सोमवार, 21 दिसंबर 2009

फुर्सत नहीं मिलती

कभी ज़िन्दगी जीते जाने से फुर्सत  नहीं मिलती
कभी इसके गम भुलाने से फुर्सत नहीं मिलती

कभी तुम रूठी रहती हो तो एहसास नहीं होता
कभी तुझको मनाने से फुर्सत नहीं मिलती

कभी मेरी तरफ आ जाती है जन्नत की सदाएँ भी
कभी एक आहट जगाने से फुर्सत नहीं मिलती

कभी इन आँखों में मिलती है खुशियाँ ज़माने की
कभी अश्को को बहाने से फुर्सत नहीं मिलती 

कभी प्यालो मैं उतरते है मयक़दे शहर भर के
कभी एक जाम पी जाने से फुर्सत नहीं मिलती

कभी रात भर बैठकर चाँद से मैं तेरी बाते करता हूँ
कभी एक तेरा नाम लिए जाने से फुर्सत नहीं मिलती

-तरुण

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