शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

तेरे बिना


कोई चेहरा मूझे नही अपना लगता तेरे बिना
ये घर मूझे घर सा नही लगता तेरे बिना

मैं रोता भी हूँ कि हँसता सा लगूँ
एक अश्क भी आंखो से नही ढलता तेरे बिना

रात भर बैठकर मैं चाँद को ढूंढ़ता रहूँ
कि चाँद भी अब नही चमकता तेरे बिना

है मयकदा भी खाली साकी भी परेशां है
एक पैमाना भी अब नही छलकता तेरे बिना

कोई फूल अब न महके कलियाँ भी गुमसुम है
एक भंवरा भी गुलशन से नही गुज़रता तेरे बिना

-तरुण

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