गुरुवार, 14 अगस्त 2008

कौन है तू

कौन है तू
तुम कौन हो
कभी लगती हो मेरी ऐसे
कि मेरी बरसो से पहचान है तुमसे
मेरे जिस्म की नस नस में समाई लगती हो
मेरे लहू के कतरे कतरे में तेरा रंग मिला दिखता है
मेरी हर साँस जैसे तुझसे कुछ कहती है
मेरी हर आहट जैसे तेरे ही करीब जाती है
मेरी घर की दीवारों पे भी तेरा चेहरा दिखता है
और मेरे घर की हर चीज़ महकती है ऐसे
जैसे किसी ख्वाब में तुम छू गयी हो इनको
सुबह उठता हूँ तो आवाज़ तेरी यूँ आती है
जैसे चाय लेकर तुम बुला रही हो मुझको
और शाम को घर लौटकर जब आता हूँ
तो दरवाज़ा खुलते ही यूँ महकती है साँसे मेरी
जैसे तुम देर से इंतज़ार कर रही हो मेरा
रात को बिस्तर पे सोता भी हूँ तो
यूँ लगता है
पास लेटी तुम गुनगुना रही हो कोई नज़्म मेरी
कौन है तू
तुम कौन हो

-तरुण

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें