शुक्रवार, 21 मई 2010

तेरा ख़त

एक वो भी दिन था
जब तेरे ख़त के आने कि
खबर से ही महक उठते थे
दिन रात मेरे
और एक यह दिन है
तेरा ख़त सामने मेज़ पे पड़ा है
और उसे खोलकर पड़ने की हिम्मत नहीं होती ...

-तरुण

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