सोमवार, 5 मई 2008

तुम मेरी क्या हो

मैं जब तेरा नाम लेता हूँ
एक कविता वो लगती है
मैं जब तुझको बुलाता हूँ
एक दुआ सी सुनती है
तू जब मेरे करीब आती है
मुझे साँसे सी मिलती है
तू जब मुझसे रूठ जाती है
तो मेरी बस जान निकलती है
मैं कैसे कहूँ तुमसे कि
तुम मेरी क्या हो
मेरी ज़िंदगी की हर राह बस
तेरे कदमों से चलती है ...

-तरुण

1 टिप्पणी:

  1. मेरी ज़िंदगी की हर राह बस
    तेरे कदमों से चलती है ...


    Bahut sunder! Aapka poem mujhe ye song yaad dila gayi "Yeh zindgai usi ki hai jo kisi ka ho gaya!"

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