रविवार, 20 फ़रवरी 2011

तेरा नाम

बस तेरा नाम मेरा नसीब है 
तू ना जाने किसके करीब है  

मेरा दिल ही मेरा खुदा  रहा 
मेरा खुदा ये कितना अजीब है 

मुझे मौत से कोई गिला नहीं 
मेरी ज़िन्दगी मेरी रकीब है 

मेरी जान बुझती रही मगर 
तेरी याद दिल के करीब है 

कोई मुझे भी ढूंढता है कहीं 
कोई मेरा भी तो हबीब है 

-तरुण 


7 टिप्‍पणियां:

  1. तरूण जी,

    बहुत शानदार, सबसे बड़ी बात यह कि जब खुदा दिल है तो किसी खुदा की जरूरत नहीं।

    हर शेर लाजबाब...दूर रहकर भी अपने देश के करीब है।

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  2. wah...kya baat hai...
    america me rah kar bhi,
    koyi apni bhasha ke kareeb hai.
    ye dard jo aap mahsoos rahe,
    wo dard mujhe bhi azeez hai.

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  3. बहुत सुंदर रचना .. बाधाई
    आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ आकर बहुत अच्छा लगा .
    कभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर भी आप अपने एक नज़र डालें . धन्यवाद् .

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  4. तरूण जी आप की कविता दिल की गहराई को छूने में कामयाब हुई।
    मै आप से दोस्ती करना चाहता हॅू। क्या आप मुझसे दोस्ती करेंगे? आप चाहे तो अपनी कविताऍ मुझे मेल कर सकते है।
    shailendraa123singh@gmail.com

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