शनिवार, 23 फ़रवरी 2008

अपनी आँखों का गम


अपनी आँखों का गम, हमे छुपाना नही आया
एक टूटा हुआ रिश्ता, हमे निभाना नही आया

कल शब भर चाँद खड़ा था मेरे दरवाज़े पे
बस आवाज़ देकर घर में, हमे बुलाना नही आया

हम अगर जिंदा है लेकिन ज़िंदगी साथ नही
और एक वादा मौत का , हमे निभाना नही आया

जो तेरे आशिक न होते हम भी तो क्या होते
कुछ और करके ज़िंदगी में , हमे दिखाना नही आया

वो मेरा नाम लेकर अब तलक आंसू बहाती है
मगर उसके प्यार का क़र्ज़, हमे लौटाना नही आया

-तरुण

4 टिप्‍पणियां:

  1. kisi ko ghar mila,kisi ke hisse me dukan aai/ mai ghar me sabse chota tha mere hisse me maa aai

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  2. बहुत बेहतरीन रचना है।

    कल शब भर चाँद खड़ा था मेरे दरवाज़े पे
    बस आवाज़ देकर घर में, हमे बुलाना नही आया

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  3. this is awesome,shab bhar chand wala sher masha alla,bahut badhiya.

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  4. कल शब भर चाँद खड़ा था मेरे दरवाज़े पे
    बस आवाज़ देकर घर में, हमे बुलाना नही आया!

    Bahut khoob likha hai aapne! keep it up.

    Thnx for visiting my blog and leaving comment there.

    rgds

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