मुड़ मुड़ के रुक रुक के
फिर उस मोड़ पे लौटकर गया हूँ
जिस मोड़ पे तुम मेरा हाथ छुड़ाकर चली गयी थी
न जाने कितनी बार
उस एक एक राह से गुजरा हूँ
जिन पर तुम और मैं साथ चले थे
न कितनी ही बार
उस मोड़ पे घंटो रुक कर तुम्हारा इंतज़ार किया है
कि शायद तुम भी लौटकर आ जाओ
मगर हर बार में पहली बार कि तरह
तनहा उदास लौटा हूँ ...
-तरुण
हम्म्म्म.......
जवाब देंहटाएंक्या भाई जान...इतन रात गए,,,आपने दर्द जख्मों को कुरेद दिया...
खूबसूरत...
आलोक साहिल
वाह!! बेहतरीन अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंजबरदस्त प्रस्तुति......
जवाब देंहटाएंअच्छी भावाभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंdard ko to aapne kaagaz me udel diya.....bahut hi achchi kavita.....
जवाब देंहटाएंश्रीमान जी आपके ब्लॉग को पढ़ कर बहुत बढ़िया लगा।
जवाब देंहटाएंIn your profile photo you looks cool dude but the poem is serious and deep meaning
जवाब देंहटाएंCarry on Dear
Bahoot khoob ...
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