रविवार, 28 फ़रवरी 2010

किसी तरह

ये रात बिना नींद के गुजर जाये किसी तरह
सुबह के साथ तू भी मेरे घर आये किसी तरह

तडपते चाँद को रात ने बहलाया है बार बार
मूझे बस तेरा एक ख्वाब मिल जाये किसी तरह

मेरी हर आवाज़ तेरे दर से खाली लौट आती है
कभी एक पुकार पे तू भी आ जाये किसी तरह

मैं लोगो कि भीड़ में अक्सर खोया रहता हूँ
कभी किसी भीड़ मैं तू भी खो जाये किसी तरह

छोटी छोटी उम्मीदों से मैंने कितने आस्मां सजाये है
एक तेरा चाँद बस मेरी गली उतर जाये किसी तरह ..

-तरुण