सोमवार, 15 अगस्त 2011

बंद कमरे

बंद कमरों में मूझे घुटन होती है 
बंद कमरों में मेरी साँसे रूकती है 
बंद कमरों में बहुत तडपता हूँ मैं 
जब तुम होती थी तो इस घर के 
खिड़कियाँ और दरवाज़े सब खुले रहते थे 
अक्सर खिडकियों से ख्वाब आते थे 
और दरवाजों पे ज़िंदगियाँ दस्तक देती थी 
लेकिन 
जब से तुम गयी हो 
न ही कोई ख्वाब आता है और 
न कभी कोई दस्तक होती है 
और मैं बस इन बंद कमरों में पड़ा रहता है 
मूझे बंद कमरों में बहुत घुटन होती है ....
-तरुण 

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