कभी ज़िन्दगी जीते जाने से फुर्सत नहीं मिलती
कभी इसके गम भुलाने से फुर्सत नहीं मिलती
कभी तुम रूठी रहती हो तो एहसास नहीं होता
कभी तुझको मनाने से फुर्सत नहीं मिलती
कभी मेरी तरफ आ जाती है जन्नत की सदाएँ भी
कभी एक आहट जगाने से फुर्सत नहीं मिलती
कभी इन आँखों में मिलती है खुशियाँ ज़माने की
कभी अश्को को बहाने से फुर्सत नहीं मिलती
कभी प्यालो मैं उतरते है मयक़दे शहर भर के
कभी एक जाम पी जाने से फुर्सत नहीं मिलती
कभी रात भर बैठकर चाँद से मैं तेरी बाते करता हूँ
कभी एक तेरा नाम लिए जाने से फुर्सत नहीं मिलती
-तरुण
तरून भाई, सच कहा आपने।
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मानवता के नाम सलीम खान का पत्र।
इतनी आसान पहेली है, इसे तो आप बूझ ही लेंगे।
kabhi to marne ki tammana hoti hai
जवाब देंहटाएंkabhi in saanso ko ginne se hi fursat nahi milti
naye saal bahut bahut mubarak ho
-Sheena