हजारों रातों को जलाकर
लाखो ख्वाबो को बनाकर
न कितने लम्हों के
एक एक तागें को पिरोकर
जिस सुबह को सजाया था
वो आज मिली है
आ मेरी उम्मीदों की दुल्हन
ज़रा कुर्सी पे मेरे सामने बैठ
कुछ देर मुझसे बात कर
मैं भी देखूं
जिसने इतना तरसाया है
न जाने कितनी रातो को जगाया है
वो सुबह कैसी है ...
-तरुण
जो सुबह ह्जारो रातो को जगाकर मिली है वह सुबह निश्चय ही खूबसूरत होगी.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति प्रदान की है आपने अपनी रचना मे.
बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
nice..one!!!!!!!
जवाब देंहटाएं