गुरुवार, 31 जुलाई 2008

तुम भी वही हम भी वही

तुम भी वही
हम भी वही
बदली है तो ये जिंदगी

न चाह मेरी बुझी हुई
न ख्वाब तेरे सोये हुए
मेरा प्यार भी वही तो है
तेरी हसरते भी थमी नही
तुम भी वही
हम भी वही

न रास्ते कही मुडे हुए
न मंजिले बदली हुई
तेरे कदम भी वही तो है
मेरा साथ भी तो है वही
तुम भी वही
हम भी वही

दुनिया का चेहरा न बदला है
न फासले है सिमटे हुए
हमारी रात भी वही तो है
हमारा चाँद भी तो है वही
तुम भी वही
हम भी वही

तेरे हाथो में वही एहसास है
है तेरी बातो में वही कशिश
न आँखे मेरी कुछ और कहे
न मुस्कान मेरी है थमी
तुम भी वही
हम भी वही

-तरुण

रविवार, 27 जुलाई 2008

सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा

कल रात सुना है फिर से बम फटे
कल रात सुना है
इन्सां ने फिर इन्सां को कत्ल किया
फिर से बहा लहू सड़क पे
फिर से कितने जिस्मो के टुकड़े
पत्तो से बिखरे
कितने लोग गिरे
न जाने कितने मरे
और एक भीड़ ने फिर से वो मंज़र देखा

दो दिन पहले भी तो
ऐसा ही हुआ था
वो एक भीड़ रुकी थी कुछ पल के लिए
और फिर भूलकर वो खौफनाक लम्हे
सब चल दिए थे अपने अपने सफर पे

फिर होगा ये
शायद बार बार होगा
फिर से बेवजह
किसी और सड़क पे इन्सां का लहू ऐसे ही बहेगा
और ऐसे ही तो चल रहा है न जाने कब से
ये हिंदुस्तान
न जाने कब से यही तो हो रहा है
लोग मरते है सब देखते है
फिर चल देते है जैसे कुछ हुआ ही नही
शायद सोचकर ये की फिर न होगा
और कही ज़हन में वो गीत भी आता है
जो बचपन में सुना था न कितनी बार
कितनी बार जिसे गुनगुनाया भी था
"सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा "
वो विशवास फिर से विशवास जाग उठता है
और फिर से जिंदगी चलने लगती है
अगले किसी ऐसे ही हादसे के लिए
सब तैयार हो जाते है ...........

-तरुण

तेरी लकीर

मेरे हाथो की लकीरे बहुत छोटी है
जैसे सुबह की नींद के कुछ
जागते हुए से ख्वाब
कि इससे पहले अंजाम तक पहुंचे आँखे
सुबह की रौशनी से बुझ जाते है
वो कच्चे से ख्वाब

और जब से मिले हो तुम
ये लकीरे और भी छोटी लगने लगी है मुझको
जब कभी ढूंढता हूँ
तेरी लकीर इनमे
हर लकीर अधूरी सी नज़र आती है मुझको

कुछ सोचकर आज मैंने
एक छुरी से अपनी हथेली पे
तेरे नाम की
एक नयी लकीर बनाई है
जो मेरी हथेली के इस सिरे से दुसरे सिरे तक जाती है
और अब देखकर उसको
कुछ यकीन होता है
लगता है की जब तक है जिंदगी मेरी
तुम भी मेरी हो
मेरे साथ हो

-तरुण

मंगलवार, 22 जुलाई 2008

कल रात

कल रात
फिर वही ख्वाब
मेरी आँखों में आया

कल रात
आसमान का चाँद
मेरे घर की छत पे उतर आया

कल रात
फिर वही बात
चुपके से कही तुमने

कल रात
फिर वही एहसास
महसूस किया मैंने

कल रात
फिर तुम्हारा साथ
कुछ लम्हों को जिया मैंने

कल रात
तुम्हारा हाथ
अपने हाथो में लिया मैंने

कल रात
अपनी हर साँस
फिर तेरे नाम की मैंने

कल रात
छोटी सी मुलाक़ात
फिर एक जिंदगी दे गयी मुझको

आज सुबह
लेकिन वो रात
फिर चुपचाप लौट गयी
मैं फिर से तनहा रह गया
मैं फिर से तनहा रह गया


-तरुण

गुरुवार, 17 जुलाई 2008

मैं लौट रहा

आया था तेरी उम्मीद पे मैं
तेरी आस पे मैं लौट रहा
आया था तेरी एक पुकार पे मैं
तेरी आवाज़ पे मैं लौट रहा

कुछ कहने तुमसे मैं आया था
कुछ कहा मगर कुछ कहा नही
जो बातें सोची थी कभी
उस हर बात पे मैं लौट रहा

अधूरी थी जो कहानी मेरी
वो कहानी पुरी हो न सकी
तू मेरी जिन ख्वाबो में थी
उन ख्वाबो में मैं लौट रहा

मैं वही हूँ कुछ बदला नही
ये दुनिया थोडी सी बदली है
जिस दुनिया मैं तू मेरी थी
उस दुनिया में मैं लौट रहा

आया था तेरी उम्मीद पे मैं
तेरी आस पे मैं लौट रहा

-तरुण

बुधवार, 16 जुलाई 2008

एहसास

मेरी आँखों से जब टपके आंसू
तेरे प्यार का तब एहसास हुआ
सांसे बुझी धड़कने थमी
तेरी यादो ने जब मुझको छुआ

रुके कदम जब तेरे दर से उठा
कितनी बार न जाने मुड़कर देखा
हर कदम पे बोझ बढता रहा
न जाने कितनी बार रूककर मैं चला

साँसे भी तेरे बिन न चले
आँखों में भी तो कोई ख्वाब नही
तू आए तो चैन से सो लूँ दो पल
वरना नींदों की कोई रात नही

सुबह भी लगे कुछ फीकी फीकी
दिन भी एक अनजाने सफर सा कटे
किस शाम का मैं इन्तेज़ार करूँ
तेरे बिन हर लम्हा बदन मेरा जले ।

-तरुण

मेरे लिए

वो मेरे लिए
हर दर्द सहे
खामोश रहे चुप चुप सी रहे
सांसो की भी आवाजों को
वो बस होठो में समेटे रहे

आँखों से कहे
वो जो भी कहे
होठो से वो कुछ न कहे
मोती से आंसू टपके
मेरी बातो को जब वो कहे

सबकी बातों को
वो चुपचाप सुने
दुनिया की हर नज़र सहे
आँखों में छुपा ले सारे ग़म
हर सितम चुप सी वो सहती रहे

मेरी बातो पे
वो मुस्कुराती रहे
कभी मेरी आँखों से वो रूठी रहे
मैं कितना भी सताऊँ उसको
वो मेरी रहे बस मेरी रहे ॥

वो मेरे लिए हर दर्द सहे ..

-तरुण