे बैठे उसकी आँखों से आंसू आने लगे । उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो बहुत अकेला रह गया है ।
और अब हर रोज़ यही होने लगा । बस इंतज़ार ही चलता रहा लेकिन कोई भी एक कदम नही उठा सका । वक्त की रफ़्तार वैसे ही चलती रही और देखते देखते ६ महीने बीत गए । अब तो रोहित का ऑफिस भी ठीक हो गया था आजकल वो टाइम पे घर जाता था लेकिन किसके लिए ये उसे भी पता नही था । शायद किसी दिन फ़ोन करके प्रीती को बताना चाहता था । मगर फ़ोन नही कर पाया । एक दिन रोहित के ऑफिस में एक लैटर आया । उसने देखा ये प्रीती का लैटर था । उसकी खुशी का ठिकाना नही था । उसने जैसे ही लैटर खोलकर देखा वो एक दम से गिर गया । ये कोर्ट का नोटिस था, प्रीती ने उसको डिवोर्स का नोटिस भेज दिया था । रोहित तो ये कभी सोच भी नही सकता था । किसी तरह आज वो घर पहुँचा तो उसकी मम्मी से बात हुई। और वो कहने लगी मुझे तो पहले ही लगता था कि वो घर में नही रहेगी । उसने कहा माँ प्लीज़ । उसके बाद कुछ दिनों तक रोहित को कुछ अच्छा नही लगा । उसने प्रीती को कितनी बार फ़ोन करने की कोशिश की लेकिन हर बार कोई और ही फ़ोन उठाता था । इधर रोहित के मम्मी पापा ने जवाब देने का मन बना लिया था और उन्होंने नोटिस का जवाब दे भी दिया। न चाहते हुए भी जवाब चला गया ।
इधर प्रीती को भी समझ नही आ रहा था कि क्या हो रहा है उसके मम्मी पापा ने नोटिस भिजवा दिया था और उसे पता ही नही था । उसे तो तब पता चल जब रोहित का जवाब आया । और वो उसे देखकर रोने लगी । उसे विशवास ही नही हो रहा था कि उसका रोहित उसके बिना रह भी सकता है । लेकिन अब तो जवाब आ गया था उसके पापा ने उसे कहा देखो बेटा अब रोहित तुम्हारे साथ रहना नही चाहता है नही तो वो तुम्हे लेने आ ही जाता । प्रीती चुपचाप अपने कमरे में चली गयी और कितने दिन तक वही रही । लेकिन डिवोर्स का केस तो शुरू हो गया था । कुछ ही दिनों बाद दोनों अदालत में खड़े थे । आज रोहित को नयी दिल्ली का रेलवे स्टेशन याद आ रहा था । वो पहली मुलाक़ात । और आज शायद आखिरी मुलाकात । दोनों कोर्ट में पहुच गए । रोहित ने जैसे ही प्रीती को देखा, उसे वो हर दिन याद आने लगा जो उसने प्रीती के साथ गुज़ारा था और फिर अचानक से वो लम्हा याद गया जब उसने प्रीती को जाने को कहा था ।
उधर प्रीती ने जब रोहित को देखा तो वो भी अपने सरे सपनो के बारे में सोचने लगी । वो सब जो उन दोनों ने रातो को जागकर देखे थे । उसे लगा अभी तो सब कुछ शुरू ही हुआ था ये ऐसे कैसे ख़त्म हो रहा है । लेकिन दोनों एक दुसरे की दिल की हालत से बिल्कुल बेखबर थे । रोहित को लगता था ये प्रीती का डिसीजन है और प्रीती को लगता है ये सब रोहित चाहता है । थोडी देर में कोर्ट में वकीलों की बहस हुई और फिर उसके बाद दोनों से कुछ सवाल पूछे गए और फिर फ़ैसला हो गया । दोनों का डिवोर्स हो गया था । प्रीती वही रोने लगी और रोहित भी एक दम से चुप हो गया ।
और अहिस्ता अहिस्ता सब कोर्ट से जाने लगे । दरवाज़े से निकलते हुए रोहित को लग रहा था वो बिल्कुल अकेला हो गया । वो जिसके लिए वो सब कुछ करता रहा अब उसका नही था । प्रीती भी कुछ ऐसा ही सोच रही थी । उसे तो समझ ही नही आ रहा था ये कैसे हो सकता है । लेकिन ये हो गया था । बहुत हिम्मत करके रोहित ने एक बार प्रीती को बुलाया, "प्रीती", प्रीती को ऐसा लगा जैसे उसका रोहित उसे बुला रहा है लेकिन वो उसका रोहित नही था। रोहित ने प्रीती को कहा मुझे २ मिनट कुछ बात करनी है प्रीती की हाँ सुनकर वो उसे थोड़ा साइड पे ले गया और उसने कहा , प्रीती तुमने ऐसा क्यूँ किया । क्या ये ही सब हमने सोचा था । प्रीती को ये सब सुनते ही ऐसा लगा की क्या हो गया । फिर उसने कहा, रोहित मुझे लगा था की शायद तुम ये चाहते हो । लेकिन नोटिस तो तुमने भिजवाया था , रोहित ने जवाब दिया. प्रीती कहना चाहती थी लेकिन नही कह सकी की वो उसके पापा ने भिजवाया था । लेकिन उसने कहा तुमने जवाब भी तो दिया था । अभी रोहित कुछ कहने को था की उधर से उसके पापा की आवाज़ आयी।, रोहित बेटा देर हो रही है । रोहित कहते कहते रुक गया । उधर प्रीती की मम्मी भी उसके पास आ गयी थी । तो उनकी बात अधूरी ही रह गयी। और किसी ने कुछ नही कहा बस आंसू टपके , प्रीती और रोहित दोनों की आँखों से । डिवोर्स हो गया था, और बाकि सब लोग मुस्कुराते हुए चले जा रहे थे जैसे उन्हें वो सब मिल गया जो वो चाहते थे

-तरुण

सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

आओ न हम दिवाली मनाये

चलो न इस दिवाली पे
चाँद को फलक से
उतारकर अपने दरवाज़े पे लगाए
छत पे टिम टिम चमकते
तारो के लाखो चिराग जलाए
शाम के जलते लाल सूरज से
अपने घर के
हर कमरे को जगमगाए
उस दूर चमकते इन्द्रधनुष से
अपने आँगन में एक रंगोली बनाये
और सुबह की धीमी धीमी किरणों से
घर का कोना कोना चमकाए
आओ इस दिवाली पे
काएनात के रंगों से
हम
अपने घर को सजाये
चलो न हम दिवाली मनाये
उन गरज़ते बादलो से
थोडी थोडी गरज को लेकर
बिजली से उसकी
चुटकी चुटकी चमक को लेकर
आओ सब मिलकर पटाखे बजाये
चलो न हम दिवाली मनाये
चल न हम दिवाली मनाये
-तरुण

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008

मेरी लडाई

ये ज़िन्दगी मेरी है
इसका हर लम्हा, हर दिन मेरा है
मैंने ही चुनी है हर राह इसकी
हर मंजिल जो अब तक नही मिली
वो भी मेरी ही है
हर साँस की मुश्किलें
हर कदम की कशमकश
हर दिन की हर एक लडाई
बस मेरी ही है
मुझे ही लड़ना है
मेरी हर मुश्किल से
मुझे ही लड़ना है
मेरी हर उलझन से
और कभी मेरे इस मैं से
लड़ाई भी मेरी ही है
इस ज़िन्दगी की
हर एक हार भी मेरी ही है
उस हार से निकलती
आहों की हर आवाज़ भी मेरी ही है
लेकिन एक दिन
हार हार कर जीतने की
हर खुशी भी मेरी ही होगी
मेरी ही होगी वो सब मंजिले
जो मैं गिर गिर कर पाऊंगा
और उन जीत के लम्हों की
हर मुस्कान भी बस मेरी ही होगी
मेरी ही होगी

-तरुण

रविवार, 19 अक्तूबर 2008

लोकल ट्रेन

बहुत दिन हो गए
शायद साल बीत गए
ये रिश्ता तो फिर भी नही टूटा
आज भी जब तुम
मेरे सामने वाले प्लेटफोर्म पे खड़ी होती हो
तो दिल करता है कि एक बार फिर से
पटरियां कूदकर तुम्हारे पास चला जाऊं
और तुम फिर से मुझे हंसकर पागल कहो
तुम मुझे देखकर जो नज़रे हटा लेती हो
यूँ नज़रे हटा लेने से रिश्ते टूट तो नही जाते
आज भी अगर मैं लेट हो जाता हूँ तो
न जाने कितनी बार
तुम प्लेटफोर्म पे मुझे ढूंढती हो
मेरे आने तक इंतज़ार करती हो
कितनी बार तो मेरे लिए अपनी ट्रेन तक मिस कर देती हो
मैंने बहुत बार सोचा कि
इस ट्रेन को छोड़कर दूसरी ट्रेन में चला जाऊं
मगर न जाने क्यूँ
हर सुबह उसी टाइम पे उठ जाता हूँ
जिस वक्त पे तुम मुझे मिस्ड कॉल करती थी
औरआज भी मैं वैसे ही भागते भागते स्टेशन पे आता हूँ
जैसे तब आता था बस तुम्हे एक बार देखने के लिए
वैसे तुमने भी अब तक कुछ भी नही बदला
न ट्रेन बदली
न वो जगह बदली
बस सिर्फ़ मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुराती नही हो
शायद डरती हो अगर देख लिया तो
मैं फिर से तुम्हारे पास आ जाऊँगा
बहुत अजीब है ये रिश्ता हमारा
शायद आज तक कुछ नही बदला
न तुम बदली
न मैं बदला
और न ही
ये लोकल ट्रेन का टाइम बदला

-तरुण

बुधवार, 15 अक्तूबर 2008

एक बार मुझको सो जाने दो

न कोई बात तुम कहो
न कोई गीत आज गुनगुनाओ
दिल की कोई बात जुबान तक न आने दो
ये जो खामोशी है तन्हाई है
आज इसे बस चुप ही रहने दो
न जाने कब से आँखों में नींद लिए मैं चल रहा हूँ
न जाने कब से जिस्म मेरा टूट रहा है
आज बस मुझको सो जाने दो
वो ख्वाब जो कब से राह देख रहे है
एक बार उन्हें आँखों में आ जाने दो
बहुत थक गया हूँ मैं
अब हर शिकन को भूल जाने दो
एक बार मुझको सो जाने दो

तेरा एहसास

एक चाँद अधूरा
एक रात अकेली
एक मैं बैठा अपने घर में

एक सुबह का सूरज
एक शाम का साया
एक मेरे घर में तेरी फोटो

एक नुक्कड़ पे पान की दूकान
एक तेरे घर की बड़ी सी खिड़की
एक हर शाम का नया बहाना

एक रेडियो के रोमांटिक से नगमे
एक एग्जाम्स की जागती हुई राते
एक किताबो में तेरा नाम छुपाना

