
सीने में धड़कता है दिल ऐसे , क़र्ज़ जैसे कोई लौटाता है 
जीने की कोई चाह नही, एक दस्तूर सा बस निभाता है 
मैं टुकडा टुकडा साँसों को जोड़कर, कुछ लम्हे संजोता हूँ
ये टुकडा टुकडा लम्हों को, तेरी यादो पे लुटाता है 
मैं तेरे नाम को भूलकर, कुछ खुशियों को चुनता हूँ 
ये अपनी सारी खुशियों में , तेरे गमो को बुलाता है 
मैं मंदिरों में, मैं मस्जिदों में , ढून्ढता हूँ एक खुदा को 
ये हर मन्दिर में, हर मस्जिद में, तेरी मूरत को सजाता है 
वो कहते है तुझे भूलकर, मैं जीता भी रहूँ हँसता भी रहूँ 
ये तेरी साँसों से जीता है , तेरी बातो पे ही मुस्कुराता है 
-तरुण 
 
 
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