बुधवार, 27 अगस्त 2008

ख्वाब

तेरी आँखों में छुपाये है मैंने
ख्वाब सभी उन रातो के
जब नींदे मेरी आँखों से
रूठी रूठी रहती थी
बस बोलती थी आवाज़ तेरी
मेरी साँसे भी चुप चुप रहती थी
कभी नाम तेरा लेता था मैं
कभी उठकर तेरे सायो को ढुँढता था
अक्सर रातो में चाँद से मैं
तेरे घर का पता पूछता था
घर से निकलता था मैं जब कभी
जाने कहा मैं रुकता था
और सुबह को अपनी रातो के मैं
कुछ भूले से लम्हे चुनता था
वो राते ऐसे जगाती थी
कि सुबह हर खोयी रहती थी
बस बोलती थी आवाज़ तेरी
मेरी साँसे भी चुप चुप रहती थी

-तरुण

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