गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

डिवोर्स

वो जब से अपने पति का घर छोड़कर अपने मायेके आयी थी उसे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था। लेकिन उसके माँ बाप अच्छा महसूस कर रहे थे। वैसे वो अपने घर आती रहती थी लेकिन इस बार कुछ अलग ही हुआ था । वो रोहित से झगड़कर वापिस आयी थी। यूँ तो उनके बीच में कुछ न कुछ होता ही रहता था लेकिन इस बार कुछ ज्यादा ही हो गया । रोहित आजकल अपने ऑफिस में ज्यादा मसरूफ रहने लगा था और उस दिन तो उनकी शादी की दूसरी साल गिरह थी और वो रात को नौ बजे आया और वो भी बिना किस तोहफे के। वैसे तो रोहित ने बहुत कोशिश की थी लेकिन उस दिन क्नोट प्लेस में बोम्ब ब्लास्ट की वजह से साउथ एक्स की मार्केट भी जल्दी बंद हो गयी थी। बेचारे न सब जगह कोशिश की लेकिन कुछ न ले पाया। और आज तो कोई फूल वाला भी नही दिख रहा था। थककर वो घर चला गया और घर जाते ही जैसे हंगामा हो गया। उसने बहुत कोशिश की प्रीती समझ जाए लेकिन आज तो कुछ हद हो गयी। वो मान ही नही रही थी और लगातार कह रही थी की रोहित तुम बदल गए हो । तुम अब मुझसे प्यार नही करते । शादी से पहले तो छोटी छोटी बातो पे तोहफे देते थे अब तो फूल भी नही लाये । उधर रोहित ने बहुत कोशिश की लेकिन प्रीती कुछ सुनने को तैयार ही नही थी । वो समझाने की कोशिश करता रहा लेकिन कोई भी फायदा नही हुआ । जब बात बहुत बढ गयी तब रोहित ने कहा, अब बहुत हो गया अगर मेरे साथ रहना है तो चुप हो जाओ। इतना कहना था की प्रीती रोने लगी , कहने लगी तुम आज के दिन ये कह रहे हो। मैं तुम्हारे साथ बिल्कुल नही रहूंगी । रोहित कुछ और नही कह सका। आजकल रोहित ऑफिस की तरफ़ से बहुत परेशान चल रहा था और इसी वजह से प्रीती को पुरा वक्त नही दे पा रहा था। और थोडी देर में प्रीती अपना समान पैक करके अपने घर की तरफ़ जाने लगी । रोहित ने एक बार कहा प्रीती , न जाओ प्लीज़, लेकिन प्रीती नही रुकी और वो अपना घर छोड़ आयी । रोहित की आँखों में आंसू आ गए , वो बिस्तर पे जाकर चुपचाप लेट गया। आज सब कुछ खाली खाली लग रहा था। ऐसा लग रहा था की कुछ नही है। घर में ऐसा लग रहा था की तन्हाई ही बोल रही है और वो चुपचाप लेटा है ।
एक दिन गया दो दिन गए और धीरे धीरे एक महीना निकल गया । रोहित सोच रहा था की प्रीती उसके बिना नही रह सकती और लौट आएगी। लेकिन ऐसा तो कुछ नही हुआ । प्रीती लौटकर नही आयी न ही उसका कोई फ़ोन आया। वो अब दिन भर बैठकर अपने फ़ोन को देखता रहता था और घर पहुँचते ही सबसे पहले देखता था की कही प्रीती घर तो नही आ गयी है । पिछले २ सालो में शायद ये पहली बार हुआ था की वो एक महीना अलग रहे थे । लेकिन कुछ बातें शायद पहली बार ही होती है । प्रीती के जाने की ख़बर सुनकर रोहित की माँ उसके पास आ गयी थी और आजकल रोहित को समझा रही थी ।
