सोमवार, 7 अप्रैल 2008

जुदाई

पहले जो बातें होठो पे आती थी अक्सर
न जाने क्यों अब सीने में घुटी रहती है
जो आते थे ख्वाब रातो में कभी
न जाने क्यों वो आँखों में सिमटे रहते है
सुबह का सूरज भी न जाने क्यों
एक अजीब से बेचैनी लिए आता है
चाँद भी न जाने क्यों
अब चमकते हुए एक
एहसान सा दिखाता है
बस तुम ही तो गए हो
और तो कुछ भी नही बदला
फिर न जाने क्यों सब कुछ बदल गया है

-तरुण

1 टिप्पणी:

  1. चाँद भी न जाने क्यों
    अब चमकते हुए एक
    एहसान सा दिखाता है
    बस तुम ही तो गए हो
    और तो कुछ भी नही बदला
    फिर न जाने क्यों सब कुछ बदल गया है
    bahut hi behtarin

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