बुधवार, 14 जनवरी 2009

तलाश

अपने हाथ को दे दो
मेरे हाथो में ऐसे
कि रिश्ता सा एक जुड़ जाए
तेरी साँसों का कतरा कतरा
मेरी नस नस में घुल जाए
इतना करीब मेरे आ जाओ
जुड़ जाओ मुझसे ऐसे
कि जब भी मैं खोलूं
आंखे अपनी
बस एक तेरा चेहरा ही नज़र आए
मुझमे मिल जाओ तुम कुछ ऐसे
कि मेरे इस जिस्म को
वो रूह मिल जाए
जिसके लिए न जाने कब से
तरस रहा हूँ तड़प रहा हूँ
न जाने कब से
एक कोरा कागज़ सा
मैं गलियां गलियां घूम रहा हूँ
न जाने कितनी सदियों से
मैं बस तुझको ढूंढ रहा हूँ
आज मिले हो तो बस
एक बार ऐसे मिल जाओ
मेरी इन साँसों को तेरी खुशबू मिल जाए
और जो मेरी तनहा सी ज़िन्दगी है
इसको तेरी आँखों का चाँद मिल जाए


-तरुण