इधर प्रीती तो बहुत चुप चुप रहने लगी थी उसे तो यकीन था कि रोहित उसे लेने दुसरे दिन ही आ जाएगा और अक्सर जब भी दरवाज़े पे कोई दस्तक होती वो भागकर दरवाज़ा खोलती थी लेकिन आज तक एक बार भी आने वाला नही आया था । आज अचानक बैठे बैठे वो सोचने लगी थी कि कैसे वो रोहित को मिली थी। कितनी खुश रहती थी वो उन दिनों । वो उस दिन जब पहली बार दिल्ली आयी थी तो कैसे रेलवे स्टेशन पे रोहित से अपनी मौसी के घर का पता पूछने लग गयी थी । उसे तो कुछ भी नही पता था और उसे लगता था कि शायद यहाँ सब कोई सब कुछ जानता था । रोहित को तो रोहिणी का कुछ पता भी नही था लेकिन जब उसने अपने सामने एक लड़की को इतने प्यार से पूछते देखा तो वो रुक गया । वैसे वो वहां आया नही था, जा रहा था । उसकी ट्रेन १५ मिनट में जाने वाली थी । अब प्रीती को कुछ भी नही पता था, तो वो थोड़ा समझाने लगा , लेकिन उसे ऐसा लगा कि ये तो नही पहुच पायेगी। उसने सोचा बाहर जाकर ज़रा एक ऑटो ले देता हूँ और जब बाहर आकर उसने ऑटो वाले से बात कि तो पता चला कि मैडम के पास पुरा पता ही नही है । लेकिन फ़ोन नम्बर है । उसने फ़ोन बूथ से जाकर फ़ोन करने को और पुरा पता लेने को कहा । रोहित वही उसके सामान के पास खड़ा होकर इंतज़ार करता रहा । दस मिनट हो गए और प्रीती नही आयी । रोहित की ट्रेन जाने को थी और वो वह खडा उसके सामान की रखवाली कर रहा था । एक बार उसे लगा की उसे जाना चाहिए लेकिन फिर न जाने क्यूँ वो रुक गया। फिर ३० मिनट के बाद जाकर मिस प्रीती आयी और वो भी गुस्से में । उसकी मौसी के घर किसी ने फ़ोन नही उठाया । रोहित को समझ नही आ रहा था क्या करे । बस कुछ सोचकर उसने कहा मेरी ट्रेन अब चली गयी है और मेरा एक दोस्त रोहिणी में ही रहता ही रहता है उसके पास चलकर देखते है वही से फ़ोन करके पता ले लेंगे। प्रीती को कुछ अजीब सा लग रहा था और अब तो वो थोड़ा डरने भी लगी थी उसकी माँ ने उसे ज़रा सावधान रहने को कहा था । अभी तो उसके घर पे भी कोई नही था वो सब लोग एक शादी में गए हुए थे इसीलिए उनसे भी बात नही कर पा रही थी । उसने भी कोई और रास्ता न देखकर जाने को कह दिया । फिर वो एक ऑटो में बैठकर रोहिणी पहुँच गए । वहाँ पहुंचकर रोहित ने अपने दोस्त का घर देखा तो वह भी ताला लगा था । फिर उन्होंने वही पास में एक फ़ोन बूथ से उसकी मौसी के घर फ़ोन किया और उन्हें पता चला कि वो लग पास में ही रहते है फिर वो प्रीती के साथ उसके मौसी के घर गया और कुछ देर वह बैठकर वो वापिस जाने लगा । जाते जाते प्रीती ने उसका धन्यवाद किया और बोला, "प्रीती" मेरा नाम है । और अपना फ़ोन नम्बर भी दिया । रोहित ने भी उसे अपना फ़ोन नम्बर दे दिया । जाते जाते रोहित ने कहा देखो अब कौन से स्टेशन पे मिलते है ।
अगले दिन जब रोहित घर से स्टेशन कि तरफ़ निकलने को था कि तभी उसका फ़ोन बजा । ये प्रीती का फ़ोन था वो बहुत परेशान लग रही थी उसका पर्स में से किसी ने पैसे निकाल लिए थे और वो साउथ एक्स में थी । रोहित का घर वहाँ से ज्यादा दूर नही था इसीलिए प्रीती ने उसे फ़ोन कर दिया था । अब रोहित फिर से सोचने लगा कि क्या करूँ? कुछ सोचकर फिर से वो हंसकर अपना सामान रखकर साउथ एक्स कि तरफ़ चल दिया । प्रीती वह कुछ २ महीने के लिए थे और कारण अकारण वो लोग किसी न किस तरह मिल ही जाते थे । और अब तो शायद वो अच्छे दोस्त बन गए थे । अब प्रीती वापिस जाने के लिए थी उसको चंडीगढ़ जाकर अपना कॉलेज अटेंड करना था । प्रीती चल गयी लेकिन उनका मिलना नही गया । किसी