गुरुवार, 17 जुलाई 2008

मैं लौट रहा

आया था तेरी उम्मीद पे मैं
तेरी आस पे मैं लौट रहा
आया था तेरी एक पुकार पे मैं
तेरी आवाज़ पे मैं लौट रहा

कुछ कहने तुमसे मैं आया था
कुछ कहा मगर कुछ कहा नही
जो बातें सोची थी कभी
उस हर बात पे मैं लौट रहा

अधूरी थी जो कहानी मेरी
वो कहानी पुरी हो न सकी
तू मेरी जिन ख्वाबो में थी
उन ख्वाबो में मैं लौट रहा

मैं वही हूँ कुछ बदला नही
ये दुनिया थोडी सी बदली है
जिस दुनिया मैं तू मेरी थी
उस दुनिया में मैं लौट रहा

आया था तेरी उम्मीद पे मैं
तेरी आस पे मैं लौट रहा

-तरुण

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