सोमवार, 21 दिसंबर 2009

फुर्सत नहीं मिलती

कभी ज़िन्दगी जीते जाने से फुर्सत  नहीं मिलती
कभी इसके गम भुलाने से फुर्सत नहीं मिलती

कभी तुम रूठी रहती हो तो एहसास नहीं होता
कभी तुझको मनाने से फुर्सत नहीं मिलती

कभी मेरी तरफ आ जाती है जन्नत की सदाएँ भी
कभी एक आहट जगाने से फुर्सत नहीं मिलती

कभी इन आँखों में मिलती है खुशियाँ ज़माने की
कभी अश्को को बहाने से फुर्सत नहीं मिलती 

कभी प्यालो मैं उतरते है मयक़दे शहर भर के
कभी एक जाम पी जाने से फुर्सत नहीं मिलती

कभी रात भर बैठकर चाँद से मैं तेरी बाते करता हूँ
कभी एक तेरा नाम लिए जाने से फुर्सत नहीं मिलती

-तरुण

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

उम्मीद

न जाने कितनी बार
गिरा था मैं
मगर हर बार
कभी पल दो पल में
और कभी कुछ देर ठहरकर
मैं उठ जाता था
और चल निकलता था अपने रास्तो पे
मगर उस दिन जब तुमने
मेरा हाथ छोड़ा था
मैं कुछ ऐसे गिरा था
कि अब तक नहीं उठ पाया हूँ
और अब तक गिरा हुआ मैं
बस एक दुआ मांगता हूँ
एक बार फिर से आकर
वैसे ही मुस्कुराकर
तुम अपना हाथ दे दो
तो मैं फिर उठ जाऊँगा
और मेरी यह ज़िन्दगी बच जाएगी ...

-तरुण

गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

I miss you India

यूँ तो सुबह यहाँ भी होती है
लेकिन सूरज चिड़ियों के संग
जहाँ घर घर जाकर सबको जगाता है
वो मेरा भारत है
यूँ तो दिन यहाँ भी गुजरता है
लेकिन जहाँ दिन का हर पल
हमारे साथ मिलकर शोर मचाता है
वो मेरा भारत है
यूँ तो शाम यहाँ भी ढलती है
लेकिन सुकून जहाँ शाम के साथ
हर नुक्कड़ हर घर मैं लौटकर आता है
वो मेरा भारत है
यूँ तो रात यहाँ भी जगती है
लेकिन जहाँ चाँद रात को
सबके लिए एक लौरी गाता है
वो मेरा भारत है
यूँ तो साल यहाँ भी जाते है
लेकिन जहाँ हर साल कितनी
यादो के मीठे से लम्हे दे जाता है
वो मेरा भारत है
यूँ तो ज़िंदगियाँ लोग यहाँ भी जीते है
लेकिन जहाँ इंसाँ  जीवन के हर
रस को पीकर जाता है
वो मेरा भारत है

I miss you india ....

तरुण

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

त्रिवेणी

तेरे रिश्ते को कब का दफ़न कर आया हूँ
फिर भी तेरा एहसास है कि जाता नहीं

रिश्तो कि भी शायद कोई रूह होती होगी

                *****

तेरी हर एक याद को दरियां में बहा आया हूँ
तेरी हर आहट को ख़ामोशी में सुला आया हूँ

आजकल बहुत अकेला अकेला सा लगता है

              *****

एक बार रोते हुए माँ से चाँद को माँगा था
अब हर रात खुदा से एक तुझे मांगता हूँ

काश एक बार चाँद मेरे आँगन में उतर आये

              *****

एक खंजर सा उतरता है सीने में
जब जब याद तुम्हारी आती है

कुछ रिश्ते खून से लिखे होते है

          ******

कागज़ की किश्ती लिए एक दिन मैं
तेरा नाम लेकर समंदर में उतर गया था

वो समंदर अब तक मेरी आँखों से टपकता है

       *******
तरुण

सोमवार, 2 नवंबर 2009

सड़के

हर रोज़ सुबह शाम
जिन सडको पे मैं
चलता हूँ दौड़ता हूँ
और अक्सर अपनी कार में
एक्सिलेरटर पे पैर लगाये
मैं सब तरफ भागता हूँ
उन सडको से कभी कभी
पल दो पल में रुक कर
पूछ लेता हूँ
क्या वो गुजरी है इस तरफ से
जानता तो हूँ
और यह अच्छी तरह से मालूम भी है
कि तुम  न आओगी इस तरफ कभी
फिर भी शायद किसी रोज़
क्या पता
अनजाने में यूँही कुछ सोचते हुए
तुम गुज़र जाओ इन सडको से कभी
जिन सडको पे मैं दिन रात घूमता हूँ
भूली हुई सी तुम्हारी कुछ यादें लेकर ...