न किसी बहाने वो लोग मिलते ही रहते थे । ये सिलसिला २ साल तक चलता रहा और फिर प्रीती भी नौकरी के चक्कर में दिल्ली आ गयी। अब तो वो अक्सर मिलने लगे और उन्हें पता ही नही चला कि कब वो एक दुसरे कि ज़रूरत बन गए । प्रीती को कोई भी काम के लिए रोहित को ही फ़ोन करना होता था और रोहित को भी कोई न बहाना मिल जाता है प्रीती को मिलने का। एक दिन आख़िर रोहित ने प्रीती को शादी के लिए कह ही दिया । उसके माता पिता बहुत दिनों से उसके लिए लड़की देख रहे थे और अब रोहित को लगा कि प्रीती से अच्छी लड़की उसके लिए कोई नही हो सकती। लेकिन जब ये बात प्रीती ने सुनी तो उसे बहुत अजीब सा लगा, शायद उसने शादी के लिए सोचा भी नही था । अब तो सामने रोहित था जो उसे ऐसा कह रहा था । उसने रोहित को कहा वो कुछ सोचकर जवाब देगी।
आज रोहित बहुत परेशान था , प्रीती का सुबह से कोई भी फ़ोन नही आया था, और अचानक रात को ९ बजे प्रीती का फ़ोन आया, उसने कहा तुम्हे चंडीगढ़ चलना है , मेरे पापा तुम्हे मिलना चाहते है । रोहित को तो जैसे आसमान मिल गया , वो कुछ और कह ही नही पाया। और उसी सन्डे को वो चंडीगढ़ चला गया । प्रीती के पापा एक बिज़नसमैन थे और उनका अच्छा खासा बड़ा घर था । रोहित जब उनके घर गया तो प्रीती के मम्मी पापा के साथ उनके कुछ रिश्तेदार भी थे । सबने बैठकर रोहित से बात की । रोहित के परिवार के बारे में पूछा , रोहित के पापा सरकारी नौकरी में थे और वो लोग जयपुर रहते थे । बहुत देर तक बात चलती रही , रोहित बहुत सारी बातें सुनता रहा और कभी कभी कुछ कहता भी रहा । लेकिन जब वो प्रीती के घर से चला तो उसे कुछ अच्छा सा नही लग रहा था उसे लग रहा था वो एक अजीब सी दुनिया में आ गया है । यहाँ इंसान की कोई कीमत नही है उसके पैसे उसकी दौलत देखी जाती है । यूँ तो रोहित इंजिनियर है लेकिन उसके १ छोटा भाई और एक छोटी बहिन है जो अभी पढ रहे है इसीलिए उनका सब कुछ इतना अच्छा नही है । जाते जाते प्रीती उसे पीछे तक छोड़ने आयी। वो तो बहुत खुश लग रही थी । जाते जाते उसने रोहित को कहा कि कल आकर फ़ोन करती हूँ। और कल तो फ़ोन आया ही नही । फिर एक दिन और इंतज़ार करके रोहित ने प्रीती को फ़ोन किया । प्रीती अब कुछ खुश नही लग रही थी । और उसके पास बहुत सारे सवाल थे। शादी के बाद क्या होगा, कैसे रहेंगे , ये कैसे होगा वो कैसे होगा। रोहित ने बहुत देर तक उसे सब कुछ समझाया । और शायद प्रीती को कुछ कुछ समझ आने लगा था लेकिन उसके घरवाले इस शादी से खुश नही थे । रोहित ने भी अपने घर बात की । उसके घर वाले भी इससे कुछ खुश नही लगे लेकिन शायद वो कुछ ज्यादा कह नही पाये। और २ महीने के बाद रोहित और प्रीती ने शादी कर ली। शादी एक मन्दिर में हुई क्योंकि रोहित को दिखावा बिल्कुल पसंद नही था ।
शादी के सब वैसे ही हुआ जैसे होना चाहिए था । रोहित और प्रीती बहुत खुश थे । वो दोनों अपने आप में बहुत खुश रहते थे। कभी कभी प्रीती को रोहित की कुछ बातें अच्छी नही लगती थी लेकिन ऐसा कुछ नही होता था जो कही और न होता हो। बस प्रीती के घरवाले प्रीती से थोडी कम बात करने लगे थे, और रोहित के घरवाले प्रीती से कुछ ज्यादा ही एक्स्पेक्ट कर रहे थे । प्रीती इन सबके लिए बिल्कुल तैयार नही थी । तो कभी कभी वो रोहित को शिकायत करती थी । रोहित समझता था की ये सब तो करना ही पड़ता है ।
