तुम छोड़ आओ उन रस्मों को
मैं इस घर को छोड़ देता हूँ
चलते है हम उन रास्तों पे
गुज़रते है उन राहों से
जो तेरे मेरे दरम्यां उन सब फासलों को मिटाती है
जो उन दीवारों के परे भी जाती है
जो न जाने कबसे रोके है मुझको
न जाने कबसे तुझको भी छुपाये है
इन छोटे छोटे लम्हों में न जाने कितनी सदिया बिताये है
चलो ढ़ूँढते है उस शहर को हम
वहाँ एक घर बनाते है
जहाँ सुबह का सूरज रात के ख्वाबो को सताता है
और रात में
जहाँ चाँद आँगन में उतरकर आता है
जहाँ चांदनी हर घर में जगमगाती है
हर रात को नींद न जाने कितने
ख्वाब संजोकर लाती है
चलो कुछ ऐसी हसरतों को सजाते है
इस जहाँ से अलग एक जहाँ हम बसाते है
-तरुण
bahut badhiya
जवाब देंहटाएंbeautiful,its very touching
जवाब देंहटाएंOne more....tussi great ho
जवाब देंहटाएंOne more....tussi great ho
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन नज़्म!
जवाब देंहटाएंWonderful written!
जवाब देंहटाएंkhawab hai to zindagi hai!