गुरुवार, 26 जनवरी 2012

मुहब्बत नहीं मिलती

ज़िन्दगी से मेरी आदत नहीं मिलती
मूझे जीने कि सूरत नहीं मिलती 

कोई मेरा भी कभी हमसफ़र होता 
मूझे ही क्यूँ मुहब्बत नहीं मिलती 

तू ज़माने कि भीड़ में चल न कभी
ऐसे जीने से इज्ज़त नहीं मिलती 

बचपन में जवानी कि दुआ न करना 
फिर ऐसे जीने कि फुर्सत नहीं मिलती 

जब तू ही कभी किसी का न हुआ 
क्यूँ अकेले जीने की हिम्मत नहीं मिलती 

तरुण 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहोत खूब.


    मनमंदिर के रास्ते सुकून नहीं मिलता
    स्थान जहा बनाया मुकाम नहीं मिलता
    शरद्धा और विष्वासको ना घर मिल पाय
    मूरतको दिया नाम, दर्शन नहीं मिलता

    कैसी करू भक्ति की दर्शन मिल पाय
    मैं पत्थर मूरत उनके ह्रदय में समाय
    उनकी नजरका नूर है कितना उज्ज्वल
    कास उन नजर में बसेरा मिल जाय .........जनक देसाई

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  2. ख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई, सादर वन्दे,,,,,,,,,


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  3. जब तू ही कभी किसी का न हुआ
    क्यूँ अकेले जीने की हिम्मत नहीं मिलती
    very nice lines

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  4. बचपन में जवानी कि दुआ न करना
    फिर ऐसे जीने कि फुर्सत नहीं मिलती

    जब तू ही कभी किसी का न हुआ
    क्यूँ अकेले जीने की हिम्मत नहीं मिलती

    क्या बात है !

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