इन सबके बावजूद वो दोनों बहुत खुश रहते थे रोहित प्रीती को खुश रखने की बहुत कोशिश करता था और प्रीती भी रोहित पे जान देती थी । शायद किसी ने सही कहा है खुशी में वक्त का पता ही नही चलता और देखते देखते डेढ़ साल बीत गया । और अब रोहित के ऑफिस में काम का बोझ कुछ बाद गया था। इसीलिए रोहित ज़रा देर से घर आने लगा था । इसी के चलते शायद घर में नोंक झोंक होने लगी थी । रोहित बहुत कोशिश करता लेकिन वक्त नही निकाल पा रहा था । और उधर कुछ पैसे को लेकर भी हाथ ज़रा तंग होने लगा था। रोहित के पापा जयपुर में घर बना रहे थे तो इसलिए उन्होंने रोहित से कुछ पैसो को कहा था । अब हाथ तंग होने से प्रीती परेशान होने लगी थी । उसे ये बिल्कुल भी पसंद नही था । रोहित ने कितनी बार कोशिश की की प्रीती किसी बात पे खुश हो जाए लेकिन शायद वक्त खराब था वो जो भी करता उसका कुछ और ही हो जाता था । एक बार वो ऑफिस से छुट्टी लेकर घर गया लेकिन उसे पता चला की प्रीती की मम्मी आज दिल्ली आयी हुई है तो वो वह गयी है । उसका पूरा प्लान खराब हो गया । और इन्ही नोंक झोंक में उनकी शादी की सालगिरह आ गयी ।
तभी फिर से दरवाज़े पे दस्तक हुई । प्रीती भागकर दरवाज़े की तरफ़ गयी लेकिन इस बार भी वो नही था । प्रीती को कुछ समझ नही आ रहा था की वो क्या करे। उसके मम्मी पापा उसे रोहित के पास न जाने को कहते थे और उधर रोहित भी तो पता नही क्या सोच रहा था ।
रोहित पहले पहले तो बहुत परेशान रहता था लेकिन शायद अब उसे परेशान रहने की आदत हो गयी थी । आज प्रीती को गए १ महीना हो गया था और उसे लग रहा की कैसे वो एक महीने तक जी लिया । उसने ये कभी नही सोचा था । हर रोज़ न जाने कितनी बार उसने सोचा की उसे कॉल कर लूँ लेकिन हर बार रुक गया । और आज तो बैठे बैठे उसकी आँखों से आंसू आने लगे । उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो बहुत अकेला रह गया है ।
और अब हर रोज़ यही होने लगा । बस इंतज़ार ही चलता रहा लेकिन कोई भी एक कदम नही उठा सका । वक्त की रफ़्तार वैसे ही चलती रही और देखते देखते ६ महीने बीत गए । अब तो रोहित का ऑफिस भी ठीक हो गया था आजकल वो टाइम पे घर जाता था लेकिन किसके लिए ये उसे भी पता नही था । शायद किसी दिन फ़ोन करके प्रीती को बताना चाहता था । मगर फ़ोन नही कर पाया । एक दिन रोहित के ऑफिस में एक लैटर आया । उसने देखा ये प्रीती का लैटर था । उसकी खुशी का ठिकाना नही था । उसने जैसे ही लैटर खोलकर देखा वो एक दम से गिर गया । ये कोर्ट का नोटिस था, प्रीती ने उसको डिवोर्स का नोटिस भेज दिया था । रोहित तो ये कभी सोच भी नही सकता था । किसी तरह आज वो घर पहुँचा तो उसकी मम्मी से बात हुई। और वो कहने लगी मुझे तो पहले ही लगता था कि वो घर में नही रहेगी । उसने कहा माँ प्लीज़ । उसके बाद कुछ दिनों तक रोहित को कुछ अच्छा नही लगा । उसने प्रीती को कितनी बार फ़ोन करने की कोशिश की लेकिन हर बार कोई और ही फ़ोन उठाता था । इधर रोहित के मम्मी पापा ने जवाब देने का मन बना लिया था और उन्होंने नोटिस का जवाब दे भी दिया। न चाहते हुए भी जवाब चला गया ।