-तरुण

गुरुवार, 13 अगस्त 2009

सुबह

हजारों रातों को जलाकर
लाखो ख्वाबो को बनाकर
न कितने लम्हों के
एक एक तागें को पिरोकर
जिस सुबह को सजाया था
वो आज मिली है
आ मेरी उम्मीदों की दुल्हन
ज़रा कुर्सी पे मेरे सामने बैठ
कुछ देर मुझसे बात कर
मैं भी देखूं
जिसने इतना तरसाया है
न जाने कितनी रातो को जगाया है
वो सुबह कैसी है ...

-तरुण

बुधवार, 15 जुलाई 2009

वरना ये दुनिया अधूरी है

तू मेरी है मैं तेरा हूँ
फिर भी सनम क्यूँ ये दूरी है
तू पास है मेरे, मेरे साथ है तू
फिर भी क्या मजबूरी है
तुम कहो जो भी कहना है
लेकिन चुप रहना भी ज़रूरी है
हम साथ है तो ये जहाँ है हँसी
वरना ये दुनिया भी अधूरी है
तू मेरी है मैं तेरा हूँ ....

-तरुण

शुक्रवार, 26 जून 2009

एक बार

अपनी ज़िन्दगी को छोड़कर
अपनी हर खुशी को छोड़कर
जो बैठे है
बस एक तेरा नाम लेकर
एक बार
उनकी तरफ़ भी
आंखे उठाकर
मुस्कुराकर देख लो

देखना फिर
न जाने कितनी
आंखे जगमगाती है
न जाने कितने चेहरे खिल जाते है
और न जाने कितनी जिन्दगियाँ संवर जाती है


-तरुण

शुक्रवार, 13 मार्च 2009

वो यहीं कहीं है

गर्मी की धूप से जलती धरती पर जब
बारिश की ठंडी बूंदे गिरती है
तब अह्सास होता है

सर्दी की ठंडी सुबह को जब कोहरे को चीरकर
कुछ नरम सूरज की किरने निकलती है
तब अह्सास होता है

बहार के मौसम में छोटे छोटे पौधों पर जब
नन्ही नन्ही कलियाँ खिलती है
तब अह्सास होता है

नन्हे छोटे बच्चो के मुख पर जब
पहली मुस्कान उभरती है
तब अह्सास होता है

जब बरसो से हारे इंसान को कुछ
उम्मीद की किरणे दिखती है
तब अह्सास होता है

जब कुछ लम्हों को जीतकर "मैं" उससे बड़ा होने लगता है
पर जब उस विश्व विजयेता पर भी वक्त की बिजली गिरती है
तब अह्सास होता है
कि वो है यहीं कहीं है हमें देख रहा है

-तरुण

गुरुवार, 12 मार्च 2009

इंतज़ार

आधी ज़िन्दगी तो गुज़र गयी
इसी इंतज़ार में कि तुम आओगी
तुम्हारी उम्मीद पे कितनी ही राते जल गयी
न जाने कितने चाँद तुम्हारे इंतज़ार में बुझ गए
वो बरसो से सुबह जो आकर मेरे कानो में कहती थी
कि आज तो वो आएगी
वो भी बस अब थक गयी है
ये सदियों से दिन काटते काटते मैं भी कटता जा रहा हूँ
हर लम्हा मैं अहिस्ता अहिस्ता टूटता जा रहा हूँ
कहाँ हो तुम चली आओ
इतना इंतज़ार क्या काफ़ी नही इस ज़िन्दगी के लिए ...

-तरुण

मंगलवार, 10 मार्च 2009

मुझसे पूछिये

होता है क्या हिज्र-ए-ग़म मुझसे पूछिये
दिल में क्यूँ है ज़ोर-ए-सितम मुझसे पूछिये

दरवाज़े पे खड़े हो मगर दस्तक न कीजिए
इस घर में वो अब रहते है कम मुझसे पूछिये

हाथ क्यूँ बढाता है यूँ अजनबियों की तरफ़
अपनों के लिए कब उठे कदम मुझसे पूछिये

खुदा से क्या कहूँ की वो भी न मेरा हुआ
मेरे पास है बस मेरे ही ग़म मुझसे पूछिये

कबसे खामोश छुपाये बैठा हूँ हर दर्द को मैं
हर आवाज़ पे उठते है ये जख्म मुझसे पूछिये

