तेरे रिश्ते को कब का दफ़न कर आया हूँ
फिर भी तेरा एहसास है कि जाता नहीं
रिश्तो कि भी शायद कोई रूह होती होगी
*****
तेरी हर एक याद को दरियां में बहा आया हूँ
तेरी हर आहट को ख़ामोशी में सुला आया हूँ
आजकल बहुत अकेला अकेला सा लगता है
*****
एक बार रोते हुए माँ से चाँद को माँगा था
अब हर रात खुदा से एक तुझे मांगता हूँ
काश एक बार चाँद मेरे आँगन में उतर आये
*****
एक खंजर सा उतरता है सीने में
जब जब याद तुम्हारी आती है
एक खंजर सा उतरता है सीने में
जब जब याद तुम्हारी आती है
कुछ रिश्ते खून से लिखे होते है
******
कागज़ की किश्ती लिए एक दिन मैं
तेरा नाम लेकर समंदर में उतर गया था
वो समंदर अब तक मेरी आँखों से टपकता है
*******
तरुण
सुन्दर लगी त्रिवेणियाँ.
जवाब देंहटाएंतेरी हर एक याद को दरियां में बहा आया हूँ
जवाब देंहटाएंतेरी हर आहट को ख़ामोशी में सुला आया हूँ
आजकल बहुत अकेला अकेला सा लगता है
बहुत बढिया ।
बहुत बढ़िया , अहसास को जुबान दे दी , न रिश्ते न यादें जो दफ़न होतीं हैं सीने में , कभी मिटती हैं , मौका पाते ही सर उठा कर खड़ी हो जाती हैं , बोलने लगतीं हैं बेशक वो माध्यम कलम ही हो |
जवाब देंहटाएंI liked all the three Triveni's by you. I've always been a great fan of Triveni form of poetry and have been a great fan of Gulzar sahab, who gave such a nice form of poetry to all of us. Once again, keep writing!
जवाब देंहटाएं~Ganesh
बहुत सुन्दर त्रिवेणियां है...
जवाब देंहटाएंbahut badhiya.....
जवाब देंहटाएं