सोमवार, 7 जनवरी 2008

त्रिवेणी के कुछ और कतरे

आज की रात चाँद कितना मायूस है
आज कि रात चांदनी भी बहुत मद्धम है
आज कि रात छत पे नही आये तुम ।
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आज की रात बहुत भीगी सी है
आज कि रात बदल भी मुसलसल बरसा
तुम चले गए हो क्या यह भी जानते है ।
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आज की रात दरवाजे पे हुई दस्तक
आज की रात तुम फिर मेरे घर आये
आज की रात फिर एक ख्वाब सा देखा मैंने ।
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आज की रात चाँद ज़मीन पे उतरा
आज की रात सडको पे बहुत उजाला था
आज की रात मेरे मोहल्ले से गुज़रे हो तुम ।
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आज की रात हम देर तक जागे
आज की रात हम बस चाँद को देखते रहे
एक पुरानी किताब में तेरी तस्वीर मिली मुझे आज की रात ।
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आज की रात चाँद भी बादलों में छुपा है
आज की रात तारे भी कुछ ढ़ूंढ़ रहे है
तेरे कमरे की खिड़की पे पर्दा टंगा है आज कि रात ।
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आज की रात नींद ने फिर आँख मिचोली खेली
आयी, मगर कुछ देर में नाराज़ सी लौट गयी
तुम बहुत गुस्से में हो लगता है आज कि रात ।
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आज की रात चाँद कश्ती भी डूब गयी बादलों में
आज की बहुत पानी बरसा ज़मीन पर
तुम ज़रूर रोये हो मेरा नाम लेकर आज की रात ।
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आज की रात चलो हम भी देर तक जागे
आज की रात चलो हम भी कुछ बात करे
अपनी यादो को कह दो कुछ बोले हमसे आज की रात ।
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आज की रात बहुत लंबी है
आज की रात चाँद भी थक गया है इंतज़ार में
तुम उठ जाओ ज़रा खोल लो आँखे अपनी ।
-तरुन

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