एक सर्दी में ठिठुरती साँसे
एक बारिश में भीगता आँचल
एक तुमने जो मुझे पुकारा

एक टप टप टपकती बारिश की बूंदे
एक दीवार पे लटकी घड़ी की टिक टिक
एक हर साँस पे मैं तुझको बुलाऊँ


-तरुण


गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

मेरी ज़िन्दगी

ये दर्द ये मुश्किलें ये रूह की खामोशी
ये हर साँस पे टूटती उम्मीदों की आवाजे
ये गिर गिर के चलना ये हर आहट से डरना
ये हर रात को आँखों से टपकते आंसू
ये थमती हुई सी दिल की कुछ धड़कने
ये बरसो से टूटा थका हुआ सा जिस्म
क्या यही है सच मेरा , मेरी ज़िन्दगी ?
-तरुण

रविवार, 28 सितंबर 2008

मंजिल

बहुत रोका था मेरी माँ ने
जब घर से निकला था
उसके आँसूओ ने तो
अब तलक पीछा नही छोड़ा
फिर भी न जाने कौन सी
मंजिल मुझे पानी थी
न माँ को देखा
न उसके आँसू ही पोछे कभी
और आज
जब अपने घर से बहुत दूर
बैठा हूँ तनहा
तो सोचता हूँ
क्या ये ही मंजिल थी मेरी
जिसके लिए मैं इतना भागा था
इस दौड़ मैं इतना खो जाता था अक्सर
कि आईने से
अपना नाम पूछता था मैं
ये मंजिल जो कभी
बहुत हसीं लगती थी मुझको
आज बहुत बेमानी नज़र आती है
और अब अक्सर बैठकर तन्हाईयो में
मैं इंतज़ार करता हूँ
कि एक बार कोई बुला ले
मुझको वापिस
बस एक आवाज़ देदे
और मैं लौट जाऊं
मैं वापिस घर लौट जाऊं

-तरुण

ज़िन्दगी

सुबह उठते ही
बुला लेती है मुझको ऐसे
मेरे घर में मेरी बीवी जैसे
कभी ये कभी वो
कभी इस तरफ़ दौड़ता हूँ
कभी फिर से वापिस लौटता हूँ
कभी काम के पीछे भागता हूँ
कभी काम से भागता हूँ
सुबह से ऐसे शुरू होती है
कि देर रात तक ख़त्म नही होती
और जब थककर नींद आँखे छीन लेती है
जब पलकें ख़ुद ही बंद होने लगती है
तब कही जाकर कुछ सुकून मिलता है
बहुत अजीब हो गयी है ज़िन्दगी मेरी
कि बस जीने के लिए आज कोई वक्त नही

-तरुण

मंगलवार, 16 सितंबर 2008

रस्म

अभी ख्वाब कुछ जगे न थे
कि सुबह ने उठा दिया
अभी फूल कुछ खिले न थे
कि रात ने सुला दिया
अभी कदम कुछ मिले न था
कि फासला बढा दिया
अभी जुबां कुछ मिली न थी
कि सवालों को उठा दिया
अभी रास्तो पे चले न थे
कि मंजिलो को भुला दिया
अभी एक पल भी मुस्कुराये न थे
कि अश्को को बहा दिया
अभी कसमे कोई खाई न थी
कि हर एक वादे को भुला दिया
अभी नाम भी जुड़ा न था
कि हर रिश्ता तुमने मिटा दिया
एक बार मिलने से पहले ही
बिछड़ने कि हर रस्म को निभा दिया

-तरुण

सोमवार, 15 सितंबर 2008

फासला

बहुत देर तक चला था मैं
लेकिन
इतनी दूर भी नही गया था
कि तुम आवाज़ दो
और मैं लौट न सकूँ

-तरुण

रोज़

ऑफिस से लौटकर घर
और घर में
यूँ बैठता हूँ तन्हाइयो के साथ
जैसे बहुत पुरानी
एक दोस्ती है उनसे
फिर अहिस्ता अहिस्ता
दबे होठो से
देर तक उनसे बातें करता हूँ
और अक्सर रात को बिस्तर पे
उनकी कुछ बातें जब याद आती है
तो एक मुस्कान चेहरे पर आ जाती है
धीरे धीरे नींद मेरी आँखों में चली आती है
और जब उठता हूँ तो
फिर से वही सुबह हाथ उठाये बुलाती है
और कुछ देर में
उन तनहाइयो को
घर छोड़कर मैं
दिन की कशमकश में खो जाता हूँ
-तरुण

रविवार, 14 सितंबर 2008

फासले

ये फासले फैले हुए
ये रास्ते उलझे हुए
ये दरमियाँ निगाहों के
सिमटा अँधेरा
ये जुबां भी कुछ है
जुदा जुदा
ये बीच में हमारे
कभी तू कभी मैं
कभी लफ्जों की उलझन
कभी उलझे हुए से बंधन
न तुम कभी मुझे आवाज़ दो
न कभी मैं, मैं से आगे बढूँ
ये फासले यूँही चलते रहे
ये रिश्ता भी उलझा रहे
चलो
तुम आज एक आवाज़ दो
मैं इस मैं को छोड़ दूँ
तुम एक बार मिलने का वादा कर लो
मैं कभी न बिछड़ने की कसमे लूँ
तुम एक कदम बढ जाओ बस
मैं फासले सारे मिटा दूँ
तुम मुझे कुछ पल अपने दे दो
मैं तुम्हे ये अपनी ज़िन्दगी दे दूँ

-tarun

साया

दिन भर की कशमकश से
थककर जब भी
आ बैठता हूँ तेरे पहलू के साए में कुछ पल
तो यूँ लगता है जैसे
एक तपते हुए दिन को
शाम का ठंडा साया मिल गया जैसे

-तरुण

मंगलवार, 9 सितंबर 2008

रात और मैं

कितना तरसे थे इस दिन के लिए
जब मिला भी तो
बस शाम हो चली थी
कुछ लम्हे ही साथ रहा यह दिन
और फिर वही लम्बी रात हो गयी
बहुत ख्वाब सजाये थे
जागकर देर तक
इक सुबह की उम्मीद पे
न जाने कितनी बार
इस रात को जलाया था
सुबह न आयी
या शायद दरवाज़े से ही लौट गयी
और जब नींद खुली तो
फिर से वही तन्हाई थी
वो रात शायद अब तक मेरे बिस्तर पे पड़ी
मेरे साथ सो रही थी
मैं जागा तो आहट से वो भी जाग गयी
नाराज़ लग रही थी फिर वो आज
कुछ ऐसे देख रही थी मुझको
जैसे कल रात के ख्वाबो का हिसाब मांग रही हो
और पलट पलट कर
कुछ ऐसे हर बात पे जवाब देती थी
जैसे
समझा रही हो
कि मैं और वो एक जैसे है
वो भी बहुत तरसती है
उस एक सुबह के लिए
जिसके लिए हर रात मैं जागकर ख्वाब सजाता हूँ
लेकिन सुबह आती तो बस रात के जाने के बाद
और दिन ढलता है तो वो रात आती है
फिर जब मैंने भी बैठकर
अपनी ज़िन्दगी को सोचा
तो मुझे वो रात मेरे जैसे ही लगने लगी
-तरुण

बुधवार, 27 अगस्त 2008

ख्वाब

तेरी आँखों में छुपाये है मैंने
ख्वाब सभी उन रातो के
जब नींदे मेरी आँखों से
रूठी रूठी रहती थी
बस बोलती थी आवाज़ तेरी
मेरी साँसे भी चुप चुप रहती थी
कभी नाम तेरा लेता था मैं
कभी उठकर तेरे सायो को ढुँढता था
अक्सर रातो में चाँद से मैं
तेरे घर का पता पूछता था
घर से निकलता था मैं जब कभी
जाने कहा मैं रुकता था
और सुबह को अपनी रातो के मैं
कुछ भूले से लम्हे चुनता था
वो राते ऐसे जगाती थी
कि सुबह हर खोयी रहती थी
बस बोलती थी आवाज़ तेरी
मेरी साँसे भी चुप चुप रहती थी

-तरुण

गुरुवार, 14 अगस्त 2008

कौन है तू

कौन है तू
तुम कौन हो
कभी लगती हो मेरी ऐसे
कि मेरी बरसो से पहचान है तुमसे
मेरे जिस्म की नस नस में समाई लगती हो
मेरे लहू के कतरे कतरे में तेरा रंग मिला दिखता है
मेरी हर साँस जैसे तुझसे कुछ कहती है
मेरी हर आहट जैसे तेरे ही करीब जाती है
मेरी घर की दीवारों पे भी तेरा चेहरा दिखता है
और मेरे घर की हर चीज़ महकती है ऐसे
जैसे किसी ख्वाब में तुम छू गयी हो इनको
सुबह उठता हूँ तो आवाज़ तेरी यूँ आती है
जैसे चाय लेकर तुम बुला रही हो मुझको
और शाम को घर लौटकर जब आता हूँ
तो दरवाज़ा खुलते ही यूँ महकती है साँसे मेरी
जैसे तुम देर से इंतज़ार कर रही हो मेरा
रात को बिस्तर पे सोता भी हूँ तो
यूँ लगता है
पास लेटी तुम गुनगुना रही हो कोई नज़्म मेरी
कौन है तू
तुम कौन हो

-तरुण

मंगलवार, 12 अगस्त 2008

वो एक पल

वो एक पल बहुत लंबा था
वो एक पल जब मैं
छोड़कर आया था तुझको
वो एक पल जब मैंने
हाथ उठाकर अलविदा कहा था तुझको
वो एक पल जाने कैसे जिया था मैंने
वो एक पल जाने कितनी बार मरा था मैं

वो एक पल फिर भी
न जाने क्यूँ
बहुत याद आता है
याद आती है तेरी वो आँखे
जो कहती थी फिर आकर मिलना मुझसे
याद आती है तेरी वो मुस्कान
जो होठो पे बेमानी सी लगती थी उस पल
याद आती है तेरी वो बातें
कि जाओगे नही तो कैसे आओगे मुझे लेने
वो एक पल अब तक
बहुत तरसाता है
वो एक पल बहुत लंबा था
वो एक पल अब तक जी रहा हूँ मैं

-तरुण

गुरुवार, 31 जुलाई 2008

तुम भी वही हम भी वही

तुम भी वही
हम भी वही
बदली है तो ये जिंदगी

न चाह मेरी बुझी हुई
न ख्वाब तेरे सोये हुए
मेरा प्यार भी वही तो है
तेरी हसरते भी थमी नही
तुम भी वही
हम भी वही

न रास्ते कही मुडे हुए
न मंजिले बदली हुई
तेरे कदम भी वही तो है
मेरा साथ भी तो है वही
तुम भी वही
हम भी वही

दुनिया का चेहरा न बदला है
न फासले है सिमटे हुए
हमारी रात भी वही तो है
हमारा चाँद भी तो है वही
तुम भी वही
हम भी वही

तेरे हाथो में वही एहसास है
है तेरी बातो में वही कशिश
न आँखे मेरी कुछ और कहे
न मुस्कान मेरी है थमी
तुम भी वही
हम भी वही

-तरुण

रविवार, 27 जुलाई 2008

सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा

कल रात सुना है फिर से बम फटे
कल रात सुना है
इन्सां ने फिर इन्सां को कत्ल किया
फिर से बहा लहू सड़क पे
फिर से कितने जिस्मो के टुकड़े
पत्तो से बिखरे
कितने लोग गिरे
न जाने कितने मरे
और एक भीड़ ने फिर से वो मंज़र देखा

दो दिन पहले भी तो
ऐसा ही हुआ था
वो एक भीड़ रुकी थी कुछ पल के लिए
और फिर भूलकर वो खौफनाक लम्हे
सब चल दिए थे अपने अपने सफर पे

फिर होगा ये
शायद बार बार होगा
फिर से बेवजह
किसी और सड़क पे इन्सां का लहू ऐसे ही बहेगा
और ऐसे ही तो चल रहा है न जाने कब से
ये हिंदुस्तान
न जाने कब से यही तो हो रहा है
लोग मरते है सब देखते है
फिर चल देते है जैसे कुछ हुआ ही नही
शायद सोचकर ये की फिर न होगा
और कही ज़हन में वो गीत भी आता है
जो बचपन में सुना था न कितनी बार
कितनी बार जिसे गुनगुनाया भी था
"सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा "
वो विशवास फिर से विशवास जाग उठता है
और फिर से जिंदगी चलने लगती है
अगले किसी ऐसे ही हादसे के लिए
सब तैयार हो जाते है ...........

