गुरुवार, 17 जनवरी 2008

दीवाना


वो मुझको दीवाना सा लगता था
सारा दिन बस चाँद तारो के साथ खेलता था
और उनकी ही बाते करता था
कभी कायनात में जाकर छुप जाता था
और कभी चाँद को ज़मीन पे बुलाता था
एक दिन तैश में आकर
मैंने भी बादलों पे चढ़कर
चाँद के गुब्बारे पे
कुछ तारे फेंककर मारे
कुछ उल्काओ के साथ गोटियाँ खेली
और कायनात में नए दोस्तो के साथ कुछ दिन गुजारे
अब मैं भी उनकी ही बाते करता हूँ
उनके ही किस्से कहता हूँ
शायद अब मुझे भी लोग दीवाना कहते होंगे॥

-तरुण

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