इधर प्रीती को भी समझ नही आ रहा था कि क्या हो रहा है उसके मम्मी पापा ने नोटिस भिजवा दिया था और उसे पता ही नही था । उसे तो तब पता चल जब रोहित का जवाब आया । और वो उसे देखकर रोने लगी । उसे विशवास ही नही हो रहा था कि उसका रोहित उसके बिना रह भी सकता है । लेकिन अब तो जवाब आ गया था उसके पापा ने उसे कहा देखो बेटा अब रोहित तुम्हारे साथ रहना नही चाहता है नही तो वो तुम्हे लेने आ ही जाता । प्रीती चुपचाप अपने कमरे में चली गयी और कितने दिन तक वही रही । लेकिन डिवोर्स का केस तो शुरू हो गया था । कुछ ही दिनों बाद दोनों अदालत में खड़े थे । आज रोहित को नयी दिल्ली का रेलवे स्टेशन याद आ रहा था । वो पहली मुलाक़ात । और आज शायद आखिरी मुलाकात । दोनों कोर्ट में पहुच गए । रोहित ने जैसे ही प्रीती को देखा, उसे वो हर दिन याद आने लगा जो उसने प्रीती के साथ गुज़ारा था और फिर अचानक से वो लम्हा याद गया जब उसने प्रीती को जाने को कहा था ।
उधर प्रीती ने जब रोहित को देखा तो वो भी अपने सरे सपनो के बारे में सोचने लगी । वो सब जो उन दोनों ने रातो को जागकर देखे थे । उसे लगा अभी तो सब कुछ शुरू ही हुआ था ये ऐसे कैसे ख़त्म हो रहा है । लेकिन दोनों एक दुसरे की दिल की हालत से बिल्कुल बेखबर थे । रोहित को लगता था ये प्रीती का डिसीजन है और प्रीती को लगता है ये सब रोहित चाहता है । थोडी देर में कोर्ट में वकीलों की बहस हुई और फिर उसके बाद दोनों से कुछ सवाल पूछे गए और फिर फ़ैसला हो गया । दोनों का डिवोर्स हो गया था । प्रीती वही रोने लगी और रोहित भी एक दम से चुप हो गया ।
और अहिस्ता अहिस्ता सब कोर्ट से जाने लगे । दरवाज़े से निकलते हुए रोहित को लग रहा था वो बिल्कुल अकेला हो गया । वो जिसके लिए वो सब कुछ करता रहा अब उसका नही था । प्रीती भी कुछ ऐसा ही सोच रही थी । उसे तो समझ ही नही आ रहा था ये कैसे हो सकता है । लेकिन ये हो गया था । बहुत हिम्मत करके रोहित ने एक बार प्रीती को बुलाया, "प्रीती", प्रीती को ऐसा लगा जैसे उसका रोहित उसे बुला रहा है लेकिन वो उसका रोहित नही था। रोहित ने प्रीती को कहा मुझे २ मिनट कुछ बात करनी है प्रीती की हाँ सुनकर वो उसे थोड़ा साइड पे ले गया और उसने कहा , प्रीती तुमने ऐसा क्यूँ किया । क्या ये ही सब हमने सोचा था । प्रीती को ये सब सुनते ही ऐसा लगा की क्या हो गया । फिर उसने कहा, रोहित मुझे लगा था की शायद तुम ये चाहते हो । लेकिन नोटिस तो तुमने भिजवाया था , रोहित ने जवाब दिया. प्रीती कहना चाहती थी लेकिन नही कह सकी की वो उसके पापा ने भिजवाया था । लेकिन उसने कहा तुमने जवाब भी तो दिया था । अभी रोहित कुछ कहने को था की उधर से उसके पापा की आवाज़ आयी।, रोहित बेटा देर हो रही है । रोहित कहते कहते रुक गया । उधर प्रीती की मम्मी भी उसके पास आ गयी थी । तो उनकी बात अधूरी ही रह गयी। और किसी ने कुछ नही कहा बस आंसू टपके , प्रीती और रोहित दोनों की आँखों से । डिवोर्स हो गया था, और बाकि सब लोग मुस्कुराते हुए चले जा रहे थे जैसे उन्हें वो सब मिल गया जो वो चाहते थे

