शनिवार, 26 अप्रैल 2008

बहुत बेदर्द है ये दर्द तेरा जीने नही देता

बहुत बेदर्द है ये दर्द तेरा जीने नही देता
मैं मयखाना लिए बैठा हूँ ये पीने नही देता

बहुत कांटे चुभोये है इस ज़िंदगी ने मेरी रूह पर
न जाने जिस्म में कौन मेरे खून को बहने नही देता

आता है कभी कभी रहम बहुत अपने इस दिल पे
भूलता है जब ये तुमको मैं इसे भूलने नही देता

यूं तो कम नही है इस जहाँ में हमसफ़र मेरे
लेकिन ये रास्ता किसी को तुम्हारी जगह लेने नही देता

एक दिन बहुत रोया था मैं तुमको छोड़कर तनहा
न जाने क्यों अब गम भी तुम्हारा मुझे रोने नही देता

-तरुण

1 टिप्पणी:

  1. एक दिन बहुत रोया था मैं तुमको छोड़कर तनहा
    न जाने क्यों अब गम भी तुम्हारा मुझे रोने नही देता

    Bahut khubsurat!

    "khushiyan aur gam sahte hein,
    fir bhi ham chup rahte hein..."

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