-तरुण

तेरी लकीर

मेरे हाथो की लकीरे बहुत छोटी है
जैसे सुबह की नींद के कुछ
जागते हुए से ख्वाब
कि इससे पहले अंजाम तक पहुंचे आँखे
सुबह की रौशनी से बुझ जाते है
वो कच्चे से ख्वाब

और जब से मिले हो तुम
ये लकीरे और भी छोटी लगने लगी है मुझको
जब कभी ढूंढता हूँ
तेरी लकीर इनमे
हर लकीर अधूरी सी नज़र आती है मुझको

कुछ सोचकर आज मैंने
एक छुरी से अपनी हथेली पे
तेरे नाम की
एक नयी लकीर बनाई है
जो मेरी हथेली के इस सिरे से दुसरे सिरे तक जाती है
और अब देखकर उसको
कुछ यकीन होता है
लगता है की जब तक है जिंदगी मेरी
तुम भी मेरी हो
मेरे साथ हो

-तरुण

मंगलवार, 22 जुलाई 2008

कल रात

कल रात
फिर वही ख्वाब
मेरी आँखों में आया

कल रात
आसमान का चाँद
मेरे घर की छत पे उतर आया

कल रात
फिर वही बात
चुपके से कही तुमने

कल रात
फिर वही एहसास
महसूस किया मैंने

कल रात
फिर तुम्हारा साथ
कुछ लम्हों को जिया मैंने

कल रात
तुम्हारा हाथ
अपने हाथो में लिया मैंने

कल रात
अपनी हर साँस
फिर तेरे नाम की मैंने

कल रात
छोटी सी मुलाक़ात
फिर एक जिंदगी दे गयी मुझको

आज सुबह
लेकिन वो रात
फिर चुपचाप लौट गयी
मैं फिर से तनहा रह गया
मैं फिर से तनहा रह गया


-तरुण

गुरुवार, 17 जुलाई 2008

मैं लौट रहा

आया था तेरी उम्मीद पे मैं
तेरी आस पे मैं लौट रहा
आया था तेरी एक पुकार पे मैं
तेरी आवाज़ पे मैं लौट रहा

कुछ कहने तुमसे मैं आया था
कुछ कहा मगर कुछ कहा नही
जो बातें सोची थी कभी
उस हर बात पे मैं लौट रहा

अधूरी थी जो कहानी मेरी
वो कहानी पुरी हो न सकी
तू मेरी जिन ख्वाबो में थी
उन ख्वाबो में मैं लौट रहा

मैं वही हूँ कुछ बदला नही
ये दुनिया थोडी सी बदली है
जिस दुनिया मैं तू मेरी थी
उस दुनिया में मैं लौट रहा

आया था तेरी उम्मीद पे मैं
तेरी आस पे मैं लौट रहा

-तरुण

बुधवार, 16 जुलाई 2008

एहसास

मेरी आँखों से जब टपके आंसू
तेरे प्यार का तब एहसास हुआ
सांसे बुझी धड़कने थमी
तेरी यादो ने जब मुझको छुआ

रुके कदम जब तेरे दर से उठा
कितनी बार न जाने मुड़कर देखा
हर कदम पे बोझ बढता रहा
न जाने कितनी बार रूककर मैं चला

साँसे भी तेरे बिन न चले
आँखों में भी तो कोई ख्वाब नही
तू आए तो चैन से सो लूँ दो पल
वरना नींदों की कोई रात नही

सुबह भी लगे कुछ फीकी फीकी
दिन भी एक अनजाने सफर सा कटे
किस शाम का मैं इन्तेज़ार करूँ
तेरे बिन हर लम्हा बदन मेरा जले ।

-तरुण

मेरे लिए

वो मेरे लिए
हर दर्द सहे
खामोश रहे चुप चुप सी रहे
सांसो की भी आवाजों को
वो बस होठो में समेटे रहे

आँखों से कहे
वो जो भी कहे
होठो से वो कुछ न कहे
मोती से आंसू टपके
मेरी बातो को जब वो कहे

सबकी बातों को
वो चुपचाप सुने
दुनिया की हर नज़र सहे
आँखों में छुपा ले सारे ग़म
हर सितम चुप सी वो सहती रहे

मेरी बातो पे
वो मुस्कुराती रहे
कभी मेरी आँखों से वो रूठी रहे
मैं कितना भी सताऊँ उसको
वो मेरी रहे बस मेरी रहे ॥

वो मेरे लिए हर दर्द सहे ..

-तरुण

शुक्रवार, 27 जून 2008

तेरा ख्याल

ek orkut message ke reply mein likhi gayee ..
(http://www.orkut.com/CommMsgs.aspx?cmm=53370&tid=5207754778237288188&na=4)

तपती जिंदगी की दोपहर से
निकलकर जब भी
तेरी यादों की छाँव में बैठता हूँ
वो तेरा ख्याल आज भी मुझे
उस गुज़रे से वक्त के मखमली
एहसास में ले जाता है
जहाँ तुम मेरे घर में मेरा साया बने हुई थी
मैं कभी हर साँस पे तेरा चेहरा देखता था
और कभी
तेरा चेहरा देखकर साँस लेता था
तू जब मुस्कुराती थी
जब भी तेरे हंसने की आवाज़ से
मेरा घर गूंजता था
तो ऐ जानम
मुझे मेरी जिंदगी मुकम्मल लगती थी
और फिर आज
उस गुज़रे से कल में जाकर
में अपनी जिंदगी महसूस कर लेता हूँ
वरना तेरे जाने के बाद ये जिंदगी जिंदगी तो नही लगती
तेरा ख्याल आज भी
मुझे साँसे देता है
और जब भी उन यादो की आवाज़
मेरे कानो में गूंजती है
कही नही कही मुझे
मेरी जिंदगी कुछ लम्हों को मुकम्मल सी लगती है


-तरुण

गुरुवार, 26 जून 2008

तेरी बातें तुझे सुनायी

साँसों की आवाजों से जब पूछा
आवाज़ तेरी ही आयी
मन की आँखों से जब देखा
तस्वीर नज़र तेरी ही आयी
दिल की राहो पे जब चला
एक मंजिल तेरी ही पाई
तू जो है वो तू ही तो है
तेरी ही बातें मैंने
हर बार तुझे सुनायी


-तरुण

सोमवार, 23 जून 2008

क्या मालूम था

मुस्कुराये थे कि शायद वक्त बदल जाएगा
क्या मालूम था गम ऐसे भी मिल जाएगा

रात भर जागकर कुछ तेरे ख्वाब सजाये थे
क्या मालूम था सुबह हर ख्वाब जल जाएगा

मुस्कानों को छुपाकर रखा था इस दिल में
सोचा न था दिल भी इन्सां सा बदल जाएगा

तू ही आकर सुना दे क्यूँ तू बेवफा हो गयी
मेरी मौत का वक्त शायद कुछ देर टल जाएगा

रोने के बहाने लाखो है कोई हंसने का न मिला
एक आवाज़ देदे दिल से ये बोझ निकल जाएगा

-तरुण

शनिवार, 21 जून 2008

जाने क्यूँ

होठो पे रहती थी एक खामोशी
जाने अब वो कहाँ गयी
कानो में सुनती थी एक सरगोशी
जाने कबसे वो सुनी नही
आँखों में थे कुछ ख्वाब कभी
जाने क्यूँ अब नींद आती नही
रुकता था कभी चलता था कभी
जाने क्यूँ अब यह होता नही
तुम जो मिले बदला हर पल
जाने क्यूँ फासले बस बुझे नही
तुम हो वह मैं हूँ यहाँ
जाने क्यूँ राहें हमारी मिली नही
जाने क्यूँ हम बस मिले नही ॥

-तरुण

शुक्रवार, 13 जून 2008

हर चोट भी नज्म लगती है

खून आए तो ज़ख्म लगती है
वरना हर चोट मूझे नज्म लगती है
- गुलज़ार

खून आए तो ज़ख्म लगती है
वरना हर चोट मूझे नज्म लगती है

तेरा नाम लेकर जी लेता हूँ कुछ पल
वरना ये साँसे भी कुछ कम लगती है

मैं किसको देखकर मुस्कुराऊँ यहाँ
हर एक आँख यहाँ नम लगती है

अब क्या सुनाऊं उन्हें अपनी दास्ताँ
मेरी आह भी उन्हें एक सितम लगती है


कुछ ऐसे बदला है ये रिश्ता तुमसे
तुम्हारी नजदीकियां भी अब गम लगती है


-तरुण

मंगलवार, 3 जून 2008

सिगरेट

सिगरेट सा मैं दिन रात सुलगता हूँ
हर लम्हा निकलता है धुआं
आहिस्ता आहिस्ता मैं जलता हूँ
तुम जो मिले कुछ ऐसे मिले
मिले कभी, कभी मिले नही
कभी मुस्कुराया मैं तेरे आने पे
तेरे जाने पे मैं रोया कभी
तुम साथ थे मगर साथ नही
ऐसे साथ पे मैं तरसा कभी
कभी जला मैं , फिर बुझा कभी
सुलगता रहा एक सिगरेट सा
एक सिगरेट सा मैं जलता रहा

-तरुण

लिखूं

तेरे मेरे
इस रिश्ते का
कोई अब अंजाम लिखूं
हर साँस पे
उठते सवालो का
कोई तो जवाब लिखूं
जुदाई के
हर लम्हे का
चलो अब मैं हिसाब लिखूं
तेरे लिए
जो सोची थी कभी
वो हर मैं बात लिखूं
बहुत तरसे है
बहुत तड़पे है
दुनिया के हर ज़ुल्म का
अब एक जवाब लिखूं

-तरुण

तेरे पीछे

कभी रात से पूछूं
वो भी न बतलाये
कभी चाँद से कुछ कहूँ
वो भी न कुछ सुनाये
सुबह भी बस
चुप चुप सी आए
शाम भी न जाने क्यों
हर पल शरमाये
फुलो में तेरा रूप छुपा है
कलियाँ भी सब तेरी आस लगाये
बादल बरसे जैसे तेरे लिए
हवा भी कुछ तेरी बातें सुनाये
एक मैं ही नही हूँ तनहा
जो बातें करूँ तेरी जानम
ये सारी दुनियाँ तेरे पीछे
बस तेरे पीछे चली जाए ...

