रविवार, 1 मार्च 2009

इक तेरा ग़म

इक तेरा ग़म सह सहकर हम कल रात भर रोते रहे
आँखों की तरह शब को भी हम अश्को में डुबोते रहे

तेरा जाना हमे मंज़ूर था तेरा जाना हम पी भी गए
तेरी यादों का पर जो सुरूर है उसमे बस हम खोते रहे

वादा किया भूल गए तुम ख्वाब में भी हमसे मिले
तेरे इक ख्वाब की उम्मीद में हम कितने दिन सोते रहे

इक तेरा रिश्ता था बहुत ये दुनिया कब हमे मंजूर थी
तुम ही कहो क्यूँ अब तेरे बिन सब मेरे अपने होते रहे

क्या कहूँ कैसे कहूँ मेरे लफ्ज़ तो जैसे सब बुझ गए
तेरी आवाजो को लेकिन हम इन सांसो में पिरोते रहे

इक तेरा ग़म सह सहकर हम कल रात भर रोते रहे ...


-तरुण


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