-तरुण

सोमवार, 9 मार्च 2009

दिन शराब के

तुम क्या गए फिर लौट आए दिन शराब के
भीगती साँसे डूबती आँखे दिल-ऐ-बेताब के

रातो को बरसते है बादल कुछ ऐसे टूटके
छलक जाते है शब-ऐ-ग़म अश्क माहताब के

मत जाना चमन में कि माहौल ठीक नही
बहकी है कलियाँ बदले है मिजाज़ गुलाब के

मयक़दे में भी गए मगर तेरा ज़िक्र न गया
पैमानों में भी उतरे है रंग इक तेरे शबाब के

इतना नासमझ न बन, न और उम्मीद कर
तेरे अश्को से न बदलेंगे लफ्ज़ उसके जवाब के

-तरुण

गुरुवार, 5 मार्च 2009

सालगिरह

आओ इस सालगिरह पे
हम वक्त की मुठ्ठी को खोलकर
उस हर लम्हे को निकाले
जब हम साथ में मुस्कुराये थे
उस हर एक लफ्ज़ को फिर से बोले
फिर से उस हर एक वादे को दोहराएँ
जो मैंने तुमसे और तुमने मुझसे किया था
इस सालगिरह पे चलो
हम अपनी कसमो की फिर गठडी खोले
और अपनी उन कसमो को
फिर से उठा ले
फिर से उनको कुछ साँसे देदे
जो साथ रहकर हमने खाई थी
आओ इस सालगिरह पे
हम अपने अतीत की हर मीठी याद को लेकर
अपने नए कल की सुबह को सजाये
आओ इस सालगिरह पे हम अगली सालगिरह को
एक अनोखा तोहफा देकर जाए
ऐसे हम अपनी सालगिरह मनाये

-तरुण

बुधवार, 4 मार्च 2009

मौसम बदल गए

हम इस कदर तेरी जुल्फ के सायें में ढल गए
अपना ही पता ढूंढने हम घर से निकल गए

तुमसे उठी है बात तो अब तुम ही जवाब दो
क्यूँ ऐसे तुम्हे देखकर सब मौसम बदल गए

यूँ तो बहुत करीब था तेरे घर का फासला
अपने ही दरवाज़े पे लेकिन हम फिसल गए

आँखों से न दो जवाब जब होठो की बात हो
आँखों से सुनी है जब भी तो हम मचल गए

रात भर शराब पीते रहे पर होश न गया
बोतल में तुम्हे देखकर हम ऐसे संभल गए


-तरुण

मंगलवार, 3 मार्च 2009

खुदा तू भी इतना परेशाँ निकला

मेरे दर्द-ए-इश्क का इक निशाँ निकला
ओ चाँद तू भी बड़ा बेईमाँ निकला

मैं जिसकी रात भर राह देखता रहा
वो तो मेरी मय्यत का कारवाँ निकला

कल मैंने खंजर से जिसको कत्ल किया
वो तो मेरा एक पुराना रहनुमाँ निकला

मैं जिसकी आवाज़ के लिए तरसता था
वो मेरा सनम बरसों का बेजुबाँ निकला

मैं क्यूँ तुझको सुनाता था दास्ताँ अपनी
ओ खुदा तू भी तो मुझ सा परेशाँ निकला

वो जो ज़माने भर का मसीहा बनता था
वो भी अन्दर से टूटा हुआ इंसाँ निकला

-तरुण

रविवार, 1 मार्च 2009

इक तेरा ग़म

इक तेरा ग़म सह सहकर हम कल रात भर रोते रहे
आँखों की तरह शब को भी हम अश्को में डुबोते रहे

तेरा जाना हमे मंज़ूर था तेरा जाना हम पी भी गए
तेरी यादों का पर जो सुरूर है उसमे बस हम खोते रहे

वादा किया भूल गए तुम ख्वाब में भी हमसे मिले
तेरे इक ख्वाब की उम्मीद में हम कितने दिन सोते रहे

इक तेरा रिश्ता था बहुत ये दुनिया कब हमे मंजूर थी
तुम ही कहो क्यूँ अब तेरे बिन सब मेरे अपने होते रहे

क्या कहूँ कैसे कहूँ मेरे लफ्ज़ तो जैसे सब बुझ गए
तेरी आवाजो को लेकिन हम इन सांसो में पिरोते रहे

इक तेरा ग़म सह सहकर हम कल रात भर रोते रहे ...


