बुधवार, 16 जुलाई 2008

मेरे लिए

वो मेरे लिए
हर दर्द सहे
खामोश रहे चुप चुप सी रहे
सांसो की भी आवाजों को
वो बस होठो में समेटे रहे

आँखों से कहे
वो जो भी कहे
होठो से वो कुछ न कहे
मोती से आंसू टपके
मेरी बातो को जब वो कहे

सबकी बातों को
वो चुपचाप सुने
दुनिया की हर नज़र सहे
आँखों में छुपा ले सारे ग़म
हर सितम चुप सी वो सहती रहे

मेरी बातो पे
वो मुस्कुराती रहे
कभी मेरी आँखों से वो रूठी रहे
मैं कितना भी सताऊँ उसको
वो मेरी रहे बस मेरी रहे ॥

वो मेरे लिए हर दर्द सहे ..

-तरुण

2 टिप्‍पणियां:

  1. bhut bhavuk rachana. sundar. ati uttam.

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  2. तरुण जी,अंतर्मन से निकली हर भावाभिव्यक्ति असरकार होती है... आपकी रचनाओं में अनुभूति की तीव्रता है जो आपकी हर रचना को सार्थक बनाती है... अविराम आगे बढ़ते रहिये सफलता कदम चूमेगी...आपकी हर रचना को पढने का प्रयास करूंगा...

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