रविवार, 19 अक्तूबर 2008

लोकल ट्रेन

बहुत दिन हो गए
शायद साल बीत गए
ये रिश्ता तो फिर भी नही टूटा
आज भी जब तुम
मेरे सामने वाले प्लेटफोर्म पे खड़ी होती हो
तो दिल करता है कि एक बार फिर से
पटरियां कूदकर तुम्हारे पास चला जाऊं
और तुम फिर से मुझे हंसकर पागल कहो
तुम मुझे देखकर जो नज़रे हटा लेती हो
यूँ नज़रे हटा लेने से रिश्ते टूट तो नही जाते
आज भी अगर मैं लेट हो जाता हूँ तो
न जाने कितनी बार
तुम प्लेटफोर्म पे मुझे ढूंढती हो
मेरे आने तक इंतज़ार करती हो
कितनी बार तो मेरे लिए अपनी ट्रेन तक मिस कर देती हो
मैंने बहुत बार सोचा कि
इस ट्रेन को छोड़कर दूसरी ट्रेन में चला जाऊं
मगर न जाने क्यूँ
हर सुबह उसी टाइम पे उठ जाता हूँ
जिस वक्त पे तुम मुझे मिस्ड कॉल करती थी
औरआज भी मैं वैसे ही भागते भागते स्टेशन पे आता हूँ
जैसे तब आता था बस तुम्हे एक बार देखने के लिए
वैसे तुमने भी अब तक कुछ भी नही बदला
न ट्रेन बदली
न वो जगह बदली
बस सिर्फ़ मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुराती नही हो
शायद डरती हो अगर देख लिया तो
मैं फिर से तुम्हारे पास आ जाऊँगा
बहुत अजीब है ये रिश्ता हमारा
शायद आज तक कुछ नही बदला
न तुम बदली
न मैं बदला
और न ही
ये लोकल ट्रेन का टाइम बदला

-तरुण

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