आज की रात
क्यों न
फलक से उतारकर चाँद को
उस फ्रेम में लगा लूं
जहाँ कभी तेरी तस्वीर रहा करती थी ,
जब खो जाएगा वो चाँद
तब एहसास होगा
इस दुनिया को
कितनी वीरान हो जाती है ये रात
बिना उस चाँद के,
तुम्हे गए न जाने कितने दिन हुए है
और तब से
मेरी हर रात बहुत गुमसुम है वीरान है
-तरुण
क्यों न
फलक से उतारकर चाँद को
उस फ्रेम में लगा लूं
जहाँ कभी तेरी तस्वीर रहा करती थी ,
जब खो जाएगा वो चाँद
तब एहसास होगा
इस दुनिया को
कितनी वीरान हो जाती है ये रात
बिना उस चाँद के,
तुम्हे गए न जाने कितने दिन हुए है
और तब से
मेरी हर रात बहुत गुमसुम है वीरान है
-तरुण
achchhii modern kavita!
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