-तरुण

तेरी आँखों का ही खेल है सब

तेरी आंखो का ही खेल है सब
वो चुप रहकर भी सब कहती है
मैं घंटो देखता हूँ उनको
वो ऐसे मेरी नजरो में रहती है

तेरी दिल की बातें वो करती है
लेकिन मेरे दिल की भी वो सुनती है
तुम रूठो तो वो खफा हो जाती है
मैं रूठो तो वो भी तरसती है

कभी कभी मेरी आँखे पे भी
वो दुआओं सा प्यार वो बरसाती है
जब मैं तेरी तरफ़ हाथ बढाता हूँ
वो निगाहों से मूझे बाँध लेती है

तेरी आंखो में वो कशिश सी है
जो मेरी ज़िंदगी को खींचे जाती है
मैं कितना भी दूर रहूँ तुझसे
वो मूझे तेरे करीब ले आती है

मैं तेरी आंखो में जब देखता हूँ
सागर सा गहरा एक प्यार मूझे दिखता है
कभी मैं डूब जाता हूँ उसमे
कभी वो मूझे उठकर चूम लेता है

मैं मायूस होता हूँ जब भी कभी
एक उम्मीदों का आसमान मूझे वो दिखाती है
मेरी नाकामियों में भी वो
मूझे एक जीत का एहसास वो दिलाती है

-तरुण

सोमवार, 5 मई 2008

तुम मेरी क्या हो

मैं जब तेरा नाम लेता हूँ
एक कविता वो लगती है
मैं जब तुझको बुलाता हूँ
एक दुआ सी सुनती है
तू जब मेरे करीब आती है
मुझे साँसे सी मिलती है
तू जब मुझसे रूठ जाती है
तो मेरी बस जान निकलती है
मैं कैसे कहूँ तुमसे कि
तुम मेरी क्या हो
मेरी ज़िंदगी की हर राह बस
तेरे कदमों से चलती है ...

-तरुण

शनिवार, 26 अप्रैल 2008

बहुत बेदर्द है ये दर्द तेरा जीने नही देता

बहुत बेदर्द है ये दर्द तेरा जीने नही देता
मैं मयखाना लिए बैठा हूँ ये पीने नही देता

बहुत कांटे चुभोये है इस ज़िंदगी ने मेरी रूह पर
न जाने जिस्म में कौन मेरे खून को बहने नही देता

आता है कभी कभी रहम बहुत अपने इस दिल पे
भूलता है जब ये तुमको मैं इसे भूलने नही देता

यूं तो कम नही है इस जहाँ में हमसफ़र मेरे
लेकिन ये रास्ता किसी को तुम्हारी जगह लेने नही देता

एक दिन बहुत रोया था मैं तुमको छोड़कर तनहा
न जाने क्यों अब गम भी तुम्हारा मुझे रोने नही देता

-तरुण

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008

तेरी उस मोहब्बत का क़र्ज़ लौटाऊँ भी तो कैसे

तेरी उस मोहब्बत का क़र्ज़ लौटाऊँ भी तो कैसे
जो वादे किए नही कभी वो निभाऊं भी तो कैसे

भीड़ में यूं लगता है की हर चेहरा मेरा अपना है
लौटकर उस अजनबी से घर में जाऊं भी तो कैसे

कभी पैमाने छलक गए , कभी मयखाना नही मिला
तुझे भुलाने की कोई और दवा अब पाऊँ भी तो कैसे

तनहा ही चला था सफर पे, अकेले ही जाना है
तेरे दो पल के साथ पे ज़िंदगी बिताऊँ भी तो कैसे है

शिकायत इस दिल से, एक गिला ख़ुद से भी है
तेरी उम्मीदों पे बस जिया, अब वो भुलाऊँ भी तो कैसे

तेरी उस मोहब्बत कर क़र्ज़ लौटाऊँ भी तो कैसे ...

-तरुण

गुरुवार, 24 अप्रैल 2008

और चेहरा बदल गया - एक कहानी

अभी दो ही महीने पुरानी तो बात है, जब वो नेहा के साथ था । दोनों कितने खुश थे । वो दिन रात नेहा के सपने देखता था उसकी ही बातें करता था । उसे ऐसा लगता था की नेहा को उसके लिए ही बनाया गया है ।
सुबह से शाम तक वो दोनों न जाने कितनी बातें करते थे कितनी कसमें खाते थे । ज़िंदगी भर साथ रहेंगे , कभी न जुदा होंगे और न जाने क्या क्या । अनिल तो उसे अपनी आँखों पे बिठाकर रखता था। जब कभी भी नेहा परेशान होती वो उसकी बातें बड़े प्यार से सुनता था, फिर उसे ऐसे समझता था की वो मुस्कुराने लगती थी। वैसे अक्सर नेहा एक ही बात पे परेशान होती थी वो अपने पिताजी के रवैये को लेकर । वो अनिल को पसंद नही करते थे और दिन रात उसे अनिल से न मिलने को कहते रहते थे। नेहा उनकी बातें सुनकर मायूस हो जाती थी फिर वो घर से बाहर निकलकर अनिल को फ़ोन करती थी । अनिल उसे घंटो समझाता था और कहता था की वो सब संभाल लेगा। नेहा उससे बात करके बहुत अच्छा महसूस करती थी । दोनों इन छोटी मोटी उलझनों के बावजूद बहुत खुश थे ।
फिर एक दिन दिन वही हुआ जिसका नेहा को डर था और अनिल भी नही चाहता था की ऐसा कुछ हो । नेहा की मौसी उसके लिए एक रिश्ता लेकर आयी थी । बात जान पहचान में थी इसीलिए सब जल्दी जल्दी हो रहा था । वो एक दो दिन में नेहा को देखने आने वाले थे । नेहा उस दिन बहुत परेशान थी अनिल ने उसे बहुत समझाया लेकिन जब वो नही समझी तो उसने कहा की वो उसके पिता जी से बात करेगा। शाम को उसने ये किया भी लेकिन बात नही हुई, बहस हुई । और नतीजा ये निकला की नेहा के पिताजी ने अनिल को नेहा से दूर रहने की धमकी ही दे डाली । लेकिन अनिल को लग रहा था की उसने बात तो कर ही ली है रात को जब नेहा का फ़ोन आया उसने नेहा को समझाने की कोशिश की । लेकिन नेहा रोती रही । फिर ये सिलसिला कुछ दिनों तक चलता रहा । और एक दिन नेहा का रिश्ता भी तय हो गया । अनिल उस रात बहुत रोया, शायद आँसुओ से वो नेहा का रिश्ता मिटाना चाहता था और उसने ये कर भी दिया । अगली सुबह जब वो उठा, तो वो काफ़ी अच्छा महसूस कर रहा था ऐसा लग रहा था की वो एक नयी दुनिया में आया है ।
उस दिन जब वो ऑफिस गया तो नए मूड में था । कुछ दिनों पहले उनके यह एक नयी लड़की ने ज्वायन किया था आज वो उसके पास जाकर उससे बातें करने लगा । कुछ दिनों में ये बातें दोस्ती में बदल गयी । और फिर एक दिन अनिल ने अंजलि को वो सब कह दिया जो एक बरस पहले उसने नेहा को कहा था । लेकिन अंजलि ने उस दिन उससे कोई बात नही की। वो बस खामोश ही रही । दो दिन बाद अंजलि ने अनिल से बात की , उसके माता पिता काफ़ी दूर एक छोटे से शहर में रहते है । उन्हें शायद ये सब पसंद न आए तो वो अनिल से हर सवाल का जवाब चाहती थी । सवाल शायद जाने पहचाने ही थे । अनिल ने इनका जवाब किसी और को भी दिया था । अनिल ने एक पल नेहा को याद किया और फिर सब कुछ भूल गया । फिर उसने अंजलि से वो सब वादे कर डाले जो उसने कुछ ही दिन पहले तोड थे । अंजलि आज बहुत खुश थी उसे वो सब मिल गया था जो वो चाहती थी और अनिल भी बहुत खुश था उसे भी अंजलि मिल गयी थी ।
और अब जब भी अंजलि कुछ घबराती है , अनिल उसे बड़े प्यार से समझाता है सब कुछ करने की कसमें खाता है। दो महीने में कुछ भी तो नही बदला । सब कुछ वैसे ही चल रहा है । बस एक नाम और एक चेहरा बदल गया है ।

-तरुण

रविवार, 20 अप्रैल 2008

ऐ रात तू ही बता दे

ऐ रात तू ही बता दे , कहाँ छुपा है मेरा चाँद
बरसों हुए आँख मिलाये, बरसों से नही देखा चाँद

जाए तू शहर शहर , गुज़रे तू हर राह से
तुमने तो देखा होगा, किस गली में निकला है मेरा चाँद

चाँद के बिना मैं आधा हूँ , जैसे काली रात अमावस
संदेसा तू दे दे उसको , मुझसे मिला दे मेरा चाँद

हर रात फलक के चाँद से पूछो, जाने क्यों वो भी न बताये
उसने तो देखा होगा , जब खिड़की में निकला होगा मेरा चाँद

-तरुण

मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

उससे पहले ही

मैं कुछ कहता
उससे पहले ही
उन्होंने सब कह दिया
मैं मुस्कुराता
उससे पहले ही
उन्होंने अपनी आँखों को झुका दिया
मैं उठता उनकी महफिल से
उससे पहले ही
उन्होंने हर शमां को बुझा दिया
कुछ आंसू छलकते आंखो से
उससे पहले ही
उन्होंने अपना दामन छुडा लिया
मैं मरता
उससे पहले ही
वो मुझको छोड़कर चले गए
मैं मरने से पहले ही मर गया ....
मैं मरने से पहले ही मर गया ...
-तरुण

रविवार, 13 अप्रैल 2008

तुझको जब मैं याद करूँ तो

तुझको जब मैं प्यार करूँ तो
ऐसे तुझको प्यार करूँ प्यार मैं
आईने से तू कुछ न पूछे
मेरी आंखो से तू ख़ुद को देखे

तुझको जब मैं याद करूँ तो
ऐसे तुझको याद करूँ मैं
मैं हर पल ख़ुद से पूछूँ
कौन हूँ मैं, क्या नाम है मेरा

तेरा जब मैं नाम लूँ तो
ऐसे तेरा नाम लूँ मैं
साँसे मेरी मुझसे ये पूछे
क्यों हमको ऐसे भुला है तू

