गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

फुर्सत

 कभी दिन गुजरते थे सालो में 
अब तो 
बरस दिनों में गुजरते है 
कभी फुर्सत में ख्वाब देखते थे
अब तो 
बस ख्वाबो में फुर्सत मिलती है 
ज़िन्दगी भी कितने रंग बदलती है ....

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

मैं जब जब भी आईने से मिलता हूँ

मैं जब जब भी आईने से मिलता हूँ 
अपने चेहरे से जुदा जुदा मैं दिखता हूँ 

अंधेरो का कब खौफ था मुझको 
मैं तो उजाले में अक्सर गिरता हूँ 

ज़माना क्यूँ मुझे अपना सा लगता है 
अपने घर में तो अजनबी सा मैं फिरता हूँ 

जब तेरी याद ही काफी है जीने के लिए 
क्यूँ तुझे देखने के लिए मैं मरता हूँ 

अपने होठो से करदूं बयाँ मैं सच अपना 
इस जीने के लिए क्या क्या मैं करता हूँ 

मैं जब जब भी आईने से मिलता हूँ 
अपने चेहरे से जुदा जुदा मैं दिखता हूँ 

-तरुण 

गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

रिश्ता

जुबाँ से मत देना नाम 
इस रिश्ते को 
ये पाक़ रिश्ता मैला हो जायेगा 
जो अब तक 
मैंने न कहा तुमको 
और जो तुमने न कहा मुझको 
वो सब होठो पे आ जायेगा 
वो बेकरारी के लम्हे 
वो उम्मीदों की घड़ियाँ 
उन को एक मंजर मिल जायेगा 
मत दो नाम कोई इस रिश्ते को 
ये खुली किताब बन जायेगा 
कुछ रिश्ते क्यूंकि बंद किताबो 
में ही महफूज़ होते है 

-तरुण