शनिवार, 21 जून 2008

जाने क्यूँ

होठो पे रहती थी एक खामोशी
जाने अब वो कहाँ गयी
कानो में सुनती थी एक सरगोशी
जाने कबसे वो सुनी नही
आँखों में थे कुछ ख्वाब कभी
जाने क्यूँ अब नींद आती नही
रुकता था कभी चलता था कभी
जाने क्यूँ अब यह होता नही
तुम जो मिले बदला हर पल
जाने क्यूँ फासले बस बुझे नही
तुम हो वह मैं हूँ यहाँ
जाने क्यूँ राहें हमारी मिली नही
जाने क्यूँ हम बस मिले नही ॥

-तरुण

2 टिप्‍पणियां:

  1. us Tarun ko is Tarun ka salam. Acchi kavita hai

    होठो पे रहती थी एक खामोशी
    जाने अब वो कहाँ गयी

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  2. तुम जो मिले बदला हर पल
    जाने क्यूँ फासले बस बुझे नही
    bhut sundar.sundar rachana ke liye badhai.

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