अपने दिल से जब मैं बात करूँ तो
बस तेरी आवाज़ यूं आए
धड़कन मेरी खामोश हो सारी
तेरी बस बातें वो सुनाये


तुझको जब मैं प्यार करूँ तो ...
-तरुण

सोमवार, 7 अप्रैल 2008

मैं जी रहा हूँ

खाली खाली सा घर है मेरा
चुप चुप सी हर आहट है
न सरगोशी है कोई
न ही कोई सरसराहट है
तुम नही
तेरे ख्वाब भी नही
बस टूटी हुई सी एक चाहत है

मैं भी कही नही हूँ
जो हूँ मैं वो नही हूँ
भटकता हूँ मैं एक तलाश में
घर में कहाँ रहता हूँ
अनजाने से रास्तों पे चलता हूँ
कुछ अधूरी सी बातें कहता हूँ

तुम गए
ज़िंदगी गयी
खो गयी सब खुशियाँ मेरी
मैं रहा
साँसे रही
सब खो गयी मुस्कुराह्ते मेरी

ऐसे ही अब एक अधूरी सी
ज़िंदगी मैं जी रहा हूँ
कुछ मोती न छलक जाए आंखो से
इसीलिए
कुछ कतरे मैं हर लम्हा पी रहा हूँ
लेकिन
मैं जी रहा हूँ मैं जी रहा हूँ


-तरुण

लकीर

हर सुबह
अपने हाथो की
लकीरों को देखता हूँ
हर सुबह
उन लकीरों मैं
एक नयी लकीर को ढूंढता हूँ
क्या मालूम
मेरी रातो की
दुआओं को सुनकर
खुदा ने मेरे हाथ में
तेरी एक लकीर बना दी हो

-तरुण

वो कहते नही

मैं कहता हूँ वो कहते नही, बस आंखो में प्यार छुपाते है
मैं दुनिया को बताता रहता हूँ वो तन्हाइयो में हमे बुलाते है

मैं आसमानों की उंचाइयो पे उसकी उमीदो को सजाता हूँ
वो अपने घर के मन्दिर में, मेरा एक चिराग जलाते है

मैं गुलशन गुलशन घूमता हूँ, मिल जाए कोई कली उस जैसी
वो मेरे पुराने खतो को अपने तकिये के नीचे छुपाते है

एक आदत है जो हर शाम को मैं लौटकर घर जाता हूँ
वरना क्या दीवारों से भी कोई रिश्ते निभाए जाते है

क्यों मेरी कोई कहानी सुने, कोई क्यों मूझे दिलासा दे
जो चाँद से मोहब्बत करते है, वो रातो में आंसू बहाते है

-तरुण

जुदाई

पहले जो बातें होठो पे आती थी अक्सर
न जाने क्यों अब सीने में घुटी रहती है
जो आते थे ख्वाब रातो में कभी
न जाने क्यों वो आँखों में सिमटे रहते है
सुबह का सूरज भी न जाने क्यों
एक अजीब से बेचैनी लिए आता है
चाँद भी न जाने क्यों
अब चमकते हुए एक
एहसान सा दिखाता है
बस तुम ही तो गए हो
और तो कुछ भी नही बदला
फिर न जाने क्यों सब कुछ बदल गया है

-तरुण

विदा

फिर ऐसे ही
किसी एक मोड़ पे
आंखो में
कुछ ख्वाब छुपाये
चेहरे पे
एक मुस्कान सजाये
हाथो को
तुम्हारी तरफ़ उठाये
मैं तुम्हे
फिर मिलूंगा

मंगलवार, 1 अप्रैल 2008

भूले से भी भूल न जाना

भूले से भी भूल न जाना
नींद आए तो ख्वाब में आना

मैंने कब मांगी है खुशियाँ
मुस्कान नही तो आंसू बन आना

हो जब जब रात अमावस
मेरा चाँद तुम्ही बन जाना

जीवन की राहें बहुत मुश्किल है
दूर से ही लेकिन साथ निभाना

मिला लूँ सूर जब मैं खामोशी से
एक नगमा मेरे संग तुम भी गाना

भूले से भी भूल न जाना

-tarun

सोमवार, 31 मार्च 2008

कोई बात हमसे किया करो

हर शाम हमसे मिला करो
कोई बात हमसे किया करो

आए है हम भी तेरे शहर में
एक नज़र हमको भी दिया करो

आँखों में मेरी जो ख्वाब है
उन ख्वाबो में दस्तक किया करो

कभी नाम लेकर बुलाओ हमको
कभी याद हमे भी किया करो

बैठे है हम भी तेरी राह में
देखकर हमको भी कुछ कहा करो

कोई बात हमसे भी किया करो

-तरुण

शनिवार, 22 मार्च 2008

कभी मेरी सुनो कभी अपनी कहो

कभी मेरी सुनो कभी अपनी कहो
कुछ बात मगर तुम करती रहो

मिलता रहूँ मैं तुमसे ख्वाबो में
ऐसे मेरी आंखो में तुम सिमटी रहो

होठो पे रहे एक खामोशी
आँखों से तुम सब कहती रहो

मैं बैठकर तुमको देखता रहूँ
तुम धड़कन मेरे दिल की सुनती रहो

आए न कोई फासला कभी दरम्याँ
ये वादा तुम मुझसे करती रहो

कभी मेरी सुनो कभी अपनी कहो ...


-tarun

गुरुवार, 20 मार्च 2008

तुझे साथ मेरा निभाना है

ऐ रात तुझे न ढलने दूंगा, तुझे साथ मेरा निभाना है
कुछ ख्वाबो को जीना है, कुछ उम्मीदों को जगाना है

आसमाँ कि सारी उम्मीदों को एक एक करके संजोना है
कुछ मुस्कानों को जगाना है कुछ भूखे बच्चो को सुलाना है

दुनिया में फैली नफ़रत को एक प्यार का मतलब सिखाना है
कुछ जुबाँ पे फूल खिलाने है कुछ आदमी को इन्साँ बनाना है

वो देता है जब देता है, लेता है तो भी कुछ कहता नही
कुछ उसकी मर्जी से जीना है , कुछ अपनी तक्दीरो को बनाना है

तेरे मेरे इस रिश्ते को एक मायना अभी देना है
कुछ कसमें अभी खानी है , कुछ वादों को निभाना है

-तरुण

मंगलवार, 18 मार्च 2008

लड़कपन की यादें

एक चंचल भँवरे सा जब मैं हवाओ में उड़ता फिरता था
कभी इस बगियाँ में जाता था , कभी उन फूलों पे गिरता था

सपनो में खोया रहता था मैं, जब परियों की बातें करता था
कभी तारो को पकड़ता था, कभी चाँद पे मैं मिलता था

रातो को जागता रहता था मैं, जब सुबह के सपने बुनता था
कभी नींद देर से खुलती थी, कभी बिस्तर से मैं न निकलता था

मैं भी मोहब्बत करता था , जब मैं भी किसी पे मरता था
कभी उसकी गलियों से गुजरता था, कभी मुस्कानों पे उसकी गिरता था

किताबो से भागता रहता था मैं, जब इम्तिहानो से जी चुराता था
कभी पढते पढते सोता था, कभी सोते सोते मैं पढता था

एक चंचल भंवरे सा जब मैं हवाओं में उड़ता फिरता था .....

बुधवार, 5 मार्च 2008

वो भी क्या दिन थे


वो भी क्या दिन थे , जब आसमानों में परियाँ रहती थी
चाँद ज़मीं पे उतरता था जब दादी माँ कहानियाँ कहती थी

जब नादाँ पंछियों से हम दिन भर चहकते रहते थे
कभी टीचर गुस्सा करती थी, कभी मोहल्ले की शिकायत रहती थी

जब सुबह का सूरज आकर चुपके से हमे जगाता था
रात को जब डैडी कहानी सुनाते थे और माँ सोने को कहती थी

जब छोटी छोटी किताबो में बड़ी बड़ी तस्वीरे होती थी
कभी बादल आँखे दिखाते है कभी नदियाँ आँगन में बहती थी

जब एक झूठे रोने पे सब घंटो मनाते रहते थे
कभी नए खिलोने आते थे कभी ढेरों मिठाईयां मिलती थी

-तरुण

बदलते क्यों है

गुजरते वक्त के साथ , ये रिश्ते बदलते क्यों है
साथ चलना चाहे जिनके, वो बिछड़ते क्यों है

कतरा कतरा मिलकर जो बनते है बादल
बूंद बूंद बनके वो हवाओ में बिखरते क्यों है

वो खेलता है हमसे, कठपुतली से हम है
उसके खेल में दिल के रिश्ते पनपते क्यों है

है एक से सब इन्साँ , है एक सी ही फितरत
ये सरहदों के फासले, फिर इन्हे बांटते क्यों है

वो जिसकी यादें अक्सर रुलाती है हमे
उससे मिलने को हम दिन रात तरसते क्यों है

-तरुण

मंगलवार, 4 मार्च 2008

याद आता है

वो हर सुबह तुझे ऑफिस में ढूंढना याद आता है
और दिन भर तुझे छुप छुप के देखना याद आता है

वो हर बात पे तुझे फ़ोन करना, तुझसे पूछना और
वो बिना बात के तेरे फ़ोन की घंटी बजाना याद आता है

वो ज़रा ज़रा सी देर में उठकर तेरे करीब से गुजरना
कभी पानी लेने का, कभी गिराने का वो बहाना याद आता है

वो चाये के लिए तुझे बुलाना तेरे करीब जाना और
वो खाने की मेज़ पे तेरे आने तक कुछ न खाना याद आता है

वो घंटो तक बालकनी में खड़े होकर तेरा इंतज़ार करना और
वो तेरे जाने के बाद ऑफिस से निकलना याद आता है

-तरुण

सोमवार, 3 मार्च 2008

बस कमी तुम्हारी है

रात है ख्वाब है नींद की खुमारी है
तुम भी चले आओ, बस कमी तुम्हारी है

नज्म लिए हाथ में, तुझे करूँ याद मैं
लफ्ज़ अधूरे है, कहानी जैसे हमारी है

तू भी कहीं दूर है, दिल भी मजबूर है
धड़कने खामोश है, साँसे कुछ भारी है

हाथ में जाम है लब पे तेरा नाम है
होश नही होश में , क्या हसीं बीमारी है

चाँद भी है यहाँ , रात भी है जवाँ
बहकते हुए हम है दिल में बेकरारी है

-तरुण

रविवार, 2 मार्च 2008

जाने क्यों ये जाता ही नही

एक साया मेरे साथ है जाने क्यों ये जाता ही नही
तन्हाई का जो वादा है जाने क्यों ये निभाता ही नही

आंखो से छलकते थे मोती, जब याद मुझे वो आते थे
अब उनकी यादों को , जाने क्यों मैं बुलाता ही नही

मेरी बेवफाई के किस्से हर रात वो सबसे कहता है
अपनी कसमें आज भी , जाने क्यों वो निभाता ही नही