-तरुण

सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

आओ न हम दिवाली मनाये

चलो न इस दिवाली पे
चाँद को फलक से
उतारकर अपने दरवाज़े पे लगाए
छत पे टिम टिम चमकते
तारो के लाखो चिराग जलाए
शाम के जलते लाल सूरज से
अपने घर के
हर कमरे को जगमगाए
उस दूर चमकते इन्द्रधनुष से
अपने आँगन में एक रंगोली बनाये
और सुबह की धीमी धीमी किरणों से
घर का कोना कोना चमकाए
आओ इस दिवाली पे
काएनात के रंगों से
हम
अपने घर को सजाये
चलो न हम दिवाली मनाये
उन गरज़ते बादलो से
थोडी थोडी गरज को लेकर
बिजली से उसकी
चुटकी चुटकी चमक को लेकर
आओ सब मिलकर पटाखे बजाये
चलो न हम दिवाली मनाये
चल न हम दिवाली मनाये
-तरुण

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008

मेरी लडाई

ये ज़िन्दगी मेरी है
इसका हर लम्हा, हर दिन मेरा है
मैंने ही चुनी है हर राह इसकी
हर मंजिल जो अब तक नही मिली
वो भी मेरी ही है
हर साँस की मुश्किलें
हर कदम की कशमकश
हर दिन की हर एक लडाई
बस मेरी ही है
मुझे ही लड़ना है
मेरी हर मुश्किल से
मुझे ही लड़ना है
मेरी हर उलझन से
और कभी मेरे इस मैं से
लड़ाई भी मेरी ही है
इस ज़िन्दगी की
हर एक हार भी मेरी ही है
उस हार से निकलती
आहों की हर आवाज़ भी मेरी ही है
लेकिन एक दिन
हार हार कर जीतने की
हर खुशी भी मेरी ही होगी
मेरी ही होगी वो सब मंजिले
जो मैं गिर गिर कर पाऊंगा
और उन जीत के लम्हों की
हर मुस्कान भी बस मेरी ही होगी
मेरी ही होगी

