गुरुवार, 24 जनवरी 2008

पैगाम


कोई भी तो नही है जो पढ़ेगा इसको
फिर भी न जाने क्यों
मैं हर रोज़ हर सुबह
अपनी डायरी पे तेरे नाम एक पैगाम लिखता हूँ
लिखता हूँ मैं अपने दिल का सब हाल
पिछले दिन के हर एक पल का हिसाब मैं लिखता हूँ
कुछ सवाल जो तुझसे पूछने है
उन सब सवालो के जवाब मैं लिखता हूँ
कुछ नए वादे मैं तुझसे करता हूँ
और पिछली रात के भूले से ख्वाब मैं लिखता हूँ
जानता हूँ कोई न पढ़ेगा इसको
फिर भी न जाने क्यों हर रोज़ हर सुबह
मैं तेरे लिए कुछ दुआएं लिखता हूँ

-तरुण

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