कभी खुशी कभी है ग़म, ज़िंदगी की ये रीत है
खुशी आयी मगर, ये ग़म है कि बस जाता ही नही

अब मयकदें में भी हमको मिलती नही शराब
उसका नाम जो लिया, साकी भी अब पिलाता ही नही

-तरुण

शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008

ये कैसा खुदा मिला है

ये कैसा खुदा मिला है जो हर पल बदलता है
रातो को ख्वाब हमे देकर दिन भर उनके साथ चलता है

मैं हर रात उफक पे जाकर सूरज को ढूंढता हूँ
न जाने कहाँ से आए, किस जगह पे ये ढलता है

वो अपनी कसम देकर अपनी मोहब्बत उठा लाये
क्या प्यार मोहब्बत में भी ऐसा सौदा चलता है

वो मेरे घर आकर, पूछे मेरा पता मुझसे
क्या ऐसे दिवानो से कोई ख्वाब अपने बदलता है

वो दरियाँ में जाकर ढूंढते है उसके खतो को
क्या पानी में मिला आंसू, ढूंढे से भी मिलता है

-तरुण

बस छूकर गुज़र गए

वो आए मेरी मजार पे , और बस गुज़र गए
हम फिर एक बार जीने को थे, फिर एक बार मर गए

एक एक लम्हा जुदाई का गुज़रे एक एक सदी में
कितने बरस तेरे साथ तो बस पल में गुज़र गए

हम हर उस जगह से गुज़रे जहाँ जहाँ तुम गए
तेरी आंखो का नशा देखकर बोतल में भी उतर गए

मेहमाँ तो बहुत आए थे मेरी महफिल में मगर
वो जिस तरफ़ थे, हमे छोड़कर मेहमाँ सब उधर गए

हम शहर की जिस गली से भी गुज़रे, तेरा ही चर्चा था
कड़कती धूप में क्यों छोड़कर हम अपना ये घर गए

-तरुण

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

तेरे कूचे से

तेरे कूचे से जब निकले , एक अपना ही सहारा था
दारियां में बस हम ही थे, न कश्ती थी न किनारा था

वो एक खुदा के आगे, खाती थी सारी कसमे
न कसमें वो उसकी थी, न खुदा वो हमारा था

उस एक रात की खातिर, जिए हम कितनी ज़िंदगी
वो एक दिन हमने कुछ ऐसे मर मर के गुज़ारा था

मैं उस वक्त के ख्वाब , अक्सर रातो को देखता हूँ
जब तुम अजनबी थे, मेरा कोई ख्वाब न तुम्हारा था

वो अजनबियों से जाकर कहता था मेरे किस्से
मेरी मोहब्बत का क़र्ज़ , उसने कुछ इस तरह उतारा था

-तरुण

बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

अभी बाकी है


न दफनाओ मुझको कि सीने में कुछ साँस अभी बाकी है
आँखे बंद है मगर दिल में कुछ ख्वाब अभी बाकी है

मैं कैसे मान लूँ कि तुम मुझे प्यार नही करती
जुबाँ कह चुकी मगर आँखो का एक जवाब अभी बाकी है

तुम जा रही हो ज़रा कुछ पल और ठहर जाओ
रिश्ता तोड़ने की रस्में, आंसूओ का एक रिवाज़ अभी बाकी है

सीने में छिपी हर बात को, लब तो कह नही सकते
तुम दिल से सुनो, धडकनों की एक आवाज़ अभी बाकी है

वो मेरा कत्ल करके टटोलते है मेरी रूहों को
मरने के बाद भी शायद एक और हिसाब अभी बाकी है

-तरुण

मेरी मजार पे


मेरी मजार पे एक चिराग जला गया कोई
बुझती उम्मीदों को एक आस दिखा गया कोई

आज की रात बहुत बेचैन है कटती ही नही
सुबह का एक ख्वाब इसे दिखा गया कोई

एक तेरे दर्द के बीमार थे हम, मर भी गए
उसकी दवा सारे शहर को पिला गया कोई

अपना चेहरा पहचानता तो था मैं लेकिन
एक आईना कल रात मुझे दिखा गया कोई

मैं एक कागज़ को लिए सोचता ही रहा तुझको
तेरी एक तस्वीर फलक पे बना गया कोई

-तरुण

रविवार, 24 फ़रवरी 2008

नही भूले

तेरी उम्मीदों में ख़ुद को सजाना नही भूले
तेरी यादो को रातो में हम जगाना नही भूले

मैं वापिस लौट आऊँगा, जो तु इक सदा दे दे
तेरी आवाजों पे हम ख़ुद को भुलाना नही भूले

वो कहते है मुझे पागल, मुझे दीवाना कहते है
हर हाल में हम तेरे दर पे जाना नही भूले

मेरी हर चाह में तु है , तु ही मेरी तमन्ना है
हर रात तुझे हम ख्वाबो में बुलाना नही भूले

तु मुझ बिन अकेली है, मैं तुझ बिन तरसता हूँ
ये फासले अब तक हमे तड़पाना नही भूले

-तरुण

शनिवार, 23 फ़रवरी 2008

अपनी आँखों का गम


अपनी आँखों का गम, हमे छुपाना नही आया
एक टूटा हुआ रिश्ता, हमे निभाना नही आया

कल शब भर चाँद खड़ा था मेरे दरवाज़े पे
बस आवाज़ देकर घर में, हमे बुलाना नही आया

हम अगर जिंदा है लेकिन ज़िंदगी साथ नही
और एक वादा मौत का , हमे निभाना नही आया

जो तेरे आशिक न होते हम भी तो क्या होते
कुछ और करके ज़िंदगी में , हमे दिखाना नही आया

वो मेरा नाम लेकर अब तलक आंसू बहाती है
मगर उसके प्यार का क़र्ज़, हमे लौटाना नही आया

-तरुण

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

तेरे बिना


कोई चेहरा मूझे नही अपना लगता तेरे बिना
ये घर मूझे घर सा नही लगता तेरे बिना

मैं रोता भी हूँ कि हँसता सा लगूँ
एक अश्क भी आंखो से नही ढलता तेरे बिना

रात भर बैठकर मैं चाँद को ढूंढ़ता रहूँ
कि चाँद भी अब नही चमकता तेरे बिना

है मयकदा भी खाली साकी भी परेशां है
एक पैमाना भी अब नही छलकता तेरे बिना

कोई फूल अब न महके कलियाँ भी गुमसुम है
एक भंवरा भी गुलशन से नही गुज़रता तेरे बिना

-तरुण

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

चलो


तुम छोड़ आओ उन रस्मों को
मैं इस घर को छोड़ देता हूँ
चलते है हम उन रास्तों पे
गुज़रते है उन राहों से
जो तेरे मेरे दरम्यां उन सब फासलों को मिटाती है
जो उन दीवारों के परे भी जाती है
जो न जाने कबसे रोके है मुझको
न जाने कबसे तुझको भी छुपाये है
इन छोटे छोटे लम्हों में न जाने कितनी सदिया बिताये है
चलो ढ़ूँढते है उस शहर को हम
वहाँ एक घर बनाते है
जहाँ सुबह का सूरज रात के ख्वाबो को सताता है
और रात में
जहाँ चाँद आँगन में उतरकर आता है
जहाँ चांदनी हर घर में जगमगाती है
हर रात को नींद न जाने कितने
ख्वाब संजोकर लाती है
चलो कुछ ऐसी हसरतों को सजाते है
इस जहाँ से अलग एक जहाँ हम बसाते है
-तरुण

माँ


जब एक नया जीवन पाने को मैं इतराता हूँ
इस दुनिया को देखने को मेरी आँखे जब तरसती है
तब एक मन्दिर के दीये सा मैं तेरी कोख में जल जाता हूँ

जब मुझको यहाँ की रीत न समझ में आती है
इस दुनिया के ताने बाने मुझको बेमानी से लगते है
तब एक नन्हें फूल सा मैं तेरी गोद में खिल जाता हूँ

यहाँ के झूठे सब रिश्तो से जब मैं टूट जाता हूँ
ढून्ढता हूँ जब मैं एक सच्चा प्यार कही
तब मैं एक प्यासे पंछी सा तेरे आँचल में छुप जाता हूँ

यहाँ के उलझे हुए रास्तों में जब मैं उलझ जाता हूँ
होता नही कोई राह दिखाने को जब
तब मैं उन राहों पे बस तेरी दुआओं से चलता जाता हूँ

जब इस जीवन का आखिरी समय आ जाता है
थक जाता हूँ मैं इस ज़िंदगी से
तब मैं एक पौधा बन फिर से तेरी कोख मैं उग जाता हूँ

-तरुण

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2008

कही तन्हाई में


कहीं तन्हाई में तुमने, मेरे खयालो को जगाया होगा
अपनी आंखो में , मेरी उम्मीदों को सजाया होगा

ये जो चाँद गायब है आसमान से कहीं
तुमने मेरा नाम लेकर उसको बुलाया होगा

ये जो नींद में सोई सी उतरी है सुबह ज़मीं पर
मेरी एक याद ने तुमको सारी रात जगाया होगा

ये जो हवा आयी है एक गीला सा बदन लेकर
हमारे फासलों ने तुमको भी एक बार रुलाया होगा

ये जो मेरी साँसों में महक उठी है खुशबू तेरी
तुमने मेरी तस्वीर को सीने से लगाया होगा

-तरुण

दस्तूर


सीने में धड़कता है दिल ऐसे , क़र्ज़ जैसे कोई लौटाता है

जीने की कोई चाह नही, एक दस्तूर सा बस निभाता है


मैं टुकडा टुकडा साँसों को जोड़कर, कुछ लम्हे संजोता हूँ

ये टुकडा टुकडा लम्हों को, तेरी यादो पे लुटाता है


मैं तेरे नाम को भूलकर, कुछ खुशियों को चुनता हूँ

ये अपनी सारी खुशियों में , तेरे गमो को बुलाता है


मैं मंदिरों में, मैं मस्जिदों में , ढून्ढता हूँ एक खुदा को

ये हर मन्दिर में, हर मस्जिद में, तेरी मूरत को सजाता है


वो कहते है तुझे भूलकर, मैं जीता भी रहूँ हँसता भी रहूँ

ये तेरी साँसों से जीता है , तेरी बातो पे ही मुस्कुराता है


-तरुण

वादा


अपने रिश्ते का ज़िक्र न तुम किसी से करना
न गुज़रुंगा मैं, न कभी तुम इन गलियों से गुजरना

मेरी हर याद को एक भूले ख्वाब सा तुम भुला देना
मेरी हर निशानी को किसी दरिया में चुपके से बहा देना

मैं भी तेरे नाम से अपना हर रिश्ता मिटा दूंगा
अपनी आंखो से तेरे हर अश्क को बहा दूंगा

चलो अपने हर ख्वाब को किसी कब्र में सुला दे हम
अपने रिश्तो को पुरानी किताबो में छुपा दे हम

अपनी सब कसमो को तोड़ने की एक कसम और खा ले
फिर कभी न मिलने का एक वादा और निभा ले .......

