सोमवार, 7 जनवरी 2008

यादें


गुज़रते वक़्त को बहुत खींचा था मैंने
मगर जब यह गया
जब छूटा हाथो से
तो चटखकर इतनी दूर चला गया
कि जैसे बरस बीत गए हो
अभी कुछ दिनों ही की तो बात है
लेकिन कल रात जब मैंने
यादो का सूटकेस खोला तो
सब यादें मुरझा गयी थी
कुछ यादें तो शायद इंतज़ार में थी
मुझे देखा और दम तोड़ दिया
कुछ यादो कि उम्र शायद बहुत छोटी होती है

-tarun
(written in foster city on 4th january)

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