-तरुण


मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009

तेरे नाम से पी ले

मिलता नही है जाम चलो तेरे नाम से पी ले
रात है बहुत दूर तो चलो अब शाम से पी ले

साकी नही है कोई आज न मयखाना है मेरा
शराब मिले कभी तो कभी ख्याल-ऐ-जाम से पी ले

बाज़ार में है तो क्या ज़रूरी कोई खरीदार भी मिले
मिलता है कभी दाम तो कभी बेदाम से पी ले

उसका है शहर में नाम तो तेरा भी क्यूँ न हो
शोहरत मिले कभी तो कभी बदनाम से पी ले

खुदा के लिए छोड़ी कभी खुदा ने पिलाई तुझे
हर बोतल में है भगवान् तो कभी राम से पी ले

कितना चलेगा तू इन राहो की न कोई मंजिल
बैठ कुछ पल को कही आज और आराम से पी ले

-तरुण

सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

मुश्किल है

हर बार तेरे दर से खाली लौट आना मुश्किल है
तुझसे नज़रे मिलाकर फिर झुकाना मुश्किल है

तेरी आँखों में न जाने कितने चाँद मैंने देखे है
तेरे बिना अब यूँ तनहा राते बिताना मुश्किल है

तुम कहो तो हर एक साँस अपनी छोड़ आऊं मैं
तेरी यादो को लेकिन अब भूल पाना मुश्किल है

तेरे चेहरे ने कितनी बार मेरी सुबह सजाई है
बिन तेरे रातो को कोई ख्वाब बनाना मुश्किल है

तेरा हाथ छूने से मुझे एक रूह मिल गयी थी
तेरे उस एहसास से ख़ुद को भुलाना मुश्किल है

-तरुण

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

वो लड़की बहुत याद आती है

हर शाम कुछ ऐसे मुस्कुराती है
कि वो लड़की बहुत याद आती है

चाँद छूपता है जब बादलो में कभी
उसकी शरारते आँखों में छलक आती है

मेरे दरवाज़े पे दस्तक देता है कोई
पर आवाजे अपना रास्ता भूल जाती है

तेरे वादों पे जिऊं कब तक ऐसे
हर साँस ये कहकर लौट जाती है

कुछ ऐसा है तुमसे ये रिश्ता मेरा
मुस्कुराहटें भी आँखे नम कर जाती है

-तरुण

बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

अब मुझको सो जाने दो

अपने पहलू में आज मुझे छुप जाने दो
बहुत थक गया हूँ अब मुझे सो जाने दो

तुम भी चले आओ मयखाने में आज की रात
आज की रात को मयखाने में डूब जाने दो

जब तेरे बारे में लिखता हूँ तो कुछ सूझता नही
तुम अपने तस्वीर को कागज़ को उतर जाने दो

तेरी आँखों से मैंने मोहब्बत का चलन सिखा है
तुम इन आँखों को अब मुझको न नज़र आने दो

क्या लेकर आया था जब तुम मिले थे मुझको
उस प्यार को फिर फिजाओ में बिखर जाने दो

बहुत थक गया हूँ अब मुझको सो जाने दो ...
-तरुण

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

कौन किसको माँगा करता है

written in response of a message at orkut
(http://www.orkut.com/Main#CommMsgs.aspx?cmm=17146748&tid=5298475366884671938&na=4&nst=1&nid=17146748-5298475366884671938-5299850108606710210 )
वो मेरे अश्को पे बस मुस्कुराया करता है
मैं वफ़ा करती हूँ वो दिल दुखाया करता है

नही जानता वो की दर्द-ऐ-मोहब्बत क्या है
जो अँधेरी रातो में वो चिराग जलाया करता है

मुझसे पूछो अगर तो मैं नाम उसका बतलाऊँ
कौन मेरी मजार पे अब तक फूल बिछाया करता है

काश तुम होते अगर यहाँ तो तुम्हे भी दिखलाती
ये दिल कैसे आँखों में अश्को को छुपाया करता है

चले जाओ लेकिन देखेंगे कौन भूलता है किसको
कौन हर सुबह दुआओं में किसको माँगा करता है

-तरुण

बुधवार, 14 जनवरी 2009

तलाश

अपने हाथ को दे दो
मेरे हाथो में ऐसे
कि रिश्ता सा एक जुड़ जाए
तेरी साँसों का कतरा कतरा
मेरी नस नस में घुल जाए
इतना करीब मेरे आ जाओ
जुड़ जाओ मुझसे ऐसे
कि जब भी मैं खोलूं
आंखे अपनी
बस एक तेरा चेहरा ही नज़र आए
मुझमे मिल जाओ तुम कुछ ऐसे
कि मेरे इस जिस्म को
वो रूह मिल जाए
जिसके लिए न जाने कब से
तरस रहा हूँ तड़प रहा हूँ
न जाने कब से
एक कोरा कागज़ सा
मैं गलियां गलियां घूम रहा हूँ
न जाने कितनी सदियों से
मैं बस तुझको ढूंढ रहा हूँ
आज मिले हो तो बस
एक बार ऐसे मिल जाओ
मेरी इन साँसों को तेरी खुशबू मिल जाए
और जो मेरी तनहा सी ज़िन्दगी है
इसको तेरी आँखों का चाँद मिल जाए


-तरुण