-तरुण

बुधवार, 13 फ़रवरी 2008

मैं आता हूँ चला जाता हूँ


साँसों की तरह हर वादा मैं निभाता हूँ
मैं आता हूँ चला जाता हूँ
कभी गाता हूँ मैं खुशियों में
कभी ग़मों में मैं खो जाता हूँ
चमकता हूँ चाँदनी रातो में कभी
कभी चिराग तले मैं छुप जाता हूँ
मत मान मुझे तू अपना सनम
मैं बस बादलों सा साथ निभाता हूँ
न होगा कही मेरे जैसा कोई
मैं हर चेहरा बदलता जाता हूँ

-तरुण

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2008

साहिल


बैठकर साहिल पे हर शाम
समंदर को देखता हूँ
लहर लहर वो ऐसे आता है
मेरी तरफ
जैसे तुम एक दिन दौड़ती हुई आयी थी
और सिमट गयी थी मेरी आगोश में
उस दिन लगा था जैसे
एक समंदर समां गया है
मेरी इन बाँहों में
फिर एक दिन
तुम लहरों सी ही लौट गयी
आज जब देखता हूँ
इन लहरों को
ऐसे लौटती है वो साहिल से
जैसे एक वादा कर रही हो
कह रही हो
तुम रुको
मैं अभी आती हूँ
लेकिन जब तुम गयी थी
तुमने तो कोई वादा नही किया था
न ही मुझसे कहा था
मेरा इंतज़ार करना
फिर भी न जाने क्यों
मैं हर शाम
उसी साहिल पे तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ
जहाँ से तुम एक दिन हाथ छुडाकर चली आयी थी
-तरुण

कौन है


चिराग तो सारे
बुझा दिए मैंने
फिर भी न जाने कौन
जल रहा है
कि अँधेरा नही होता
कब से ये परछाई मूझे पकडे है
न जाने क्यों मुझे छोड़कर नही जाती
कोई भी तो आवाज़ नही है
फिर न जाने क्यों
एक तन्हाई नही मिलती
मैं कबसे चुप हूँ खामोश हूँ
लेकिन न जाने कौन बोल रहा है
जो तन्हाई मेरे घर नही आती
मैंने खोल दिए है सब दरवाजे
फिर भी न जाने कौन है
खड़ा है किसी दरवाज़े पे कही
कि दस्तकें बंद नही होती
कौन है जो
न सामने आता है
न लौटकर जाता है

-तरुण

रविवार, 10 फ़रवरी 2008

तेरी तस्वीर


आज ये आसमानी
कैनवस पे
उसने कैसी तस्वीर बनाई है
एक तरफ बिखरे है
बादल ऐसे
जैसे तुने जुल्फें बिखराई है
खिलखिलाता है चाँद भी ऐसे
जैसे तू मुस्कुराई है
और दूर उफक पे
शाम का सूरज
ऐसे टिका है
जैसे तुने एक बिंदिया लगाई है
लगता है आज खुदा को
भी तेरी याद आयी है
और खोये हुए उस याद में
उसने तेरी एक तस्वीर बनाई है

-तरुण

मेरा चाँद


आज की रात
क्यों न
फलक से उतारकर चाँद को
उस फ्रेम में लगा लूं
जहाँ कभी तेरी तस्वीर रहा करती थी ,
जब खो जाएगा वो चाँद
तब एहसास होगा
इस दुनिया को
कितनी वीरान हो जाती है ये रात
बिना उस चाँद के,
तुम्हे गए न जाने कितने दिन हुए है
और तब से
मेरी हर रात बहुत गुमसुम है वीरान है

-तरुण

शनिवार, 9 फ़रवरी 2008

बूढ़ापा


एक बूढ़ा बच्चा
कागज़ की एक कश्ती को
समंदर में चला रहा है
जो वक़्त लौटकर नही आता
उन दिनों को
देखो कैसे बुला रहा है
बाल सब सफ़ेद हो गए है
लेकिन यादें शायद सब
साथ है
और जो कुछ भूल गया है
उन्हें फिर से जीकर
उस हर याद को जगा रहा है
बहुत अजीब होता है यह बूढ़ापा भी
खुद नही चल सकता लेकिन
ज़िंदगी भर की यादो को बोझ लिए चलता है
जो ख्वाब अधूरे है अब तक
उन ख्वाबो के लिए कुछ और चेहरे ढून्ढता है
और फिर उन्ही चेहरों में मरते मरते
अपनी एक नयी ज़िंदगी से मिलता है


-तरुण

मैं कहने तुमसे आया था


मैं कहने तुमसे आया था
लेकिन होठ मेरे कुछ कह न सके
और खामोशी की जो आवाज़ हुई
उसे तुम सुन न सके न समझ पाए

मेरी आँखे भी कुछ कह देती
लेकिन तेरी आंखो में वो डूब गयी
फिर होश उन्हें अपना न रहा
वो क्या कहती क्या समझाती

जब लौटकर मैं आया था
जब उठा था मैं तेरी महफिल से
एक उम्मीद पे मैं चलता ही रहा
न पकडा तुमने दामन को , न मुझको कोई आवाज़ ही दी ॥


-तरुण

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2008

मौसम आते जाते है


मौसम आते जाते है
हर साल सर्दी की ठंडी
हवाओ से
सब फूल पौधे कंपकपाते है
सारे पत्ते झड़ते जाते है
फिर बहार लौटकर आती है
महक उठती है सारी वादी
सब फूल पौधे फिर खिल जाते है
मौसम आते जाते है
लेकिन
जब से तुम गए हो
लौटकर नही आये
मैं भी ठिठुरा हूँ
मैं भी मुरझाया हूँ
बिखरा है मेरा भी पत्ता पत्ता
तुम लेकिन नही आये

-तरुण

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2008

एक गीत




एक अकेला पंछी ढूँढ रहा है घर का रास्ता

लौट गए है पंछी सारे
लौट गए है सब उसके साथी
कोई भी अब साथ नही है
रास्ता उसको याद नही है

पगला पगला घूम रहा है कोई नही उसे अपना लगता

लौट रही है शाम की लाली
लौट रहा है दिन का उजाला
हर तरफ वीराना है
रात से पहले घर जाना है

माँ की आँखे देख रही है कहाँ खोया है उसका चन्दा

-तरुण

सोमवार, 4 फ़रवरी 2008

कलाकार


एक कलाकार मैं भी हूँ
कभी कभी
लफ्जों को जोड़कर
कुछ मिसरे बनाकर
मैं एक नज्म कह देता हूँ
लेकिन अक्सर
ये होता है
मैं लफ्ज़ जोड़ता हूँ
लेकिन वो बिखरते जाते है
और बार बार
उन्हें जोड़ते जोड़ते
मैं ऐसे खो जाता हूँ
ऐसे मिल जाता हूँ उनसे
जैसे किसी ने मूझे
जोड़कर उन लफ्जों से
एक नज्म कह दी हो ।

रविवार, 3 फ़रवरी 2008

तनहा रात


चाँद को ढूंढे रात हमारी
अकेली है वो तनहा बेचारी
कहाँ छुपा है चाँद
न है अमावस
न उमड़कर आये है बादल
फिर न जाने क्यों दिखता नही है चाँद
अकेली है तन्हा हमारी रात
कहाँ छुपा है चाँद
तारे भी सारे टिम टिम चिडाए
झुरमुट बनाकर वो शोर मचाये
इस गली जाये उस गली जाये
फिर न जाने क्यों दिखता नही है चाँद
अकेली है तनहा हमारी रात

शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

बारिश की बूंदे


रात भर मेरे मकां की छत पे
बारिश की बूंदे टप टप टपकती रही
तुम्हारे जाने के हर एक पल को
हर के लम्हे को ये गिनती रही
बुनती रही
मेरे दिल के हर दर्द की हर आह को
ये सुनाती रही
हर एक आंसू की हर बूँद को
ये टपकाती रही
मुझे बताती रही
तुम्हे जिद्द थी
चले गए तुम
तुम्हारे जाने के गम को बहुत देर तक
यह संजोती
पिरोती रही
और अब जब तुम चले गए हो तो
हर रात मेरे मकां की छत पे
टप टप टपकती है
बहुत टपकती है ये बारिश की बूंदे ॥

-तरुण

बुधवार, 30 जनवरी 2008

घर


ये घर मेरा वो घर मेरा
ये लोग मेरे वो लोग मेरे
सवाल बहुत मामूली है
लेकिन ज़िंदगी बहुत उलझी है
कभी इस घर कभी उस घर
कभी इस देस कभी उस देस
मैं घूमता रहा भटकता रहा
न वहाँ कोई मिला
जो बाँध सका मुझको
न यहाँ कोई मिला
जो रोके मुझको
मैं चलता रहा सब बदलता रहा
न यह घर मेरा न वो घर मेरा
न यह लोग मेरे न वो लोग मेरे ॥

-तरुण

मंगलवार, 29 जनवरी 2008

तुम्हारी आंखे


जब जब ज़िंदगी ने मुझको किया निराश
जब जब मैंने पाया सुना सा आकाश
भटककर रास्तों में भुला अपने पथ को
खो गयी सब मंजिले और हुआ मैं हताश

तब तब मुझे याद आयी तुम्हारी आँखे
मुझमे आशा का दीपक जगाती तुम्हारी आँखे
राहों को मेरी करके आलौकित
मंजिलो कि तरफ मुझको ले जाती तुम्हारी आँखे

जब जब भी थककर मेरे कदम लगे रुकने
आगे बढना चाह तो पीछे लगे हटने
आँखों ने भी जब मेरा साथ यूं छोडा
साँसे भी मेरी जब जब लगी थमने

तब तब मुझे याद आयी तुम्हारी आँखे
साँसों में नया जीवन जगाती तुम्हारी आँखे
आँखों को मेरी नए सपने दिखाकर
आगे बढने की नयी चाहत जगाती तुम्हारी आँखे

जब जब भी मैंने असफलता को पाया
ज़िंदगी से भागा तो मौत ने भी ठुकराया
भुलाकर दुखो को खुश होने की सोची तो
खुशियों ने जब मुझसे दामन छुडाया

तब तब मुझे याद आयी तुम्हारी आँखे
असफलता में सफलता की मूरत सजाती तुम्हारी आँखे
दुखो को मेरे खुद सह सह कर
खुशियों को मेरे पास बुलाती तुम्हारी आँखे ॥

-तरुण

( १९९८ में लिखा गया )

सज़ा


वो जिसको मैं दीवाना कहा करता था
वो जो अक्सर रातो में गुनगुनाया करता था
सुना है कल रात वह पुलिस एनकाउन्टर में मारा गया
मिला न कोई उग्रवादी शायद इसीलिए फंस वो बेचारा गया
गुनाह तो बस उसका इतना था कि वो रातो को घूमता था
दिन में अँधेरा लगता था शायद इसीलिए
रातो में अपनी महबूबा को ढूढंता था
जो न जाने कितने बरस पहले उसको छोड़ गयी थी
गरीब था बेचारा इसीलिए दिल उसका वो तोड़ गयी थी
बहुत समझाया था लोगो ने कि वो अब न आएगी
कौन बच पाया है पैसे से जो वो बच के वापिस आएगी
लेकिन वो तो दीवाना था जो करता हर पल उसका इंतज़ार
ढूढंता था उसे हर राह में , पुकारता था उसको बार बार
दिन बीते महीने बीते ने जाने कितने बरस बीत गए
दोस्त छूटे , साथी छूटे दूर सारे मीत गए
वो बचा था और उसका दीवानापन था
एक धुन थी पागलों सी और एक पागलपन था
और कल रात के अँधेरे में गोलियां चली कहीं पर
आज सुबह एक गोलियों से छलनी लाश मिली वही पर
मर गया वो जिसको दीवाना सब कहते थे
बंद हो गयी आँखे जिसमे आंसू ही बस बहते थे
खबर फैली है लेकिन यह खबर तुम उसकी महबूबा तक भी पहुँचा देना
कहना एक आंसू अपने दीवाने के लिए तुम भी ज़रा बहा देना
वर्ना मरकर भी उसकी रूह भटकती जायेगी
इस बार तो गोलियां मिली है न जाने
अगली बार वो क्या सज़ा पायेगी ....

