बुधवार, 4 मार्च 2009

मौसम बदल गए

हम इस कदर तेरी जुल्फ के सायें में ढल गए
अपना ही पता ढूंढने हम घर से निकल गए

तुमसे उठी है बात तो अब तुम ही जवाब दो
क्यूँ ऐसे तुम्हे देखकर सब मौसम बदल गए

यूँ तो बहुत करीब था तेरे घर का फासला
अपने ही दरवाज़े पे लेकिन हम फिसल गए

आँखों से न दो जवाब जब होठो की बात हो
आँखों से सुनी है जब भी तो हम मचल गए

रात भर शराब पीते रहे पर होश न गया
बोतल में तुम्हे देखकर हम ऐसे संभल गए


-तरुण

8 टिप्‍पणियां:

  1. आँखों से न दो जवाब जब होठो की बात हो
    आँखों से सुनी है जब भी तो हम मचल गए

    रात भर शराब पीते रहे पर होश न गया
    बोतल में तुम्हे देखकर हम ऐसे संभल गए
    बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।

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  2. तुमसे उठी है बात तो अब तुम ही जवाब दो
    क्यूँ ऐसे तुम्हे देखकर सब मौसम बदल गए

    बहुत पसंद आया यह ..बहुत खूब

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  3. वाह क्या लिखा है तरुण जी।
    आँखों से न दो जवाब जब होठो की बात हो
    आँखों से सुनी है जब भी तो हम मचल गए

    बेहतरीन।

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  4. bahut achchha....aap sachmuch badhai k patra hain..maine nit pe aapka blog dekha tha....baat ka andaaz naya hai...bahar bhi meter me hai...wah

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