सोमवार, 7 अप्रैल 2008

वो कहते नही

मैं कहता हूँ वो कहते नही, बस आंखो में प्यार छुपाते है
मैं दुनिया को बताता रहता हूँ वो तन्हाइयो में हमे बुलाते है

मैं आसमानों की उंचाइयो पे उसकी उमीदो को सजाता हूँ
वो अपने घर के मन्दिर में, मेरा एक चिराग जलाते है

मैं गुलशन गुलशन घूमता हूँ, मिल जाए कोई कली उस जैसी
वो मेरे पुराने खतो को अपने तकिये के नीचे छुपाते है

एक आदत है जो हर शाम को मैं लौटकर घर जाता हूँ
वरना क्या दीवारों से भी कोई रिश्ते निभाए जाते है

क्यों मेरी कोई कहानी सुने, कोई क्यों मूझे दिलासा दे
जो चाँद से मोहब्बत करते है, वो रातो में आंसू बहाते है

-तरुण

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