शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2007

Barso Pehle

तुम आओ कभी हमारी गली फीर से

फिर से सर्दी की नरम धुप में

मूंगफली खाते हुए


वो हर बात करे

जो करी थी हमने बरसों पहले

फिर से उन सर्द सर्द रातो में
लोहरी की आग हो
फीर से सब बैठकर साथ में
वह हर बात करे
जो करी थी हमने बरसों पहले

फिर से जलते सूरज की दोपहर के बाद
वह ठंडी सी शाम आये

फिर से हम साथ गली में घूमते हुए

वह हर बात करे
जो करी थी हमने बरसों पहले

फीर से सन्डे की सुबह आये
फीर से धीमी धीमी धुप खिले
फीर से गरम गरम चाये के साथ
वह हर बात करे
जो करी थी हमने बरसों पहले

फीर से मोंसून का मौसम आये

फीर घंटो तक बारीश आये

फीर से गरम गरम पकोदो के साथ

वह हर बात करे
जो करी थी हमने बरसों पहले

-tarun

(written at Foster City, CA)

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