-तरुण

(written somewhere in 1997-98)

वो आती है जब जब


कभी कभी वो आती है जब जब
कभी कभी वो कुछ कहती है जब जब
हवाओं में घुल जाती है एक खुशबू और
तन्हाइयां भी एक सरगम गाती है तब तब

कभी कभी वो मुस्कुराती है जब जब
कभी कभी वो जुल्फें बिखराती है जब जब
बागों में बहारें लगती है झूमने और
आसमानों में घटायें छा जाती है तब तब

कभी कभी वो कुछ गुनगुनाती है जब जब
कभी कभी वो कुछ शर्माती है जब जब
हर तरफ पंछी लगते है चहचहाने और
बादलों में चांदनी छुप जाती है तब तब

-तरुण

(written sometime in 1999-200)


तुम


वो तुम जिसको मैं तनहाइयों में पुकारा करता था
वो तुम जिसको मैं ख्यालों में संवारा करता था
वो तुम कहाँ थे
वो तो एक परछाई थी
जो शायद सुबह होते ही मेरे पास आयी थी
और शाम होते ही वो सूरज के साथ डूब गयी
मैं तुम तुम करता रहा और नींद टूट गयी
अब न तुम थी न ही थी कोई परछाई
एक मैं था बस और थी
मेरी ज़िंदगी कि एक नयी लड़ाई ।

-तरुन

(written somewhere in 1999)

गुरुवार, 24 जनवरी 2008

पैगाम


कोई भी तो नही है जो पढ़ेगा इसको
फिर भी न जाने क्यों
मैं हर रोज़ हर सुबह
अपनी डायरी पे तेरे नाम एक पैगाम लिखता हूँ
लिखता हूँ मैं अपने दिल का सब हाल
पिछले दिन के हर एक पल का हिसाब मैं लिखता हूँ
कुछ सवाल जो तुझसे पूछने है
उन सब सवालो के जवाब मैं लिखता हूँ
कुछ नए वादे मैं तुझसे करता हूँ
और पिछली रात के भूले से ख्वाब मैं लिखता हूँ
जानता हूँ कोई न पढ़ेगा इसको
फिर भी न जाने क्यों हर रोज़ हर सुबह
मैं तेरे लिए कुछ दुआएं लिखता हूँ

-तरुण

सोमवार, 21 जनवरी 2008

तुम आज भी नही आये


सुबह हो गयी है
घडी का अलार्म न जाने कितनी बार बजकर बंद हो गया है
सुबह का अख़बार भी ज़माने भर की खबरें ले आया है
भाजीवाला भी ताज़ा ताज़ा सब्जी दे गया है
टीवी पर सुबह सवेरे का कार्यक्रम भी ख़त्म हो गया है
दादा जी भी सामने वाले पार्क में योग करके लौट आये है
लेकिन आज भी मेरे दरवाजे पे तुम्हारी कोई दस्तक नही हुई
तुम आज भी नही आये

-तरुण

गुरुवार, 17 जनवरी 2008

दो बातें


फासले सब मिट जाते है, दीवारें सब गिर जाती है
दो बाते जब हो जाती है

कुछ गम कम हो जाते है, कुछ खुशियाँ मिल जाती है
दो बातें जब हो जाती है

कुछ रिश्ते नए जुड जाते है, कुछ चाहते बन जाती है
दो बाते जब हो जाती है

कुछ आंसू कोई पोंछ देता है, कुछ मुस्काने होठों पे आ जाती है
दो बातें जब हो जाती है

कुछ रास्ते आसान हो जाते है, कुछ मंजिले मिल जाती है
दो बातें जब हो जाती है

-तरुण

दीवाना


वो मुझको दीवाना सा लगता था
सारा दिन बस चाँद तारो के साथ खेलता था
और उनकी ही बाते करता था
कभी कायनात में जाकर छुप जाता था
और कभी चाँद को ज़मीन पे बुलाता था
एक दिन तैश में आकर
मैंने भी बादलों पे चढ़कर
चाँद के गुब्बारे पे
कुछ तारे फेंककर मारे
कुछ उल्काओ के साथ गोटियाँ खेली
और कायनात में नए दोस्तो के साथ कुछ दिन गुजारे
अब मैं भी उनकी ही बाते करता हूँ
उनके ही किस्से कहता हूँ
शायद अब मुझे भी लोग दीवाना कहते होंगे॥

-तरुण

एक कविता


आँखे बंद करके, तुझे याद करके
मैं जब जब पेन उठाता हूँ
टूटे फूटे सपनो से , उलझे हुए शब्दों से
मैं जब जब कुछ लिख जाता हूँ
लगता है जैसे एक कविता बन जाती है

भूली हुई सी यादो में , चुपचाप सी बातो में
मैं जब जब खो जाता हूँ
खामोश सी एक पुकार से , दबे हुए एक प्यार से
मैं जब जब तुझे बुलाता हूँ
लगता है जैसे एक कविता बन जाती है

रोती हुई सी आंखो से , थमी हुई सी साँसों से
मैं जब जब चाह नयी बनाता हूँ
डरी हुई सी धडकनों से , रुके हुए से कदमो से
मैं जब जब तेरे करीब जाता हूँ
लगता है जैसे एक कविता बन जाती है

-तरुण

हिसाब


बहुत उलझा था मैं ज़िंदगी के हिसाब में
कुछ समझ ही न आता था
क्या कुछ मैं ले आया हूँ
और क्या पीछे छुट गया है
जो मिला वो शायद कम न था
लेकिन जो रह गया था
उसको सोचना भी मुश्किल था
फिर अचानक
आँखों से कुछ आंसू टपके
और लगा जैसे सब हिसाब हो गया

-तरुण

बुधवार, 16 जनवरी 2008

ज़िंदगी


बहुत लड़ती है मुझसे तू मेरी ऐ ज़िंदगी
जैसे मेरी हमसफ़र मेरी बीवी हो तुम
लेकिन कभी प्यार से बुलाती भी तो नही ,
हर एक बात पे ऐसे नखरे दिखाती हो
हर एक कदम पे ऐसे दूर चली जाती हो
जैसे मेरी माशूका मेरी महबूबा हो तुम
लेकिन कभी मेरा हाथ थामती भी तो नही
न कभी मुझसे कदम मिलाती हो
बस मुझसे लड़ती रहती हो, मुझको बहुत सताती हो ।
-तरुन

तेरे पास


ज़िंदगी क्या ज़रा सा हाथ ढीला करती है
मैं एक बच्चे सा हाथ छुडाकर तेरी तरफ चला आता हूँ
छोड़ आता हूँ वो दिन रात के झगडे
वो हर सांस कि कशमकश भी ज़िंदगी को ही दे आता हूँ
मैं तेरे पास चला आता हूँ
बैठता हूँ तनहाइयों में फिर से
तुमसे फिर कुछ बाते करता हूँ
आँखे बंद करके तुम्हे पास बुलाता हूँ
तेरी यादो को सोते से जगाता हूँ
घर में दरवाजों पे न जाने कितने चिराग जलाता हूँ
और खुली आंखो से फिर से कुछ नए ख्वाब सजाता हूँ
जब जब भी छोड़ती है मुझको अकेला ये ज़िंदगी
मैं भागकर तेरे आगोश में चला आता हूँ

-तरुन

मंगलवार, 15 जनवरी 2008

छोटू


मैं भी जब इस दुनिया में आया था
मुझे देखकर मेरी माँ भी मुस्कुराई थी
उसकी आंखो में भी मेरे लिए कुछ सपने जागे थे
उसके दिल ने भी शायद
मूझे कुछ दुआएं दी थी
आज माँ का तो चेहरा याद नही
लेकिन उसने
मूझे महलो की दुआएं दी होगी
सोचा होगा मेरे घर की भी एक छत हो
मेरे घर में भी हर बात का सुख हो
वो दुआएं सुन ली है भगवान् ने शायद
इसीलिए
मैं एक बडे से महल में रहता हूँ
सब मुझे छोटू कहते है
शायद प्यार से भी कभी ।
दिन भर मैं काम करता हूँ
लेकिन जब रात को सोता हूँ
तो मुझे माँ बहुत याद आती है
सुना है वो लौरी सुनाती है
और जब नींद न आये तो अपनी गोदी में छुपा लेती है
हर रात मेरी बिना ख्वाबो के चली जाती है
और हर सुबह
मैं भगवान् से एक ही दुआ माँगता हूँ
मुझे भी अगली रात के लिए कुछ ख्वाब दे दो
मैं भी कुछ सपने जीना चाहता हूँ
-tarun

गुरुवार, 10 जनवरी 2008

जेट लैग


दिन भर नींद से लड़ता था
दिन भर पलको के दरवाज़े खोलकर
नींद को भगाता रहता था
फिर भी न जाने कहाँ से नींद आकर
उन दरवाजों को बंद कर जाती थी
और चुपके से एक झपकी लग जाती थी

रात भर नींद का इंतज़ार करता था
रात भर आंखो को बंद करके
नींद को क़ैद करने की कोशिश करता था
फिर भी न जाने कहाँ से
उन बंद दरवाजों को खोलकर
नींद आकाश में उड़ जाती थी
और वह रात भी मेरी बिना नींद के चली जाती थी

-tarun

सोमवार, 7 जनवरी 2008

यादें


गुज़रते वक़्त को बहुत खींचा था मैंने
मगर जब यह गया
जब छूटा हाथो से
तो चटखकर इतनी दूर चला गया
कि जैसे बरस बीत गए हो
अभी कुछ दिनों ही की तो बात है
लेकिन कल रात जब मैंने
यादो का सूटकेस खोला तो
सब यादें मुरझा गयी थी
कुछ यादें तो शायद इंतज़ार में थी
मुझे देखा और दम तोड़ दिया
कुछ यादो कि उम्र शायद बहुत छोटी होती है

-tarun
(written in foster city on 4th january)