मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009

तेरे नाम से पी ले

मिलता नही है जाम चलो तेरे नाम से पी ले
रात है बहुत दूर तो चलो अब शाम से पी ले

साकी नही है कोई आज न मयखाना है मेरा
शराब मिले कभी तो कभी ख्याल-ऐ-जाम से पी ले

बाज़ार में है तो क्या ज़रूरी कोई खरीदार भी मिले
मिलता है कभी दाम तो कभी बेदाम से पी ले

उसका है शहर में नाम तो तेरा भी क्यूँ न हो
शोहरत मिले कभी तो कभी बदनाम से पी ले

खुदा के लिए छोड़ी कभी खुदा ने पिलाई तुझे
हर बोतल में है भगवान् तो कभी राम से पी ले

कितना चलेगा तू इन राहो की न कोई मंजिल
बैठ कुछ पल को कही आज और आराम से पी ले

-तरुण

सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

मुश्किल है

हर बार तेरे दर से खाली लौट आना मुश्किल है
तुझसे नज़रे मिलाकर फिर झुकाना मुश्किल है

तेरी आँखों में न जाने कितने चाँद मैंने देखे है
तेरे बिना अब यूँ तनहा राते बिताना मुश्किल है

तुम कहो तो हर एक साँस अपनी छोड़ आऊं मैं
तेरी यादो को लेकिन अब भूल पाना मुश्किल है

तेरे चेहरे ने कितनी बार मेरी सुबह सजाई है
बिन तेरे रातो को कोई ख्वाब बनाना मुश्किल है

तेरा हाथ छूने से मुझे एक रूह मिल गयी थी
तेरे उस एहसास से ख़ुद को भुलाना मुश्किल है

-तरुण

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

वो लड़की बहुत याद आती है

हर शाम कुछ ऐसे मुस्कुराती है
कि वो लड़की बहुत याद आती है

चाँद छूपता है जब बादलो में कभी
उसकी शरारते आँखों में छलक आती है

मेरे दरवाज़े पे दस्तक देता है कोई
पर आवाजे अपना रास्ता भूल जाती है

तेरे वादों पे जिऊं कब तक ऐसे
हर साँस ये कहकर लौट जाती है

कुछ ऐसा है तुमसे ये रिश्ता मेरा
मुस्कुराहटें भी आँखे नम कर जाती है

-तरुण

बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

अब मुझको सो जाने दो

अपने पहलू में आज मुझे छुप जाने दो
बहुत थक गया हूँ अब मुझे सो जाने दो

तुम भी चले आओ मयखाने में आज की रात
आज की रात को मयखाने में डूब जाने दो

जब तेरे बारे में लिखता हूँ तो कुछ सूझता नही
तुम अपने तस्वीर को कागज़ को उतर जाने दो

तेरी आँखों से मैंने मोहब्बत का चलन सिखा है
तुम इन आँखों को अब मुझको न नज़र आने दो

क्या लेकर आया था जब तुम मिले थे मुझको
उस प्यार को फिर फिजाओ में बिखर जाने दो

बहुत थक गया हूँ अब मुझको सो जाने दो ...
-तरुण

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

कौन किसको माँगा करता है

written in response of a message at orkut
(http://www.orkut.com/Main#CommMsgs.aspx?cmm=17146748&tid=5298475366884671938&na=4&nst=1&nid=17146748-5298475366884671938-5299850108606710210 )
वो मेरे अश्को पे बस मुस्कुराया करता है
मैं वफ़ा करती हूँ वो दिल दुखाया करता है

नही जानता वो की दर्द-ऐ-मोहब्बत क्या है
जो अँधेरी रातो में वो चिराग जलाया करता है

मुझसे पूछो अगर तो मैं नाम उसका बतलाऊँ
कौन मेरी मजार पे अब तक फूल बिछाया करता है

काश तुम होते अगर यहाँ तो तुम्हे भी दिखलाती
ये दिल कैसे आँखों में अश्को को छुपाया करता है

चले जाओ लेकिन देखेंगे कौन भूलता है किसको
कौन हर सुबह दुआओं में किसको माँगा करता है

-तरुण