-तरुण

रविवार, 19 अक्तूबर 2008

लोकल ट्रेन

बहुत दिन हो गए
शायद साल बीत गए
ये रिश्ता तो फिर भी नही टूटा
आज भी जब तुम
मेरे सामने वाले प्लेटफोर्म पे खड़ी होती हो
तो दिल करता है कि एक बार फिर से
पटरियां कूदकर तुम्हारे पास चला जाऊं
और तुम फिर से मुझे हंसकर पागल कहो
तुम मुझे देखकर जो नज़रे हटा लेती हो
यूँ नज़रे हटा लेने से रिश्ते टूट तो नही जाते
आज भी अगर मैं लेट हो जाता हूँ तो
न जाने कितनी बार
तुम प्लेटफोर्म पे मुझे ढूंढती हो
मेरे आने तक इंतज़ार करती हो
कितनी बार तो मेरे लिए अपनी ट्रेन तक मिस कर देती हो
मैंने बहुत बार सोचा कि
इस ट्रेन को छोड़कर दूसरी ट्रेन में चला जाऊं
मगर न जाने क्यूँ
हर सुबह उसी टाइम पे उठ जाता हूँ
जिस वक्त पे तुम मुझे मिस्ड कॉल करती थी
औरआज भी मैं वैसे ही भागते भागते स्टेशन पे आता हूँ
जैसे तब आता था बस तुम्हे एक बार देखने के लिए
वैसे तुमने भी अब तक कुछ भी नही बदला
न ट्रेन बदली
न वो जगह बदली
बस सिर्फ़ मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुराती नही हो
शायद डरती हो अगर देख लिया तो
मैं फिर से तुम्हारे पास आ जाऊँगा
बहुत अजीब है ये रिश्ता हमारा
शायद आज तक कुछ नही बदला
न तुम बदली
न मैं बदला
और न ही
ये लोकल ट्रेन का टाइम बदला

-तरुण

बुधवार, 15 अक्तूबर 2008

एक बार मुझको सो जाने दो

न कोई बात तुम कहो
न कोई गीत आज गुनगुनाओ
दिल की कोई बात जुबान तक न आने दो
ये जो खामोशी है तन्हाई है
आज इसे बस चुप ही रहने दो
न जाने कब से आँखों में नींद लिए मैं चल रहा हूँ
न जाने कब से जिस्म मेरा टूट रहा है
आज बस मुझको सो जाने दो
वो ख्वाब जो कब से राह देख रहे है
एक बार उन्हें आँखों में आ जाने दो
बहुत थक गया हूँ मैं
अब हर शिकन को भूल जाने दो
एक बार मुझको सो जाने दो

तेरा एहसास

एक चाँद अधूरा
एक रात अकेली
एक मैं बैठा अपने घर में

एक सुबह का सूरज
एक शाम का साया
एक मेरे घर में तेरी फोटो

एक नुक्कड़ पे पान की दूकान
एक तेरे घर की बड़ी सी खिड़की
एक हर शाम का नया बहाना

एक रेडियो के रोमांटिक से नगमे
एक एग्जाम्स की जागती हुई राते
एक किताबो में तेरा नाम छुपाना

एक सर्दी में ठिठुरती साँसे
एक बारिश में भीगता आँचल
एक तुमने जो मुझे पुकारा

एक टप टप टपकती बारिश की बूंदे
एक दीवार पे लटकी घड़ी की टिक टिक
एक हर साँस पे मैं तुझको बुलाऊँ


-तरुण


गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

मेरी ज़िन्दगी

ये दर्द ये मुश्किलें ये रूह की खामोशी
ये हर साँस पे टूटती उम्मीदों की आवाजे
ये गिर गिर के चलना ये हर आहट से डरना
ये हर रात को आँखों से टपकते आंसू
ये थमती हुई सी दिल की कुछ धड़कने
ये बरसो से टूटा थका हुआ सा जिस्म
क्या यही है सच मेरा , मेरी ज़िन्दगी ?
-तरुण