सोमवार, 7 जनवरी 2008

एक ग़ज़ल


जाने की जिद्द में क्या क्या फ़साने बना दिए
मेरी मोहब्बत के फूल पे सब कांटे लगा दिए

क्या कहे की आज कितने मजबूर हो गए
उन्होने हमारे ख़त सब कल रात जला दिए

अब क्या बताऊं उनको की कितना प्यार है
उन्होने मेरी मोहब्बत के सारे रिश्ते छुडा दिए

याद दिलाये तो कैसे उन्हें उनकी वह कसमें
उन्होने सब कसमो पे एक बार आंसू बहा दिए

अब अँधेरे में चलना ही है नसीब मेरा
इसीलिए घर के सारे चिराग हमने बुझा दिए

-तरुन

(written sometime in 2002 in delhi )

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