शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2007

पथिक

अपने पीछे छुट जाये तो
प्यार के रीश्ते टूट जाये तो
कुछ रीश्ते नए तू बुनते चलना
ओ पथीक तू चलते चलना॥


बीते हुए दीन तुझे याद आये तो
कुछ टूटे ख्वाब तुझे सताये तो
नयी उमंगो को तू ढुन्ढते चलना
ओ पथीक तू चलते चलना ...

कभी अकेले दील घबराएँ तो
लंबी रातो में नींद न आये तो
उन लम्हों से तू लड़ते चलना
ओ पथीक तू चलते चलना
ओ पथीक तू चलते चलना ....

-tarun
(written at El Dorado hills, CA in may 2007)

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