मंगलवार, 3 जून 2008

तेरे पीछे

कभी रात से पूछूं
वो भी न बतलाये
कभी चाँद से कुछ कहूँ
वो भी न कुछ सुनाये
सुबह भी बस
चुप चुप सी आए
शाम भी न जाने क्यों
हर पल शरमाये
फुलो में तेरा रूप छुपा है
कलियाँ भी सब तेरी आस लगाये
बादल बरसे जैसे तेरे लिए
हवा भी कुछ तेरी बातें सुनाये
एक मैं ही नही हूँ तनहा
जो बातें करूँ तेरी जानम
ये सारी दुनियाँ तेरे पीछे
बस तेरे पीछे चली जाए ...

-तरुण

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