हर रोज़ सुबह शाम
जिन सडको पे मैं
चलता हूँ दौड़ता हूँ
और अक्सर अपनी कार में
एक्सिलेरटर पे पैर लगाये
मैं सब तरफ भागता हूँ
उन सडको से कभी कभी
पल दो पल में रुक कर
पूछ लेता हूँ
क्या वो गुजरी है इस तरफ से
जानता तो हूँ
और यह अच्छी तरह से मालूम भी है
कि तुम न आओगी इस तरफ कभी
फिर भी शायद किसी रोज़
क्या पता
अनजाने में यूँही कुछ सोचते हुए
तुम गुज़र जाओ इन सडको से कभी
जिन सडको पे मैं दिन रात घूमता हूँ
भूली हुई सी तुम्हारी कुछ यादें लेकर ...
-तरुण
सुंदर सडकों से यूं संवाद इस तरह का प्रयास बहुत बढिया लगा ...
जवाब देंहटाएंकाश!! किसी दिन सड़क कह दे..हाँ, अभी अभी..कुछ पल पहले..कुछ सोचते हुए..
जवाब देंहटाएंbahut badhian!!
जवाब देंहटाएंUn sadko par humein sath le jayo karo
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