शनिवार, 2 फ़रवरी 2008

बारिश की बूंदे


रात भर मेरे मकां की छत पे
बारिश की बूंदे टप टप टपकती रही
तुम्हारे जाने के हर एक पल को
हर के लम्हे को ये गिनती रही
बुनती रही
मेरे दिल के हर दर्द की हर आह को
ये सुनाती रही
हर एक आंसू की हर बूँद को
ये टपकाती रही
मुझे बताती रही
तुम्हे जिद्द थी
चले गए तुम
तुम्हारे जाने के गम को बहुत देर तक
यह संजोती
पिरोती रही
और अब जब तुम चले गए हो तो
हर रात मेरे मकां की छत पे
टप टप टपकती है
बहुत टपकती है ये बारिश की बूंदे ॥

-तरुण

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