गुरुवार, 13 अगस्त 2009

सुबह

हजारों रातों को जलाकर
लाखो ख्वाबो को बनाकर
न कितने लम्हों के
एक एक तागें को पिरोकर
जिस सुबह को सजाया था
वो आज मिली है
आ मेरी उम्मीदों की दुल्हन
ज़रा कुर्सी पे मेरे सामने बैठ
कुछ देर मुझसे बात कर
मैं भी देखूं
जिसने इतना तरसाया है
न जाने कितनी रातो को जगाया है
वो सुबह कैसी है ...

-तरुण

3 टिप्‍पणियां:

  1. जो सुबह ह्जारो रातो को जगाकर मिली है वह सुबह निश्चय ही खूबसूरत होगी.
    सुन्दर अभिव्यक्ति प्रदान की है आपने अपनी रचना मे.

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  2. बहुत बढ़िया।
    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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