शुक्रवार, 13 मार्च 2009

वो यहीं कहीं है

गर्मी की धूप से जलती धरती पर जब
बारिश की ठंडी बूंदे गिरती है
तब अह्सास होता है

सर्दी की ठंडी सुबह को जब कोहरे को चीरकर
कुछ नरम सूरज की किरने निकलती है
तब अह्सास होता है

बहार के मौसम में छोटे छोटे पौधों पर जब
नन्ही नन्ही कलियाँ खिलती है
तब अह्सास होता है

नन्हे छोटे बच्चो के मुख पर जब
पहली मुस्कान उभरती है
तब अह्सास होता है

जब बरसो से हारे इंसान को कुछ
उम्मीद की किरणे दिखती है
तब अह्सास होता है

जब कुछ लम्हों को जीतकर "मैं" उससे बड़ा होने लगता है
पर जब उस विश्व विजयेता पर भी वक्त की बिजली गिरती है
तब अह्सास होता है
कि वो है यहीं कहीं है हमें देख रहा है

-तरुण

7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह तरुण भाई क्या गजब का लिखा है।

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  2. बहुत सुन्दर लिखा है।
    घुघूती बासूती

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  3. bahut sunder kavita hai... umeed aur asha se bhari hui..

    neelima

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  4. Haan...chahe "wo" hame nazar aaye naa aaye, hamaree ankhonko "nazar" useekee badaulat hai...
    Hamare kaan use sun naa payen, har geet, har sangeet sun nekee shakti "useekee" badaulat hai..
    Bohot sundar rachnayen hain...
    shama

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