बुधवार, 27 अगस्त 2008

ख्वाब

तेरी आँखों में छुपाये है मैंने
ख्वाब सभी उन रातो के
जब नींदे मेरी आँखों से
रूठी रूठी रहती थी
बस बोलती थी आवाज़ तेरी
मेरी साँसे भी चुप चुप रहती थी
कभी नाम तेरा लेता था मैं
कभी उठकर तेरे सायो को ढुँढता था
अक्सर रातो में चाँद से मैं
तेरे घर का पता पूछता था
घर से निकलता था मैं जब कभी
जाने कहा मैं रुकता था
और सुबह को अपनी रातो के मैं
कुछ भूले से लम्हे चुनता था
वो राते ऐसे जगाती थी
कि सुबह हर खोयी रहती थी
बस बोलती थी आवाज़ तेरी
मेरी साँसे भी चुप चुप रहती थी

-तरुण

गुरुवार, 14 अगस्त 2008

कौन है तू

कौन है तू
तुम कौन हो
कभी लगती हो मेरी ऐसे
कि मेरी बरसो से पहचान है तुमसे
मेरे जिस्म की नस नस में समाई लगती हो
मेरे लहू के कतरे कतरे में तेरा रंग मिला दिखता है
मेरी हर साँस जैसे तुझसे कुछ कहती है
मेरी हर आहट जैसे तेरे ही करीब जाती है
मेरी घर की दीवारों पे भी तेरा चेहरा दिखता है
और मेरे घर की हर चीज़ महकती है ऐसे
जैसे किसी ख्वाब में तुम छू गयी हो इनको
सुबह उठता हूँ तो आवाज़ तेरी यूँ आती है
जैसे चाय लेकर तुम बुला रही हो मुझको
और शाम को घर लौटकर जब आता हूँ
तो दरवाज़ा खुलते ही यूँ महकती है साँसे मेरी
जैसे तुम देर से इंतज़ार कर रही हो मेरा
रात को बिस्तर पे सोता भी हूँ तो
यूँ लगता है
पास लेटी तुम गुनगुना रही हो कोई नज़्म मेरी
कौन है तू
तुम कौन हो

-तरुण

मंगलवार, 12 अगस्त 2008

वो एक पल

वो एक पल बहुत लंबा था
वो एक पल जब मैं
छोड़कर आया था तुझको
वो एक पल जब मैंने
हाथ उठाकर अलविदा कहा था तुझको
वो एक पल जाने कैसे जिया था मैंने
वो एक पल जाने कितनी बार मरा था मैं

वो एक पल फिर भी
न जाने क्यूँ
बहुत याद आता है
याद आती है तेरी वो आँखे
जो कहती थी फिर आकर मिलना मुझसे
याद आती है तेरी वो मुस्कान
जो होठो पे बेमानी सी लगती थी उस पल
याद आती है तेरी वो बातें
कि जाओगे नही तो कैसे आओगे मुझे लेने
वो एक पल अब तक
बहुत तरसाता है
वो एक पल बहुत लंबा था
वो एक पल अब तक जी रहा हूँ मैं

-तरुण