शुक्रवार, 21 नवंबर 2008

जवाब

तुम अपनी आँखों से
पूछ लो एक बार
एक बार आईने के सामने
अपनी आँखों से आंखे मिला कर देखो
मिल जायेगा जवाब
उन सब सवालों का
जो दिन रात तुम्हारी आँखे
पूछती है मुझसे

-तरुण

चाँद ज़मीन पे उतरेगा

वो चाँद ज़मीन पे उतरेगा
आएगा मेरे आँगन में
सपनो की बगियाँ महकेगी
हलचल सी होगी तन मन में

तुम हाथ मेरा थामोगी जब
हर राह में मेरे साथ चलोगी
हर मंजिल मिल जायेगी
जब होगी तुम मेरे जीवन में

ये साँसे कुछ ऐसे महकेगी
तेरे आँगन में जैसे फूल खिले
नस नस में होगी खुशबू तेरी
तू होगी मेरी हर धड़कन में

मेरी साँसों पे जो सवाल उठे
तेरे नाम से उनको जवाब मिले
मेरे हाथो की लकीरे तुझसे है
तू है मेरे हर कण कण में


-तरुण

तुम आ जाओ एक बार

न जाने कब से
साँसे होठो पे अटकी है
न जाने कब से
दम घुट रहा है मेरा
न जाने कब से
आवाजे भी मेरी चुप है
तुम्हे बुलाना चाहता हूँ
मगर जुबां कुछ कहती नही
न जाने कब से
देखो कैसे पड़ा हूँ
इंतज़ार कर रहा हूँ तुम्हारा
दिन रात ऐसे ही बुझा रहता हूँ
लगता है कभी ज़िन्दगी जा रही है
मगर न जाने क्यूँ ये जाती भी नही
तुम बस आ जाओ एक बार
देखना कैसे फिर
साँसों को मेरी साँस मिलेगी
कैसे आवाजे मेरी बोलेगी
और मैं कैसे एक बच्चे सा फिर चह्कूंगा
तुम आ जाओ एक बार
और मेरे इस जिस्म को एक रूह दे दो

-तरुण

गुरुवार, 20 नवंबर 2008

इस रात को सुलाएं हम

ये रात अकेली है तनहा
इस रात को सुलाएं हम
वो ख्वाब जो कब से आँखों में सोये है
उनको एक एक करके जगाये हम
इस रात को सुलाएं हम

वो सुबह जो न जाने कबसे
दरवाज़े पे है थक गयी है
उसे घर में बुलाये, बिठाये हम

वो चाँद हमारा तनहा बेचारा
सुबह को वो भी तरस गया है
उस चाँद को ज़मीन पे लायें हम
फूलों की सैर कराएँ हम

इंसानों में फैली नफ़रत को
एक कच्चे ख्वाब सा भुला दे हम
कुछ प्यार के रिश्तो को
आज की रात सजाये हम
एक नयी दुनिया बसायें हम

उन भूखे तरसते बच्चो को
कुछ नए ख्वाबो का गुलदस्ता दे
उनकी हर उम्मीद को
एक नयी सुबह दिखाए हम
आज की रात
कुछ अलग कर दिखाए हम
चलो न इस रात को सुलाए हम


-तरुण

सोमवार, 17 नवंबर 2008

मेरी ज़िन्दगी की भी वही एक कहानी है

ये शाम देखा कितनी सुहानी है
हर तरफ़ जैसे बस तेरी कहानी है

ये जो आँखों से टपकते है आंसू
तेरे प्यार की एक ये भी निशानी है

आज कान्हा ने एक चेहरा है बदला
आज एक और मीरा दीवानी है

अब तेरे बिन घुटती है साँसे मेरी
और ये ज़िन्दगी बस एक परेशानी है

तुम चाँद से पूछ लो दास्ताँ उसकी
मेरी ज़िन्दगी की भी वही एक कहानी है

-तरुण

रविवार, 16 नवंबर 2008

दिन की हर शोख़ को ढलना होगा

दिन की हर शोख़ को ढलना होगा
फिर रात के साये में जलना होगा

फूलों की सेज पे जीने वालो
एक दिन कांटो पे भी चलना होगा

मैं तेरे करीब तो जाऊं लेकिन
फिर तेरी जुदाई में मुझे जलना होगा

तुम मेरी कसम खा के इतना बता दो
तुझे पाने के लिए क्या ख़ुद को बदलना होगा

आज कोई मुझे आवाज़ दे तो क्या
मेरी मजार से एक दिन सबको गुज़रना होगा

-तरुण