बुधवार, 5 मार्च 2008

बदलते क्यों है

गुजरते वक्त के साथ , ये रिश्ते बदलते क्यों है
साथ चलना चाहे जिनके, वो बिछड़ते क्यों है

कतरा कतरा मिलकर जो बनते है बादल
बूंद बूंद बनके वो हवाओ में बिखरते क्यों है

वो खेलता है हमसे, कठपुतली से हम है
उसके खेल में दिल के रिश्ते पनपते क्यों है

है एक से सब इन्साँ , है एक सी ही फितरत
ये सरहदों के फासले, फिर इन्हे बांटते क्यों है

वो जिसकी यादें अक्सर रुलाती है हमे
उससे मिलने को हम दिन रात तरसते क्यों है

-तरुण

3 टिप्‍पणियां:

  1. कतरा कतरा मिलकर जो बनते है बादल
    बूंद बूंद बनके वो हवाओ में बिखरते क्यों है
    bahut sundar

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  3. TANU said...
    गुजरते वक्त के साथ , ये रिश्ते बदलते क्यों है
    साथ चलना चाहे जिनके, वो बिछड़ते क्यों है

    कतरा कतरा मिलकर जो बनते है बादल
    बूंद बूंद बनके वो हवाओ में बिखरते क्यों है
    .
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    .
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    .
    वो जिसकी यादें अक्सर रुलाती है हमे
    उससे मिलने को हम दिन रात तरसते क्यों है


    shayad isi ko zindagi kehte hain...
    Beautiful !!

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