शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008

बस छूकर गुज़र गए

वो आए मेरी मजार पे , और बस गुज़र गए
हम फिर एक बार जीने को थे, फिर एक बार मर गए

एक एक लम्हा जुदाई का गुज़रे एक एक सदी में
कितने बरस तेरे साथ तो बस पल में गुज़र गए

हम हर उस जगह से गुज़रे जहाँ जहाँ तुम गए
तेरी आंखो का नशा देखकर बोतल में भी उतर गए

मेहमाँ तो बहुत आए थे मेरी महफिल में मगर
वो जिस तरफ़ थे, हमे छोड़कर मेहमाँ सब उधर गए

हम शहर की जिस गली से भी गुज़रे, तेरा ही चर्चा था
कड़कती धूप में क्यों छोड़कर हम अपना ये घर गए

-तरुण

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